बस्ती कर्म
बस्ती कर्म आयुर्वेद के पंचकर्म चिकित्सा पद्धती से सम्बंधीत क्रिया है । आयुर्वेद के बहुत से आचार्य इसे सहायक चिकित्सा के रूप में भी देखते है। बल्की बहुत से ऐसे वैद्य भी है जो बस्ती कर्म को पूर्ण चिकित्सा का दर्जा देते हैं। आयुर्वेद के आचार्य चरक ने बस्ती कर्म को विरेचन से उत्तम माना है। अगर सही अर्थों मे देखा जाऐ तो बस्ती कर्म विरेचन से कहीं श्रेष्ठ है
इसकी श्रेष्ठता समझने से पहले आप को यह जानना होगा की बस्ती कर्म किसे कहते हैं ? जिस क्रिया में औषधीयों अर्थात क्वाथ, तैल, मेडिकेटेड घी, क्षीर, आदि को रोगी को मुंह मार्ग से न देकर । इन औषधीयों को रोगी के गुदा मार्ग से शरीर में प्रविष्ट करवाया जाता है इसे ही बस्ती कर्म कहते हैं। यह कुछ-कुछ आधुनिक ऐनीमा थेरेपी जैसा है लेकिन फिर भी ऐनीमा से बहुत अधिक भिन्न है।
पंचकर्म की विरेचन चिकित्सा पद्धती से यह बिल्कुल भिन्न और श्रेष्ठ है क्योंकि अगर औषधी मुख मार्ग से दी जाती है तो सबसे पहले उसका चया-पचय होता है ओर उसके बाद औषधी अपना काम करती है। लेकिन बस्ती कर्म में औषधी गुदा मार्ग से दी जाती है जिससे यह चया-पचय का समय बच जाता है ओर औषधी अपना कार्य भी जल्दी करने लगती है एवं परिणाम भी तीव्रता से प्राप्त होता है।
कैसे किया जाता है बस्ती कर्म
बस्ती कर्म करने से पहले रोगी की प्रकृति ओर बस्ती कर्म के योग्य और अयोग्य होने की जांच चिकित्सक के द्वारा की जाती है। अगर रोगी बस्ती कर्म के योग्य है तभी उसे बस्ती कर्म दिया जाता है एवं उसकी मात्रा निर्धारित की जाती है। उसके पश्चात रोगी के रोग अनूसार औषध योग निर्माण किया जाता है अर्थात अलग-अलग रोगों में बस्ती का प्रकार और मात्रा बदलती रहती है। इसके पश्चात रोगी टेबल पर लेटाया जाता है। रोगी को वाम-पाश्र्व स्थिती में लेटाया जाता है अर्थात ऐसी स्थिती में लेटाया जाता है कि दी जाने वाली औषध सीधे रोगी के मलाशय में अच्छी तरह प्रविष्ट हो जाये।
अब अच्छी तरह से मथी हुई और सुखोष्ण औषधी को बस्ती यंत्र के द्वारा रोगी की गुदा में प्रेशर से पहुंचाया जाता है। गुदा में औषधी देने के पश्चात रोगी को ऐसे ही एक-दो मिनट तक रूकने के लिए कहा जाता है । जब रोगी को मल त्याग की इच्छा प्रबल होती है तब रोगी को मलत्याग करवाया जाता है। इस प्रकार से बस्ती कर्म किया जाता है।
बस्ती के प्रकार
आयुर्वेद शास्त्रों मे बस्ती के कई प्रकार बताये गये हैं अर्थात अलग-अलग विधियों के आधार पर, अधिष्ठान के आधार पर , औषध द्रव्यों के आधार पर आदि । लेकिन सबसे अधिक काम मे ली जाने वाली बस्तीयां तीन प्रकार की है
1. निरूह
2. अनुवासन
3. उत्तर
1 . निरूह बस्ती – वह बस्ति जो पक्वाशय या मलाशय में अधिक देर तक नहीं रूक पाती उसे तथा कुछ ही मिनट में बाहर निकल जाती है उसे निरूह बस्ती कहते हैं। निरूह बस्ती को आस्थापन बस्ती भी कहा जाता है, कयोंकि यह आयु को बढाने वाली होती है। निरूह बस्ती का निर्माण – स्नेह, लवण, दुध, क्वाथ, मधुयष्टी, मुस्ता, कपूर, चंडा, बिल्व, काकोली, वृद्धि, मेदा, सर्षप, त्रिकटु, त्रिफला, हिंग, वचा, हरड़, चंदन, मदनफल, मंजिष्ठा, सौंफ आदि द्रव्यों से किया जाता है।
