ऋषि वाग्भट के 21 आयुर्वेदिक नुस्खे (पीडीऍफ़ फाइल) जिन्हें आपको अजमाना चाहिए

ऋषि वाग्भट के आयुर्वेदिक नुस्खे PDF: आयुर्वेद में अष्टांग ह्रदय ग्रन्थ का एक विशिष्ट स्थान है, जिसकी रचना महर्षि वाग्भट जी ने की थी । इस पुस्तक में बताये गए नुस्खे आज भी उतने ही सार्थक है जितने प्राचीन समय में थे । ऋषि वाग्भट ने इस ग्रन्थ में रोगों के निवारण के लिए 7000 से अधिक सूत्र बताये थे जिनको अपनाकर एक रोगी व्यक्ति निरोगी हो सकता है एवं निरोगी हमेंशा स्वस्थ रह सकता है ।

ऋषि वाग्भट जी के आयुर्वेदिक नुस्खे

आज की इस पोस्ट में हम आपको ऋषि वाग्भट के 21 आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में बताएँगे जिन्हें अपनाकर आप आजीवन स्वस्थ रह सकते हैं । ये नुस्खे आपको आहार एवं विहार का ज्ञान भी करवाएंगे । इससे पहले हम ये जान लेते हैं कि ऋषि वाग्भट कौन थे ।

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ऋषि वाग्भट का परिचय

ये आयुर्वेद के प्रशिद्ध आचार्य थे जिन्होंने अष्टांग संग्रह और अष्टांग हृदयं ग्रन्थ की रचना की । अष्टांग संग्रह में इनका परिचय मिलता है । इनका जन्म सिन्धु देश में हुआ था । वाग्भट जी के गुरु अवलोकितेश्वर जी थे । ऋषि वाग्भट जी ने बहुत से आयुर्वेदिक ग्रंथों की रचना की थी । जिनमे से अष्टांग संग्रह और अष्टांग हृदयम ग्रन्थ सुप्रशिद्द रचनाओं में से एक हैं ।

इनका ग्रन्थ अष्टांग हृदयं में आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए औषधीय ज्ञान, दैनिक और मौसमी निरिक्षण, रोगों के कारण, उत्पत्ति एवं उपचार के बारे में बताया गया है । साथ ही इसमें शरीर रचना, शरीर के अंग, मनुष्य का स्वभाव एवं उनके आचरण के बारे में उल्लेख मिलता है ।

इसी ग्रन्थ में आपको रोग जैसे ज्वरं, अस्थमा, मिर्गी, अपस्मार, पांडु, कामला, अतिसार जैसे विभिन्न रोगों की चिकित्सा का वर्णन मिलता है ।

ऋषि वाग्भट द्वारा बताये गए 30 आयुर्वेदिक नुस्खे हैं ये

ऋषि वाग्भट जी ने अनेक रोगों एवं औषधियों के बारे में जानकारी दी है उनमें से कुछ रोगों एवं औषधीय नुस्खों के बारे में उनके द्वारा बताई गई जानकारी हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे तो चलिए जानते हैं वाग्भट जी द्वारा बताए गए 30 आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में

पहला नुस्खा (1): अजीर्ण रोग में निम्बू

👉 अजीर्ण रोग, अपच एवं गैस आदि में अगर पेट में दर्द हो रहा हो तो एक कप गर्म पानी में नींबू निचोड़ कर इसमें एक चम्मच चीनी, जरा सा नमक एवं पिसी हुई अजवाइन और जीरा मिला कर पीयें अजीर्ण, अपच या गैस में तुरंत राहत मिलती है ।

👉 भूख की कमी में भोजन से पहले एक गिलास पानी में आधा नींबू एक चम्मच अदरक का रस और स्वाद अनुसार नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है इसी प्रयोग में आप नींबू भुना हुआ जीरा काला नमक और अदरक इन सब की चटनी बनाकर खा सकते हैं इस प्रकार सेनींबू का प्रयोग करने पर अजीम रोग में लाभ मिलता है

दूसरा नुस्खा (2): नारंगी का प्रयोग

अमाशय, यकृत, पीलिया, आंतों की सफाई, हृदय और दांतों के रोग, मानसिक थकावट, खुस्की, सस्ती, प्यास अधिक लगना, चेहरे पर फुंसियां होना आदि विकारों को दूर करने के लिए लंबे समय तक नित्य नारंगी खाएं या इसका रस निकालकर इसमें चीनी और सौंठ मिला सकते हैं इस प्रकार से नारंगी का उपयोग करने पर आपको उपरोक्त सभी रोगों में लाभ मिलता है ।

