जीवन्ती जड़ी – बूटी परिचय एवं उपयोग

वानस्पतिक नाम : Leptademia reticulata W. & A. (External Link)

कुल (Family) : Asclepiadaceae

संस्कृत : शाकश्रेष्ठा, पयस्विनी, जीवा, मधुस्त्रवा, मांगल्यनामधेया, डोड |

हिंदी : जीवन्ती, डोडी, जिउन्ति |

मराठी : डोडी, राईदोडी |

जीवन्ती परिचय Introduction of Jivanti in Hindi :

जीवन्ती

चरक संहिता में जीवनीय दशेमानी एवं मधुरस्कंद के अंतर्गत इसका वर्णन प्राप्त होता है | आयुर्वेद में इसे जीवनीय द्रव्य माना गया है | और वास्तव में यह जीवन प्रदान करने वाली औषधि है | आयुर्वेद की विभिन्न औषध योगों जैसे च्यवनप्राश आदि में इसका उपयोग मुख्यत: किया जाता है |

भारत में यह हिमालय क्षेत्रों में क्षुप जाति की लता (बेल) के रूप में मिलती है | पंजाब, गुजरात, उतरप्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश आदि में भी इसकी बेल देखि जा सकती है |

जीवन्ती का कांड श्वेताभ रोमश होता है |

पत्र – 2 से 3 इंच लम्बे एवं 1 से 1.5 इंच तक चौड़े होते है |ये लटवाकार, अंडाकार, स्निघ्ध एवं सरलधार युक्त होते है | जीवन्ती के पतों का आधार गोल एवं आगे से नुकीला होता है |

पुष्प – इसके फूल कुच्छ मटमैले, हरिताभ पीत रंग के होते है |

फलियाँ – 5 से 10 सेमी लम्बी होती है | ये सीधी, स्निग्ध एवं सरस होती है | आगे का भाग मोटा लेकिन चोंचयुक्त होता है |

जीवन्ती के भेद

  1. जीवन्ती / L. reticulata W.&A.
  2. स्वर्णजीवन्ती / Dendrodium macraei
  3. जिउन्ति / Cimicifuga foetida

औषधीय गुण कर्म

जीवन्ती शीतला स्वादु: स्निग्धा दोषत्रयापहा |

रसायनी बलकारी चक्ष्युषा गृहिणी लघु : ||

रस : मधुर

गुण : लघु एवं स्निग्ध

विपाक : मधुर

वीर्य : शीत

यह त्रिदोष हर औषधी है विशेषत: वात एवं पित्त को ठीक करती है | आँखों के लिए अच्छी, रसायन, बलवर्द्धक, ग्राही, स्तन्यजनन, स्वर्य, रक्तपित्त, क्षय, दाह, ज्वर, अतिसार, विषदोष एवं घाव आदि लिए उपयुक्त जड़ी – बूटी है |

जीवन्ती के उपयोग

जीवनीय – मधुर रस एवं विपाक तथा शीतवीर्य से सर्वधातु वृद्धि एवं ओजवृद्धि करके जीवन की वृद्धि करती है | क्षयजन्य विकार, शोष, तपेदिक आदि रोगों में इसे दूध के साथ प्रयोग करवाया जाता है | ओजोवृद्धिकर होने के कारण यह विषदोष का भी नाश करती है |

मूत्र विकारों में उपयोगी – जीवन्ती तासीर में ठंडी एवं रस में मधुर होती है | इसी कारण यह मूत्रल औषधि है अर्थात मूत्र को जल्दी लगाती है | यह मूत्रकृच्छ, मूत्रदाह और पुयमेह में प्रयुक्त की जाती है |

नेत्र रोगों में लाभदायक – यह द्रव्य आँखों के लिए लाभदायक है | इसे द्रष्टिप्रसाद्कर अर्थात आँखों की रोशनी बढाने वाली जड़ी – बूटी माना जाता है | यह नेत्रगत मांस को बल प्रदान करके नेत्र रोगों में फायदा पहुंचती है | आँखों की कमजोरी में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते है |

बुखार में जीवन्ती के उपयोग – पित्तशामक एवं दाहप्रसमन अर्थात जलन को कम करने वाली होने के कारण इस औषधि का प्रयोग बुखार एवं दाह में किया जाता है |

बुखार में जीवन्ती की जड़ का काढ़ा बनाकर उसमे घी मिलाकर ज्वर में देने से बुखार के कारण होने वाली तपन से छुटकारा मिलता है |

आँखों की समस्याओं में जीवन्ती के पतों को घृत में पकाकर नित्य सेवन करवाने से लाभ मिलता है | यह आँखों की रोशनी को बढ़ाने में अहम् औषधि साबित होती है |

सेवन की सावधानियां एवं विशिष्ट आयुर्वेदिक योग

जीवंती का औषध प्रयोग में जड़ का अधिक प्रयोग किया जाता है | जीवन्ती के चूर्ण का सेवन 2 से 4 ग्राम तक की मात्रा तक करना चाहिए | इसके तैयार क्वाथ को 40 से 80 मिली तक मात्रा में सेवन का प्रयोजन है |

इसके इस्तेमाल से आयुर्वेद के कुछ विशिष्ट कल्प जैसे जीवन्त्यादी चूर्ण एवं जीवन्त्यादी तैल आदि का निर्माण किया जाता है |

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