जानें आयुर्वेद का परिचय, इतिहास, इसकी शाखाएं एवं सामान्य सिद्धांत

आयुर्वेदा परिचय An Introduction To Ayurveda

किसी भी शास्त्र को सीखने से पहले उसके इतिहास (
History of  Ayurveda ) के बारे में थोड़ी सी जानकारी होना अनिवार्य हैं |आयुर्वेद या भारतीय चिकित्सा शास्त्र जानने से पहले हमें तीन शब्दों के बारे में जानना चाहिए ||

Swadeshi Ayurveda

1.स्वस्थ (Health ) 

स्वस्थ का मतलब हैं तन्दुरुस्थ, एक एसी अवस्था जहां  शरीर और मष्तिष्क एक संतुलित अवस्था में काम कर रहे हैं | (both physically and  mentally  healthy)

2.रोग (Disease )

जब भी शरीर या मष्तिष्क संतुलित अवस्था छोड़कर असंतुलित होते हैं तो हम उसे रोग कहते हैं |

3.चिकित्सा (Treatment )

असंतुलित अवस्था में रहते शरीर को संतुलित अवस्था में लाने के लिए जो भी प्रक्रिया हम करते हैं उसे हम चिकित्सा कहते हैं | चिकित्सा के लिए तरह – तरह की दवाइयां एवं शस्त्र कर्म का प्रयोग किया जाता है

BRANCHES OF MEDICINE

१ एलॉपथी          Allopathy

२ आयुर्वेदा          Ayurveda

३ होमियोपैथी     Homeopathy

४ नेचुरोपैथी        Naturopathy

५ सिद्ध एंड यूनानी           Siddha and unani etc

आयुर्वेदा(AYURVEDA )

भारतीय चिकित्सा शास्त्र या आयुर्वेद एक एसा शास्त्र हैं जिसका प्रथम उदेश्य लोगों का स्वस्थ जीवन हैं, इसमें चिकित्सा का स्थान तो दूसरा हैं | अर्थात आयुर्वेद का मूल सिद्धांत है “स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी के रोग का प्रशमन करना” | आयुर्वेद शब्द का मतलब हैं जीवन का ज्ञान ||

आयुर्वेदा इतिहास (HISTORY )

भारतीय चिकित्सा शास्त्र का जड़ी बूटियों का ज्ञान पुराणों से प्राप्त होता है | सर्वप्रथम आयुर्वेद से सम्बंधित ज्ञान भगवान् ब्रह्मा ने अपने पुत्र दक्ष प्रजापति को दिया, उनसे अश्विनी देव ने इसको प्राप्त किया, जिन्हे पुराणों में देवों का वैद्य माना जाता  हैं | अश्विनी देव से यह ज्ञान इंद्रदेव ने प्राप्त किया | इंद्रदेव से ये ज्ञान भारद्वाज, आत्रेय एवं धन्वन्तरि इन तीन ऋषियों ने प्राप्त किया | इन तीनो ऋषियों से ही यह ज्ञान इनके शिष्यों एवं आम लोगों तक फैला |

(ASHTANGA‘S OF AYURVEDA)  अष्टांग आयुर्वेदा

अष्टांग आयुर्वेद का तात्पर्य आयुर्वेद की आठ शाखाओं से है | आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में चिकित्सा की आठ विधियाँ होती है जिन्हें अष्टांग आयुर्वेद कहा जाता है |  

१ कायचिकित्सा

आयुर्वेद की वह शाखा जहां शारीरिक रोग और उनसे जुडी चिकित्सा के बारे में बताया गया हैं ||

२ शल्यतंत्र

इस शाखा में ऐसी चिकित्सा निति बताई गई हैं, जहां शल्य अर्थात ऑपरेशन द्वारा चिकित्सा की जाती है |

३ शालाक्य तंत्र

नाक, कान एवं आँख जैसे अंगों की चिकित्सा इस भाग में आती है |

४ अगदतंत्र

जहर से जुड़े रोगों का  इलाज अर्थात विष चिकित्सा –  जैसे  सांप का विष, बिच्छु का विष |

५ कौमारभृत्या

बच्चों के रोगों का इलाज इस शाखा में होता हैं ||

६ भूतविद्या

मानसिक रोगों से जुड़े  इलाज इस शाखा में आते हैं जिनका कारण पता नहीं होता (disease  caused by invisible being )

७ रसायनतंत्र

लोगों को स्वस्थ बनाये रखने और कामशक्ति बनाये रखने के लिए जो चिकित्सा की जाती है वो इस शाखा में बताया गया हैं | (rejuvination AND  prevention of diseases )

