द्राक्षासव किस रोग की दवा है? जानें इसके उपयोग एवं बनाने की विधि

द्राक्षासव किस रोग की दवा है: द्राक्षासव आयुर्वेद का एक बेस्ट हेल्थ टॉनिक प्रोडक्ट है। जो निर्बलता को दूर करने के लिए अर्थात शरीर में आई कमजोरी को दूर करने के लिए उपयोग में लिया जाता है। कमजोरी को दूर करने के साथ-साथ द्राक्षासव ग्रहणी, रक्त गुल्म, पेट के रोगों, नेत्र रोगों, शिरो रोग, बुखार,पांडु और कमला रोग को नाश करने में भी सर्वश्रेष्ठ औषधि है।

द्राक्षासव शरीर में किसी रोग के कारण या बिना किसी रोग के ही आने वाली कमजोरी में विशेष कर उपयोगी दवा है।यह सूखे अंगूर अर्थात मुनक्का द्वारा तैयार की जाती है। रोगों को नाश करने के साथ-साथ यह बल प्रदान करती है तथा पाचक अग्नि को जाग्रत करती है जिससे भूख खुलकर लगनी शुरू हो जाती है तथा शरीर में बल की अनुभूति होती है।

द्राक्षासव किस रोग की दवा है? जानें

द्राक्षासव को किस प्रकार तैयार किया जाता है तथा यह किन-किन रोगों में उपयोग में ली जाती है और इसके सेवन विधि व मात्रा क्या है आदि सभी के बारे में जानने के लिए आप इस आर्टिकल को अंतिम तक अवश्य पढ़े। आज हम इस आर्टिकल में द्राक्षासव के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देंगे की द्राक्षासव किस रोग की दवा है। तो चलिए जानते हैं – 

द्राक्षासव को बनाने के लिए उपयोग में ली जाने वाली औषध

द्राक्षासव को बनाने के लिए द्राक्षा अर्थात मुनक्का के साथ-साथ अन्य कई औषधीय को भी काम में लिया जाता है जो इस प्रकार है- 

  • मुनक्का
  • मिश्री
  • शहद
  • धाय के फूल
  • दालचीनी  
  • तेज पत्ता 
  • इलायची 
  • नागकेसर 
  • लौंग 
  • जायफल 
  • काली मिर्च
  • पीपल
  • चित्रक मूल
  • चव्य
  • जौ 
  • पीपला मूल
  • निर्गुंडी के बीच 
  • कपूर,अगर, चंदन- धुआ देने के लिए

द्राक्षासव बनाने की विधि | Manufacturing Process of Drakshasava

  • सबसे पहले सूखे अंगूर या द्राक्षा को कषाय बनाने के लिए 40 लीटर जल में उबालें।
  • जब चौथा भाग / 10 लीटर रह जाने पर ठंडा होने के लिए रख दें।
  • जब ठंडा हो जाए तो उसमें शक़्कर / मिश्री और शहद अच्छी तरह से मिला ले।
  • मिलाने के बाद अब इसे अच्छी तरह से छान लें। 
  • इसके बाद इसमें तेजपत्ता,दालचीनी, इलायची, नागकेसर, लॉन्ग, जायफल, काली मिर्च, चित्रक मूल, पीपला मूल और निर्गुंडी के बीच आदि सभी को मिला दे तथा जौ भी कूट कर मिला दे। 
  • फिर जिस पात्र/बर्तन में भरना हो उसमें कपूर, अगर और चंदन का धुआ देकर आसव को भर दें।
  • बर्तन का मुख बंद करके एक महीने तक या तीन हफ़्तों तक साफ़ स्थान पर रख दें। 
  • फिर तीन हफ़्तों के बाद बर्तन का मुख खोलकर संधान को जांचने के बाद छानकर कांच की बोत्तल में भरकर सुरक्षित रख लिया जाता है।
  • इस प्रकार हमारा द्राक्षासव तैयार हो जाता है।
  • आजकल हर आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर द्राक्षासव उपलब्ध है अतः आप वहां से खरीद कर उपयोग में ले सकते हैं।

