पुनर्नवा मंडूर आयुर्वेद की शास्त्रोक्त औषधि है |जिसका निर्माण शोद्धित मंडूर एवं पुनर्नवा सहित 18 औषध द्रव्यों के सहयोग से किया जाता है | यहाँ हमने इस दवा की निर्माण विधि, घटक द्रव्य एवं फायदों के बारे में विस्तृत रूप से वर्णन किया है | प्लीहा एवं यकृत की वृद्धि एवं सुजन में इस दवा प्रमुखता से उपयोग किया जाता है | पांडू (एनीमिया), मन्दाग्नि एवं अर्श आदि रोगों में भी आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार इसका सेवन करवाया जाता है |
शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने एवं सुजन और पीलेपन में भी पुनर्नवा मंडूर का आयुर्वेदिक चिकित्सक व्यवहार करते है | यह बढ़ें हुए स्प्लीन एवं लीवर को ठीक करती है और साथ ही एनीमिया, पीलिया, बवासीर एवं अर्श जैसे रोगों में प्रयोग करवाई जाती है | इस दवा के निर्माण में पुनर्नवा एवं मंडूर मुख्य द्रव्य होते है, इसी कारण इसे पुनर्नवा मंडूर नाम से जाना जाता है |
पुनर्नवा मंडूर के घटक द्रव्य क्या है ?
इसमें पुनर्नवा, सफ़ेद निशोथ, पीपर, सोंठ आदि कुल 19 आयुर्वेदिक द्रव्यों का इस्तेमाल किया जाता है | पुनर्नवा एवं मंडूर इसके मुख्य घटक कहे जा सकते है |
- पुनर्नवा
- सफ़ेद निशोथ
- पीपर
- सोंठ
- कालीमिर्च
- वाय विडंग
- देवदारु
- चित्रक्मुल
- कुठ
- दारुहल्दी
- हल्दी
- आंवला
- हरड
- बहेड़ा
- दंती मूल
- चव्य इन्द्र्यव
- पीपरामूल
- नागरमोथा
- शुद्ध मंडूर चूर्ण
कैसे बनता है / पुनर्नवा मंडूर को बनाने की विधी
इसके निर्माण में ऊपर बताये गए क्रम संख्या 18 तक के सभी द्रव्यों को 1 – 1 पल की मात्रा में लिया जाता है | इन सभी का प्रथम महीन कपडछान चूर्ण तैयार किया जाता है | अब शुद्ध मंडूर के चूर्ण को द्विगुण लेकर गाय के द्विआढ़क गोमूत्र में पकाया जाता है | अच्छी तरह पकाने के बाद जब घोल गाढ़ा होने लगे तो बेर की गुठली की आकार की गोली या वटी बना ली जाती है | इस वटी को छाछ के साथ सेवन करना चाहिए |
पुनर्नवादी मंडूर की सेवन विधि / कैसे सेवन करें ?
इसका सेवन 1 – 1 गोली सुबह – शाम पांडू (एनीमिया), कामला मन्दाग्नि एवं अर्श या भगंदर में छाछ के साथ करना चाहिए | यकृत एवं प्लीहा की व्रद्धी या सुजन में पुनर्नवादी क्वाथ के अनुपान के साथ प्रयोग करनी चाहिए | कृमि रोग में मुस्तादी क्वाथ का अनुपान लेना चाहिए |
पुनर्नवा मंडूर के फायदे एवं स्वास्थ्य उपयोग
- यह आयुर्वेदि दवा उत्तम शोथ हर अर्थात सुजन को दूर करने वाली है |
- यह शरीर में रक्त की वृद्धि करती है एवं एनीमिया जैसे रोग में लाभदायक है |
- मुख्य द्रव्य पुनर्नवा होने के कारण यकृत के सभी विकारों में लाभदायक परिणाम देती है |
- प्लीहा की सुजन एवं वृद्धि में फायदेमंद औषधि है |
- यह दीपन एवं पाचन का कार्य करके मन्दाग्नि को नष्ट करती है |
- कृमि अर्थात कीड़ो की समस्या में भी लाभदायक है |
- कफ का शमन करती है इसलिए श्वास एवं कास में उपयोगी साबित होती है |
- यह मूत्रल है एवं कब्ज को दूर करती है |
आयुर्वेद चिकित्सा में इसका प्रयोग प्लीहा वृद्धि, यकृत की सुजन एवं वृद्धि, खून की कमी, पेट के कीड़े, सर्दी – जुकाम, भूख न लगना, कब्ज, पीलिया, शरीर में पानी की अधिक मात्रा, अर्श, त्वचा विकार एव ज्वर आदि रोगों में किया जाता है | बाजार में यह डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, दिव्य पतंजलि, धूतपापेश्वर एवं श्री मोहता आयुर्वेदिक बीकानेर आदि फार्मेसी की उपलब्ध है |
धन्यवाद
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