८ वाजीकरणतंत्र

इनफर्टिलिटी  का इलाज इस शाखा में बताया गया हैं ||

वेद

हमारे भारत के पूरे शास्त्र शाखाओं का वेदों से सम्बन्ध हैं | चार वेदों में से आयुर्वेद अथर्व वेद का उपवेद माना जाता हैं ||

वेदों के अनुसार एक इन्सान को अपनी जिंदगी में चार आश्रम से जाना चाहिए (4 lifestages ) और चार पुरुषार्थ को पूरा करना चाहिए | वो हैं

१ धर्म

२ अर्था

३ काम

४ मोक्ष

चार आश्रम हैं

१ ब्रह्मचर्य

२ गृहस्थाश्रम  

३ वानप्रस्थाश्रम

४ सन्यास

आयु एवं लाइफ को शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा की एक संतुलित अवस्था माना जाता हैं, जब भी इस अवस्था में कोई असंतुलन होता है तब रोग का उदय होता है |

आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार शरीर पंचमहाभूत से बना हुआ हैं | ये पंचमहाभूत

पृथ्वी

आकाश

अग्नि

वायु

भूमि

यह हमारी पंचेंद्रियों से भी जुड़ा हुआ हैं,

जैसे आकाश से शब्द (sound )

वायु से स्पर्श (touch )

अग्नि से रूप (form )

जल से रस (taste )

पृथ्वी से गंध (smell )

इस पंचमहाभूत से आयुर्वेद के अनॉथर कांसेप्ट आते हैं वो हैं त्रिदोष

वात वायु &आकाश

पित्त – अग्नि & जला

कफ जला &पृथ्वी

त्रिदोष के शारीरिक स्थान

हमारे शरीर को तीन भागों में बाँटा गया  उनमे से ऊपर के भाग में कफदोष के स्थान होगा

(upperbody), ह्रदय और नाभि के बीच में पित्त (middle body)  नाभि के नीचे के भाग में वात (lower body )

वात दोष

आयुर्वेदिक शास्त्र के अनुसार शरीर के हर एक मूवमेंट को वात दोष के अनुसार होगा जैसे दौड़ना ,चलना,सोचना,श्वास लेना आदि ||

पित्त दोष

पित्त का मतलब हैं ताप या अग्नि| ये हमारे शरीर के हर एक ट्रांस्फ़ॉर्मेशन्स में भाग लेते हैं जैसे digestion , भूख आदि ||

कफ दोष

हमारे शरीर प्रारूप कफ दोष से बनाया गया हैं | (which gives structure )

DOSHA AND AGE

बचपन में लोग ज्यादातर दूध और मीठी चीज़ खाते  हैं तो ज्यादा कफ दोष होगा | युवा के लिए पित्त दोष प्रभावी होगा,  इस उम्र मे ज्यादा शारीरिक विकास होता हैं जहां ज्यादा biotransformations होगा | बुढ़ापे में वात दोष ज्यादा होगा |

(NB :ये एक generalised concept हैं ,it varies from person to person )

प्रकृति (PRAKRUTI)

एक इंसान के जन्म के समय, मतलब गर्भ उत्पन्न होने के समय माता पिता में जो भी दोष ज़्यादा रहेगा उसी के अनुसार उस व्यक्ति की प्रकृति होगी  | प्रकृति हरेक इंसान की अलग होती है | सम्पूर्ण जीवन यह प्रकृति व्यक्ति को प्रभावित रखती है |

TYPES OF प्रकृति

प्रकृति सात तरह के हैं

१ वात प्रकृति

२ पित्त प्रकृति

३ कफ प्रकृति

४ वातपित्त प्रकृति

५ वातकफ प्रकृति

६ पित्तकफ प्रकृति

७ सम दोष प्रकृति

इसी प्रकृति को मन में रखकर ही हम लोगों का स्वभाव, उनको होने वाले रोग एवं उनकी चिकित्सा ये सब चीज़ निर्धारित होती है |

दोषों की जानकारी आयुर्वेद शास्त्र का आधार है | चिकित्सा निर्धारित करने से पहले रोगी की प्रकृति को जानना आवश्यक रहता है, क्योंकि इससे निर्धारित चिकित्सा निर्णायक होती है  निर्णय लेने से पहले हमें एक व्यक्ति के प्रकृति जानना चाहिए,किस दोष के वैरिएशंस से उनको परेशानी हो रही हैं ? ये सब कुछ जान लेना चाहिए उसके बाद ही  उसकी बीमारी और उसके इलाज के बारे में सोचना चाहिए |

द्वारा लेखक

Dr Neethu Sithara

लेखक अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक है | इन्होने वर्ष 2016 में Nangelil Ayurveda Medical College Kothamangalam से अपनी BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine & Surgery) कम्प्लीट की है | विभिन्न आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में आयुर्वेदिक फिजिशियन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहीं है | ये Rashtrapati Guide Award से सम्मानित है |

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