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अडूसा / वासा / Malabar Nut in HIndi
आयुर्वेद संहिताओं में प्राचीन समय से ही अडूसा के उपयोग का वर्णन मिलता है | यह भारत के सभी प्रान्तों में पाया जाता है | हिमालय में 4000 से 5000 फीट तक की ऊंचाई में आसानी से देखि जा सकने वाली वनस्पति है |
गाँवो में आज भी लोग इसका उपयोग अस्थमा (दमे), खांसी, जुकाम, सुजन एवं बुखार आदि के उपचार के लिए करते है | आयुर्वेद में इसे श्वास, कास एवं टीबी की उत्तम औषधि माना जाता है | यह शरीर में कुपित कफ को दूर करने में कारगर औषधि है |
वानस्पतिक परिचय (अडूसा का पेड़ कैसा होता है) – अडूसा बारहमासी सदाबहार पौधा है | इसके पौधे की लम्बाई 3 से 6 फीट तक होती है | यह झाड़ीदार क्षुप अत्यंत दुर्गन्ध युक्त एवं समूहबद्ध होता है | इसके पते 5 इंच लम्बे और 1.5 से 2.5 फीट चौड़े होते है |
वासा के पुष्प 1.5 इंच लम्बे सफ़ेद रंग के होते है जो 2.5 इंच की मंजरियों पर लगे हुए होते है | फुल हमेशां पौधे की उपशाखाओं के आगे गुच्छों में लगे हुए होते है | इन पर नीले रंग की धारियां होती है जो इन्हें आकर्षक बनाती है |
वासिका की फलियाँ पौन इंच लम्बी एवं 1 से 3 इंच चौड़ी होती है , इनमे से छोटे आकार के 4 बीज निकलते है | पौधे के पतों से विशेष प्रकार का पीला रंग निकलता है |
अडूसा के विभिन्न पर्याय एवं निरुक्ति
इसे अडूसा, वासा, वासिका, सिंहास्य आटरुष, वृष, सिंही वैध्यमाता, अलुसा, वसाका आदि नामों से पुकारा जाता है | संस्कृत के नामों की निरुक्ति निम्न है –
- वासा – श्वास आदि रोगों को दबा देता है , इसलिए इसे वासा कहते है |
- वासिका – श्वासादी रोगनिवारणार्थ वैद्य इकसा प्रयोग करते है |
- सिंहास्य – अडूसा के फूलों का आकार सिंह के मुख जैसा होता है , इसलिए सिंहास्य कहते है |
- आटरुष – यह भ्रमण करते हुए रोगों का नाश करता है |
- वृष – अस्थमा, खांसी आदि के नाश के लिए पिया जाता है |
- वैद्यमाता – रोगों को जीतनेवाला होने के कारण वैद्यो के लिए माता के समान है |
अडूसा के औषधीय गुण
इसका रस तिक्त एवं कषाय होता है | गुणों में यह लघु एवं रुक्ष प्रकार का होता है | पचने के पश्चात इसका विपाक कटु होता है | अडूसा की तासीर गर्म होती है अर्थात यह उष्ण वीर्य की औषधि है |
अपने इन्ही गुणों के कारण कफ एवं पित्त का शमन करने वाली औषधि है | यह हृदय को बल देता है, स्वर को सुधरता है एवं वातकृत है | श्वास, खांसी, बुखार, रक्तपित, क्षय, प्रमेह, कुष्ठ एवं तृषा को दूर करने में उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है |
अडूसा के उपयोग या फायदे
यह उत्तम गुणों के कारण विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है | अडूसा का दूसरा नाम वासा या वसीका पुकारा जाता है | यह नाम भी इसके गुणों को देख कर ही लिया जाता है | यहाँ हमने इसके उपयोग एवं फायदों के बारे में बताया है –
अस्थमा या खांसी में
अडूसा के प्रयोग से शरीर में उपस्थित कुपित पिघलता है एवं शरीर से बाहर निकलता है | इसका सेवन करने से श्वासवाहिनी फैलती है जिसके कारण दमे एवं कफ के कारण रुके हुए कंठ खुलते है एवं रोगी को श्वास लेने में आसानी होती है |
अडूसा का स्वरस को शहद और सैन्धव लवण के साथ प्रयोग करने से कफज कास, श्वास, रक्तमिश्रित कफ एवं खांसी में फायदा मिलता है |
क्षय रोग में अडूसा के फायदे