द्राक्षासव किस रोग की दवा है जानिए

द्राक्षासव ग्रहणी, अर्श,पेट के रोगों, कृमि, नेत्र रोगों, गले के रोग, बुखार ,खून की कमी और कामला रोग को नाश करने में सर्वश्रेष्ठ औषधि है। इसके साथ यह शरीर को बल और अग्नि प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त इसको निम्न रोगों में उपयोग में लिया  जाता है जो इस प्रकार है- 

  • किसी भी रोग में शरीर में आई कमजोरी और थकान को दूर करने के लिए द्राक्षासव उपयोगी दवा है।
  • भोजन के प्रति अरुचि, थकावट और बेचैनी  को दूर करके शरीर में शारीरिक उत्साह को बढ़ाता है।
  • द्राक्षासव के सेवन से नींद आराम से आती है।
  • इसके सेवन से पेट साफ हो जाता है और मन प्रफुल्लित  बना रहता है।
  • उदावर्त रोग जिसमें अमाशय से गैस का ऊपर आना यदि प्रबल ना हो गया हो तो इसका सेवन अच्छा माना जाता है।
  • पित्तज गुल्म में बुखार, प्यास, पूरे शरीर का लाल हो जाना, मुख मंडल का लाल हो जाना, भोजन के दो-तीन घंटे पर धीरे-धीरे पेट में दर्द होना, जिस स्थान पर हाथ लगाए वहीं पर दर्द होना इस तरह गुलाम पर स्पर्श करने से तेज दर्द होना आदि लक्षण वाले गुल्म में यह सबसे उपयोगी आसव है।
  • जिस स्त्री को अभी-अभी संतान हुई हो उसे गलत भोजन सेवन करने पर या कई बार बार-बार गर्भपात होने वाली स्त्री को रक्त गुल्म  हो गया हो और गर्भधारण के समान प्रतीत होने वाले लक्षण हो बार-बार उल्टी आती हो तो द्राक्षसव अधिक उपयोगी रहता है।
  • कई बार लंबे समय तक बुखार रहने के कारण रोगी की भोजन के प्रति इच्छा मर जाती है अर्थात उसे भूख लगना बंद हो जाती है ऐसी स्थिति में कुछ समय तक लगातार द्राक्षासव का सेवन करने पर भूख खुलकर लगनी शुरू हो जाती है।
  • बुखार या किसी भी रोग के कारण यदि रोगी के शरीर में कमजोरी आ गई हो तो भी द्राक्षासव उपयोगी दवा है यह शरीर में आई कमजोरी को दूर करके शारीरिक उत्साह पैदा करता है।
  • छोटे बच्चों में कफ के कारण उत्पन्न होने वाले विकारों में उत्तम दवा है।
  • गले में कफ के कारण होने वाले दर्द व सूजन को दूर करने के लिए द्राक्षासव उत्तम कार्य करता है।
  • यह कफ विकारों को दूर करने के साथ-साथ कफ से होने वाली घबराहट को भी दूर करता है। यदि छोटे बच्चों को थोड़ी मात्रा में गर्म जल में मिलाकर दिया जाए तो जल्द ही कफ को शरीर से बाहर निकाल देता है।
  • यह आसव टीबी के कीटाणुओं को नष्ट करता है और टीबी से पीड़ित व्यक्ति को बल प्रदान करता है क्योंकि टीबी के कारण व्यक्ति कमजोर हो जाता है तथा उसकी भूख मर जाती है। इसके सेवन से जल्द ही उसकी कमजोरी दूर होकर फिर से उसकी भोजन के प्रति रुचि शुरू हो जाती है।
  • द्राक्षासव शरीर में रक्त को बढ़ाता है जिससे खून की कमी दूर हो जाती है।

द्राक्षासव की सेवन विधि व मात्रा

  • 2 से 5ml की मात्रा में समान भाग जल मिलाकर से दिन में दो बार सेवन करें।
  • इसके अतिरिक्त आप चिकित्सक के परामर्श के अनुसार सेवन कर सकते हैं।

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