अजमोद वनस्पति परिचय – इसके औषधीय गुण एवं उपयोग

संस्कृत में इसे अजमोदा, वस्तुमोदा एवं प्रकटी आदि नामों से जाना जाता है | यह सम्पूर्ण भारत वर्ष में देखा जा सकता है | इसका उपयोग आयुर्वेद चिकित्सा में औषध स्वरुप एवं आम घरों में मसाले के रूप में भी किया जाता है | इसका पौधा धनिये के समान दीखता है एवं फल अजवायन के समान दिखाई देते है | अजोमोद को अंग्रेजी में Parsley (पार्सले) एवं लैटिन में पेट्रोसेलिनम क्रिस्पम नाम से जाना जाता है |

अजमोद

परिचय – अजमोद के पौधे एक से तीन फुट लम्बे होते है | इसके पते अनेक भागों में विभक्त रहते है | प्रत्येक भाग अनीदार, कंगूरेदार और कटे हुए किनारेवाले होते है | इसकी जाती अजवायन की ही एक भेद है | इसके पौधे भी अजवायन के समान दिखाई देते है | पौधे पर फूलों का गुच्छा लगता है जिससे आगे चलकर अजमोद के बीज प्राप्त होते है | ये बीज अजवायन के बीजों से कुछ बड़े होते है | इनका रंग भूरा होता है एवं स्वाद तेज और तीखा होता है |

अजमोद के औषधीय गुण

आयुर्वेद अनुसार अजमोद कड़वी, चरपरी, अग्निदीपक, गरम उष्ण वीर्य, दाह्कारी, हृदय के लिए हितकारी, वीर्य वर्द्धक, हलकी, कफ, वात के रोगों को दूर करनेवाली, आंतों को सिकोड़ने वाली तथा वायुनालियों के प्रदाह, वमन, काली खांसी, जलोदर, गुदाशय की पीड़ा, कीड़े और हिचकी आदि रोगों में लाभ पहुँचाने वाली होती है |

श्वाँस , कफ एवं शीत में लाभकारी है | पाचन को सुधरने वाली, भूख बढाने वाली एवं मूत्र बहुलता में उपयोगी औषधि है |

यूनानी चिकित्सा पद्धति अनुसार गुण

यह पहले दर्जे में गर्म और दुसरे दर्जे में रुक्ष है | यह गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए अत्यंत हानिकारक है | मिर्गी के रोगी को भी अजमोद का सेवन नहीं करवाना चाहिए | इसके बीज गरम और तेज होते है | यह रेचक, पेट के आफरा को दूर करने वाली होती है | क्षुधा को तेज करने वाली, कृमिनाशक और कामोदिप्प्क है | यह गर्भ सत्रावक औषधि है | इसलिए गर्भवती स्त्रियों के लिए हानिकारक है |

अजमोद अमाशय में गर्मी और उसमे एक प्रकार की भाप पैदा करती है | यह भाप जब मस्तिष्क में पहुँचती है तब घनीभूत होकर वायु बन जाता है और इससे मिर्गी रोग को उतेजना मिलती है, इसलिए मृगी रोग वालों के लिए यह हानिकारक है | यकृत, प्लीहा और हृदय को यह लाभ पहुंचाती है | रक्तरोध (नष्टआर्तव), मूत्र सम्बन्धी बिमारियों, ज्वर, गठिया और सिने के दर्द में भी यह लाभकारी सिद्ध होती है | पत्थरी की समस्या में फायदेमंद है | यह पत्थरी को टुकड़े – टुकड़े कर के बाहर निकालने का काम करती है |

इसकी जड़ और बीज दोनों औषध उपयोगी होती है | बीजों की अपेक्षा जड़ बलवान होती है यह कफ को नष्ट करने वाली होती है लेकिन फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है |

अजमोद के उपयोग / फायदे

  • पसली के दर्द और हर एक अंग में बादि की पीड़ा मिटाने के लिए अजमोद को गर्म कर बिस्तरे पर बिछा देना चाहिए और उस पर रोगी को सुला कर हल्का कपड़ा ओढा देना चाहिए |
  • सुखी खांसी अर्थात कुक्कर खांसी की समस्या में अजमोद को पान में रखकर चुसना चाहिए |
  • काले नमक के साथ अजमोद की फंकी देने से पेट का दर्द दूर होता है | इसका चूर्ण गुड के साथ गोली बनाकर देने से पेट का आफरा मिटता है |
  • जिनको भोजन करने के पश्चात् हिचकी आती हो, उनको भोजन के पश्चात् अजमोद के दाने मुंह में डालकर उनका रस चूसने से लाभ मिलता है |
  • मूत्राशय की बादि में अजमोद को नमक के साथ एक पोटली में बांधकर गर्मकर नसों पर सेंक करने से फायदा मिलता है |
  • दांतों की पीड़ा में इसको जलाकर धुनी देने से लाभ मिलता है |
  • शरीर में वातशूल (बादि के दर्द) में अजमोद को तेल में ओउटाकर उसकी मालिश करनी चाहिए |
  • अजमोद और लौंग को पीसकर शहद के साथ चटाने से वमन (उल्टी) बंद हो जाती है |
  • बच्चों के गुदा में पड़ने वाले कृमि को मारने के लिए अजमोद की धुनी देनी चाहिए |
  • अगर पत्थरी हो तो तीन माशे अजमोद के चूर्ण को एक तोले मुली के पतों के रस के साथ पिलाते रहने से पत्थरी गल जाती है |
  • अजमोद, मोचरस, धाय के फुल और अदरख- इन चारों वस्तुओं को कूटकर इनका चूर्ण बनाकर बोतल में भर लेना चाहिए | इस चूर्ण को तीन माशे से छ: माशे तक गाय के दही के साथ देने से बार – बार होने वाले दस्तों से आराम मिलता है |
  • अजमोद, पीपर, गिलोय, सुंठ , असगंध, शतावरी और सौंफ, इन सबों को समान भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिए | इस चूर्ण को गाय के घी के साथ देने से सभी प्रकार की वात रोग नष्ट होते है |
  • वात व्याधियों के लिए अजमोद, पीपर, वायविडंग, बड़ी सौंफ, नागरमोथा, काली मिर्च, सेंधव लवण एक – एक तोला, हरद पांच तोला, सुंठ उन्नीश तोला, विधायरा दश तोला और भारंगी की जड़ का चूर्ण 6 तोला – इन सभ औषधियों को लेकर चूर्ण करलेना चाहिए | अब इनसे दुगुना गुड लेकर एवं इनमे मिलाकर – बेर के आकार की गोलियां बना लेनी चाहिए | इन गोलियों को गरम जल के साथ लेना चाहिए |
  • अजमोदा – 12 तोला,, चित्रक – 11 तोला, हरड – 10 तोला, कुठ – 9 तोला, पीपर – 8 तोला, कालीमिर्च – 7 तोला, सोंठ – 6 तोला, जीरा – 5 तोला, सेंधा नमक – 4 तोला, वायविडंग – 3 तोला, वचा – 2 तोला, हिंग – 1 तोला और पुराना गुड – 2 सेर | इन सभी औषधियों को कूट, छान-मिलाकर आधी छटांक के लड्डू बना लें | इन लड्डुओं में से सुबह – शाम एक – एक लड्डू गरम पानी के साथ लेने से सभी प्रकार के वात रोग, गोले के रोग, प्रमेह, हृदय रोग, शूल, कुष्ठ, गलग्रह, श्वांस, संग्रहणी, पांडू रोग, अग्निमंध्य और अरुचि आदि रोगों को नष्ट करता है |

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