शरीर में स्थित दुष्टकफ रसवह स्रोतस का अवरोध करके क्षय उत्पन्न करता है | अडूसा कफहर होने से क्षय (टीबी) में प्रयोग करवाई जाती है | क्षयज कास, श्वास, रक्तपित में विशेषत: वासावलेह का प्रयोग करवाया जाता है |
यह धात्वाग्नी का दीपन करके धातुओं का निर्माण करता है | रसवह स्रोतस का अवरोध दूर करती है अत: क्षय में फायदेमंद है |
रक्तपित
वासा रक्तपित में सर्वोत्क्रिष्ट औषध द्रव्य है | तिक्त – कषायरस एवं शीतवीर्य से पित की तीक्ष्णता एवं उष्णता का शमन एवं रक्तप्रसादन कर्म होता है | रक्तवह स्रोतस का संकोच करके यह रक्त की प्रवर्ती का स्तम्भन करती है |
अडूसा स्वरस शक्कर एवं शहद के साथ रक्तपित में प्रयोग करवाने से फायदा मिलता है | वासा क्वाथ अर्थात अडूसे का काढ़ा रक्तपित में रक्त का शीघ्र स्तम्भन करता है एवं रक्तपित का नाश करता है | जीर्ण रक्तपित में वासास्वरस या वासाघृत मधु के साथ लेना अत्यंत फायदेमंद है |
हृदय विकारों को नष्ट करने एवं बल देना
अडूसा तिक्त एवं कषाय रस होने और शीतवीर्य होने से रक्त का स्तम्भन, रक्त का शोधन एवं रक्तवाहिनी संकोचक का कार्य करता है | कफज एवं पितज हृदयरोग में अडूसा का प्रयोग लाभदायक होता है |
बुखार में उपयोग
कफ ज्वर में मुस्ता एवं सौंठ के साथ अडूसा का क्वाथ प्रयोग करवाना उपयोगी होता है | जीर्ण ज्वर में वासाघृत का प्रयोग एवं रक्तपित दाह एवं पितज्वर में अडूसा के काढ़े का प्रयोग उपयोगी होता है |
अडूसा तिक्त रस का होने के कारण आमपाचन एवं शीतवीर्य से पित्त को नष्ट करता है |
तृष्णा उपयोग
बुखार, जलन एवं रक्तपित के कारण होने तृषा (प्यास खत्म न होना) में अडूसा फायदेमंद है क्योंकि यह रस में तिक्त एवं तासीर में शीत होने के कारण तृषा की समस्या को खत्म करती है | अडूसा के काढ़े को शहद के साथ प्रयोग करवाने से लाभ मिलता है |
अडूसा (वासा) के स्वास्थ्य प्रयोग
- अडूसा के पते , दाख एवं हरीतकी – इन तीनो का काढा शहद के साथ पिलाना चाहिए | इससे श्वास, खांसी, रक्तपित आदि नष्ट होते है |
- अडूसे के पतों का स्वरस निकाल कर गोमूत्र के साथ कृमिकुष्ठ में रोगी को पिलाने या लेप आदि करवाने से कुष्ठ में लाभ मिलता है |
- वासापत्र स्वरस मधु के साथ उल्टी, खांसी एवं रक्तपित में पिलाना चाहिए |
- अडूसा के पतों का स्वरस या फूलों से निकाला हुआ स्वरस को मधु और मिश्री मिलाकर पिलाने से पितकफ ज्वर, अम्लपित और कामला में लाभ मिलता है |
- अडूसे की जड़ को जल से पीसकर नाभि, बस्ति और भग पर लेप करने से जल्दी ही प्रसव होता है |
- वासा की जड़ का स्वरस निकाल कर दूध तथा मिश्री के साथ वातजन्य रक्तप्रदर में पिलाना चाहिए |लाभ मिलता है |
- आयुर्वेद में अडूसा के पंचांग का प्रयोग करवाया जाता है | इसके प्रयोग से आयुर्वेद में विभिन्न योग जैसे वासाव्लेह , वासापुट पाक आदि |
- हरिद्राचूर्ण में अडूसा के स्वरस की 7 भावना देने के बाद दूध की मलाई के साथ प्रयोग करवाने से सुखी खांसी जल्द ही मिट जाती है |
- अडूसे के पतों को बाफकर उनका सेवन करने से चीभे चलना और संधि वात की पीड़ा से मुक्ति मिलती है |
- इस वृक्ष की जड़ और पते सभी प्रकार की खंसियों पर एक उत्तम औषधि मानी जाती है | अडूसा के पते गठिया रोग मर प्रयोग करते है | पतों को सुखाकर धूमपान करवाने दमे के रोग में लाभ मिलता है |
- इस औषधि का प्रयोग फेफड़ो के क्षय रोग में अत्यंत फायदेमंद होता है |
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धन्यवाद |