अलसी के औषधीय गुण – इसके फायदे, असरकारी नुस्खे एवं अलसी का पौधा परिचय

अलसी / Flax Seed / Linseed

प्राचीन समय से ही हमारे यहाँ अलसी का प्रयोग होते आया है | आयुर्वेद के ग्रन्थ चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता में इसका वर्णन मिलता है | संस्कृत में इसे अलसी, पिच्छिला, उमा, क्षुमा आदि नामों से पुकारा जाता है | हिंदी में अलसी, तीसी, मसीना | बंगाली में मसीना, मराठी में जवस, अलशी | कन्नड़ में असगे एवं फारसी में तुख्मेकतान आदि नामों से जाना जाता है |

अलसी की फसल सम्पूर्ण भारत में बहुतायत से होती है | उत्तरप्रदेश, बिहार , मध्यप्रदेश एवं बंगाल आदि राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है | अलसी का पौधा 4 फीट तक लम्बा एवं पते रेखाओं युक्त, 3 शिराओं वाले – 2 इंच तक लम्बे होते है |

पौधे के पुष्प नीलवर्ण के, घंटाकर होते है | अलसी के फल गोल, नुकीले, 5 कोष वाले एवं कलश के समान प्रतीत होते है | फलों में 10 – 12 बीज निकलते है | बीज चिकने, कुछ ललाई लिए हुए, अंडाकार एवं चिपटे होते है | बीजों से तेल निकाला जाता है |

अलसी के औषधीय गुण

इसके औषधीय गुण कर्म निम्न टेबल के माध्यम से जान सकते है –

गुणकर्म
रसमधुर एवं तिक्त
विपाककटु
दोषकर्मवात हर
अन्यकर्मअच्क्षुष्य, शुक्रहर एवं ग्राही
रोगघ्नताकुष्ठ, हृद्योग, व्रणशोथ, अर्श एवं गृहणी

आयुर्वेद अनुसार अलसी मंद गंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवर्द्धक – वातहर, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द और सुजन को मिटाने वाली होती है |

यह मूत्र के विकारों एवं कुष्ठ को नष्ट करती है | इसके फुल हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करते है | इसका तेल गठिया रोग में फायदेमंद रहता है | इसके बीज महिलाओं में दूध बढ़ाने एवं ऋतूस्राव को नियमित करने वाले होते है | यह खांसी एवं कफज विकारों में भी फायदेमंद रहती है |

अलसी में ओमेगा – 3 की प्रचुर मात्रा होती है | यह शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास करके रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक है |

अलसी के फायदे या उपयोग

इसे सेहत का खजाना कहना उचित है , क्योंकि यह हृदय के विकार, सुजन, श्वास, कफ, वातरक्त, कब्ज, अपच, सुजन, घाव, पौरुष शक्ति, कैंसर एवं कुष्ठ आदि में फायदेमंद साबित होती है |

हृदय रोगों में अलसी के उपयोग

अलसी रक्त को पतला करने का कार्य करती है , साथ ही रक्तवाहिकाओं की सफाई का कार्य भी करती है | यह हृदयघात (HeartAttack) की सम्भावना को कम करती है | हृदय गति, कोलेस्ट्रोल एवं ब्लड प्रेशर को संयमित करने में उपयोगी है |

मष्तिष्क के लिए फायदेमंद

दिमाग को तेज करने एवं याददास्त बनाये रखने के लिए अलसी का सेवन किया जा सकता है | यह एकाग्रता को बढ़ाती है | कमजोर याददास्त अर्थात भूलने की समस्या को खत्म करती है |

कामोद्दीपक

कामोद्दीपक से तात्पर्य पुरुषों की यौन क्षमताओं से है | अलसी पुरुषों में होने वाली यौन कमजोरियों में फायदेमंद रहती है | यह रसायन एवं वाजीकरण द्रव्य का कार्य करती है | इसके प्रयोग से पुरुषों में काम शक्ति का संचार होता है एवं यौन कमजोरियों का नाश होता है | इसे उत्तम कामोद्दीपक औषधि माना जाता है |

घाव एवं सुजन

अलसी में एंटीबैक्टीरियल गुण विद्यमान रहते है | आयुर्वेद मतानुसार भी इसका लेप सुजन को दूर करने वाला एवं घाव को जल्दी भरने वाला होता है | प्रभावित भाग पर अलसी के बीजों का लेप बनाकर लेप करने से घाव जल्दी भरने लगते है एवं सुजन दूर होती है |

कैंसर एवं वृद्धावस्था

आधुनिक अनुसंधानों से अलसी के कैंसर रोधी होने एवं बुढ़ापे को रोकने के गुणों का पता चला है | इसका नियमित प्रयोग करने से कैंसर होने की सम्भावना कम होती है | वृद्धावस्था देर से आती है एवं वृद्ध व्यक्ति भी जवान की तरह महसूस करता है |

गठिया रोग में फायदेमंद

अर्थराईटिस की समस्या में अलसी के बीजों का तेल लाभदायक होता है | तेल को मालिश के रूप में प्रय्गो करने से गठिया के कारण होने वाले जॉइंट्स पैन से राहत मिलती है | यह शरीर में स्थति अतिरिक्त यूरिक एसिड को मूत्र के साथ बाहर निकालने का कार्य करती है |

अलसी के असरकारी नुस्खे

  • पके हुए वृण अर्थात घाव को ठीक करने के लिए अलसी को पीसकर इसका लेप बना लें और इसका लेप घाव पर करें | जल्द ही घाव भरने लगेगा |
  • अलसी को दूध में मर्दन करलें अर्थात दूध मिलाकर लुगदी बना लें | इस लुग्दी को लगाने से वातरक्त शूल अर्थात बाय के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है |
  • 1 ओउंश की मात्रा में अलसी के बीजों को पीसकर रातभर ठन्डे पानी में रखें | इसका मल छानकर थोड़ा गर्म करें और निम्बू का रस डालकर पियें | यह प्रयोग कफज विकारों जैसे क्षय रोग एवं अस्थमा आदि में फायदेमंद रहता है |
  • खांसी की समस्या में इसके बीज को सेककर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने भर से सभी प्रकार की खांसी से राहत मिलती है |
  • अलसी के बीजों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर फक्की लेने से एवं इसके तेल की पांच बूंद जननेंद्रिय पर डालने से सुजाक रोग में लाभ मिलता है |
  • अलसी के तेल में सोंठ का चूर्ण डालकर गर्म करके मालिश करने से शरीर के सभी प्रकार के दर्द से मुक्ति मिलती है |
  • बीजों के चूर्ण को सालम मिश्री के साथ फंकी लेने से यौन कमजोरियों में बेहद लाभ मिलता है |
  • चूर्ण का सेवन करने से शरीर में वीर्य की वृद्धि होती है |
  • शारीरिक दुर्बलता में इसके चूर्ण से स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर सेवन करने से दुर्बलता हटती है |

सेवन विधि, मात्रा एवं विशिष्ट योग

आयुर्वेद चिकित्सानुसार औषध उपयोग में अलसी के बीज एवं फूलों का इस्तेमाल किया जाता है | सेवन की मात्रा के रूप में 3 से 6 ग्राम तक सेवन की जा सकती है | अलसी के तेल को 5 से 10 मिली तक प्रयोग किया जा सकता है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसके प्रयोग से अत्स्यादि लेप, अतसी स्नेह आदि का निर्माण किया जाता है |

धन्यवाद |

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *