सेमल (Bombax Ceiba)
परिचय : सेमल के पेड़ को कॉटन ट्री भी कहा जाता है | इसके फलों के पकने पर उसमे से मुलायम रुई प्राप्त होती है जिसका प्रयोग गद्दे या तकियों को भरने के लिए किया जाता है | सेमल का पेड़ बड़ा एवं मोटा होता , तने एवं डालियों पर कांटे लगे रहते है | आयुर्वेद एवं घरेलु चिकित्सा में इसका प्रयोग कई बीमारियों के लिए किया जाता है |
पेड़ पर जनवरी – फरवरी के महीने में लाल रंग के फुल लगते है एवं अप्रेल के महीने में फल लगते है फलों के पकने पर इनमे से रुई एवं बीज निकलते है | सेमल के पौधे से एक प्रकार का गोंद निकलता है जिसे मोचरस कहा जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में मोचरस, सेमल के कांटे, जड़ एवं सेमल की छाल का अधिक प्रयोग किया जाता है |
नए पेड़ की जड़ को मुसल नाम से पुकारा जाता है , जिसका प्रयोग नपुंसकता एवं मर्दाना ताकत के लिए प्रमुखता से किया जाता है | इसके वर्क्षों से निकलने वाली रुई के गद्दे एवं तकिये ही भरे जा सकते है इन्हें काता नहीं जा सकता |
सेमल के गुण धर्म
यह रस में मधुर होता है , गुणों में लघु एवं स्निग्ध और सेमल का वीर्य शीत होता है अर्थात यह शीतलता देता है | अपने इन्ही गुणों के कारण यह वात – पित नाशक, शुक्र बढ़ाने वाला, कफ की व्रद्धी करने वाला एवं शरीर को बल प्रदान करने वाला होता है | चिकित्सार्थ इसके पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है |
सेमल के फायदे या लाभ
इसके प्रयोग से विभिन्न समस्याएँ जैसे – वात व्रद्धी, पित की अधिकता , नपुंसकता , शीघ्रपतन, कामोदिपक , फोड़े – फुंसियां , रक्त पित , अतिसार , गांठे एवं रक्त प्रदर आदि दूर होती है | विभिन्न रोगों में इसके लाभ एवं प्रयोग निम्न है –
प्रदर रोग में सेमल का उपयोग
प्रदर रोग में इसके फूलों का प्रयोग किया जाता है | इसके परिपक्व फूलों को छाया में सुखाकर पिसलें | इसके तीन ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर गाय के 10 ग्राम घी के साथ रोज सुबह एवं शाम चाटें | रक्त प्रदर की समस्या में यह अत्यंत लाभ प्रदान करता है | गावों में इसके फूलों की सब्जी बना कर भी उपयोग की जाती है |
रक्त प्रदर के दुसरे प्रयोग में इसके गोंद को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में नित्य सुबह शाम प्रयोग करने से भी फायदा मिलता है |
अतिसार में सेमल के फायदे
अतिसार एवं पेचिस में भी इसका उपयोग चमत्कारिक परिणाम देता है | अतिसार की समस्या में इसके पतों का डंठल तोड़ ले एवं इसका काढ़ा बना ले | इस काढ़े को 50 ML की मात्रा में रोगी को दिन में तीन बार देने से अतिसार बंद हो जाते है |
पेचिस होने पर इसके फूल का उपरी भाग रात के समय पानी में भिगों कर सुबह के समय इस पानी में मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेचिस की समस्या भी जाती रहती है |
खुनी बवासीर
खुनी बवासीर में दूध में सेमल के फुल, मिश्री एवं खसखस इन तीनो को सामान मात्रा में मिलाकर आंच पर गरम करें | जब दूध गाढ़ा होकर मावे जैसा हो जाए तो इसे उतार कर ठंडा करले | नित्य सुबह एवं शाम इसको खाने से खुनी बवासीर में लाभ मिलता है | अगर बवासीर के साथ कब्ज की समस्या है तो पंचसकार आदि चूर्ण का प्रयोग कर सकते है |
मर्दाना ताकत के लिए
सेमल के नए पौधे की जड़ को 500 ग्राम की मात्रा में लें | अब इस जड़ को थोडा कूटकर कुचल ले | गाय के 250 ग्राम दूध में इस कुटी हुई जड़ को रात भर के लिए भिगों दें | सुबह दूध में जड़ को मसल कर निकाल दें , इस दूध में मिश्री मिलाकर सेवन करें |
इस औषधीय दूध का प्रयोग निरंतर महीने भर करने से व्यक्ति की धातु पुष्ट होती है एवं शरीर में वीर्य की व्रद्धी होकर व्यक्ति कामशक्ति से परिपूर्ण हो जाता है | धातु दुर्बलता , वीर्य में शुक्राणुओं की कमी एवं नपुंसकता जैसे रोगों में यह प्रयोग अत्यंत लाभ देता है |
काम शक्ति में व्रद्धी के लिए सेमल की छाल का रस निकाल ले | इस रस में मिश्री मिलाकर सेवन करने से नपुंसकता खत्म होती है , रोगी कमोदिपक गुणों से भर उठता है |
सेमल का फल का चूर्ण एवं एवं चीनी को सामान मात्रा में लेकर इनको जल में घोट ले | नित्य प्रयोग से मर्दाना ताकत में इजाफा होता है |
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