2 आनुवासन बस्ती – अनुवासन बस्ति मंे स्नेह या औषध द्रव निरूह की अपेक्षा कम मात्रा में प्रयोग किया जाता है जिससे वह बस्ति पक्वाशय में अधिक देर तक ठहर सके। इसे ही अनुवासन बस्ति कहते हैं। अनुवासन बस्ती में मुख्यतया स्नेह (तेल, घी) किया जाता है अतः इसे स्नेह बस्ती भी कहते हैं। अनुवासन बस्ति में स्नेह के साथ-साथ कुछ अन्य औषधीयां भी काम में ली जाती है जैसे पाटला, अग्निमन्थ, बिल्व, श्योनाक, काश्मरी, शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, छोटी कटेरी, बला, एरण्ड, कुलत्थ, पुननर्वा, यव, बेर, गुडूची, पलाश, रास्ना आदि द्रव्य है जिसे उपयोग में लेकर अनुवासन बस्ती तैयार की जाती है ।
3 उत्तर बस्ती – जो बस्ति उतर मार्ग से दी जाती है उसे उतर बस्ति कहते है। उत्तर मार्ग से अभिपा्रय मूत्राशय और गर्भाशय से हैं। उत्तर का अर्थ श्रेष्ठ भी होता है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ गुणों से युक्त होने वाली बस्ति। इस बस्ती का इस्तेमाल पत्थरी, मुत्रविकारों, बस्तिशूल, मधुमेह आदि रोगों में किया जाता है।
बस्ती कर्म के फायदे एवं महत्व
शारीरिक सौन्दृय बढाती है बस्ती चिकित्सा
बस्ती चिकित्सा द्वारा चेहरे पर झुर्री पड़ना, असमय में बाल सफेद होना, और कम उम्र में बालों का उड़ना आदि को रोका जा सकता हैं। बस्ती कर्म करवाने से लम्बे समय तक यौवन बरकरार रहता है। इसके प्रयोग से आने वाले बुढापें को लम्बे समय तक रोक सकते हैं।
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वातदोष में बस्ति कर्म के फायदे
हमारे शरीर में आधे से अधिक रोग वात वृद्धि के कारण होते हैं एवं दूसरे दोषों से होने वाले रोगों में भी वात एक प्रमुख कारण होता है, इस प्रकार का वात दोष दुषचिकित्स्य लगता है । प्रबलतम वातदोष की चिकित्सा भी बस्ती के द्वारा आसानी से की जा सकती है। इसीलिए बस्ति को चिकित्सार्द्ध कहा जाता है।
गैस की समस्या
मल, मुत्र और स्वेद आदि की विकृति में वायुविकार की मुख्य भूमिका होती है। क्योंकि वायु के विक्षेप और संघात के कारण ही मल, मुत्र और गैस आदि के रोग उत्पन्न होते है । जिनकी सर्वोत्कृष्ट चिकित्सा बस्ति कर्म ही होती है।
यौन शक्ति और शारीरिक दुर्बलता में अमृत समान
यौन कमजोरी में बस्ति चिकित्सा द्वारा यौन शक्ति को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। मर्दाना शक्ति की कमी में बस्ति कर्म करवाने से योवन फिर से लौट आता है। बस्ति द्वारा कमजोर शरीर वाले व्यक्ति भी अपने शरीर की कायाकल्प कर सकते हैं। बृहंणबस्ति द्वारा कृश शरीर व्यक्ति भी सुन्दर शरीर पा सकता है। बृहंण का अर्थ ही होता है वृद्धि करना या पोषित करना। अतः बृहणबस्ति के द्वारा कृशप्राय शरीर वाला व्यक्ति भी सुढौल शरीर प्राप्त कर सकता है। इसी क्रम में जो व्यक्ति स्थूल शरीर वाले हैं अर्थात मोटापे से ग्रसित हैं वे भी अपने शरीर का मोटापा घटा सकते हैं।
सम्पूर्ण आरोग्यता
बस्ति चिकित्सा व्यक्ति को सम्पूर्ण आरोग्यता प्रदान करती है। अगर बस्ति का सम्यक प्रयोग किया जाये तो यह शरीर का संवर्धन , आयु और शरीर के तेज को बढाती है। बस्ती कर्म वातज-पितज-कफज-रक्तज और सन्नीपातज सभी विकारों में लाभकारी सिद्ध होता है। बस्ती कर्म शरीर को हष्ट-पूष्ट बनाकर वर्ण को निखारने का काम भी करती है। अतः सम्पूर्ण आरोग्यता के लिए प्रशिक्षित वैद्य से जीवन में एक बार अवश्य बस्ती करवाना चाहिए।
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धन्यवाद |
Sir I m ulcerative colitis patient can bhastrika karma is good for that disease.
Sanjiv ji,
Can you explain more about Your disease ?
How much its cost, Basti Karma. Please tell me.