तीसरा नुस्खा (3): केला ऋषि वाग्भट नुस्खा

👉श्वेत प्रदर की समस्या में कच्चे केलों को छायाँ में सुखाकर बारीक़ पीस लें और समान मात्रा में देशी खांड मिलालें । इसकी दो चम्मच सुबह – शाम गर्म दूध से फांकी ले । इस प्रकार से सेवन करने से श्वेत प्रदर ठीक हो जायेगा ।

👉पेचिश की समस्या में एक गिलास गर्म दूध को फाड़ कर छेना बना लें । इस छेने में पके हुए दो केले मथ लें और खा जाएँ । इसप्रकार से केले का सेवन करने से पेचिस ठीक हो जाता है ।

चौथा नुस्खा (4): मौसमी का प्रयोग

गुर्दे के रोगों में मौसमी या मौसमी का ज्यूस कभी भी प्रयोग में न लें । यह जहर की तरह कार्य करती है । जैसे ही गुर्दे के रोगी को मौसमी का फल या इसका ज्यूस पिलाया जाता है । तुरंत ही आफरा आ जाता है एवं पेट दर्द एवं अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।

पांचवा नुस्खा (5): आंवले का प्रयोग

👉ऋषि वाग्भट जी अनुसार जो आंवला आकार में बड़ा हो, गुदे में रेशे न हों, बेदाग और हलकी सी लाली लिए हुए हो वो आंवला सबसे अच्छा माना जाता है । यह शीतल प्रकृति का होता है ।

👉बुढ़ापे की कमजोरी में शरीर में चुने की मात्रा बढ़ जाती है । चुने की अधिकता हड्डियों, स्नायु और रक्तवाहिनियों को कठोर बना देती है । इससे शरीर की गतिशीलता में अवरोध उत्पन्न हो जाता है । आंवले का नित्य सेवन इस कठोरता को दूर करके सारी क्रियाओं को समुचित रखता है । आंवला बुढ़ापे के लिए अमृत तुल्य माना गया है ।

छठवाँ नुस्खा (6): शहतूत का प्रयोग

👉लू लगने या गर्मी से बचने के लिए रोजाना शहतूत खाना चाहिए । पेट, गुर्दे और पेशाब की जलन शहतूत खाने से दूर होती है । आँतों के घाव और यकृत रोग ठीक होते हैं । नित्य खाते रहने से मस्तिष्क को ताकत मिलती है ।

👉फोड़ा होने या फुंसियों की शिकायत में शहतूत के पते पर पानी डालकर इसे पीसकर गर्म करके फोड़े पर बंधने से पक्का हुआ फोड़ा फट जाता है । और लगातार बांधते रहने से घाव भी भर जाता है ।

सातवाँ नुस्खा (7): नारियल का प्रयोग

👉ऋषि वाग्भट जी के आयुर्वेदिक नुस्खे pdf में आपको हम निश्चित ही उपलब्ध करवाएंगे । इन्ही नुस्खों की पीडीऍफ़ फाइल आपको निचे सलंग्न मिल जाएगी । चलिए उससे पहले जानलेते हैं । नारियल के नुस्खे

👉मक्खन में पीसी हुई मिश्री समान मात्रा में मिलाकर इच्छानुसार चाट लें । फिर चौथाई गोला कच्चे नारियल का खूब चबा – चबाकर खाएं । इसके बाद दो चम्मच सौंफ खाएं । यह पुरे गर्भकाल में खाते रहने से संतान गोरी पैदा होती है । साथ ही माँ और संतान दोनों हष्ट – पुष्ट पैदा होती है ।

आठवां नुस्खा (8): पपीता का प्रयोग

👉पेट में अगर कीड़े हों तो पका हुआ पपीता खाने से पेट के उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं । पपीता पौषक तत्वों से भरपूर होता है । इसमें विटामिन्स, प्रोटीन, मिनरल एवं खनिज सभी की प्रधानता रहती है ।

👉पके हुए पपीते का गुदा कुछ सप्ताह चेहरे पर मलने से छाईयां व मुहांसे साफ़ हो जाते हैं ।

नौंवा नुस्खा (9): प्याज के नुस्खे

👉प्याज और नमक को पीसकर फोड़े पर लगाने से लाभ होता है । अगर मुंह में प्याज की दुर्गन्ध आती हो तो प्याज खाने के तुरंत बाद गुड़ खा लें । इससे प्याज की गंध नहीं आती ।

👉अगर दस्त हो रहें हो तो एक प्याज काटकर दही में मिलाकर सेवन करने से दस्त में तुरंत राहत मिलती है ।

दसवां नुस्खा (10): लहसुन का नुस्खा

👉खांसी आने पर एक गाँठ लहसुन को एक गिले कपडे में लपेट कर आंच में सेंके । फिर इसे छीलकर खा जाएँ । इससे खांसी की समस्या दूर हो जाएगी ।

👉साइटिका की समस्या में भोजन करते समय कच्चे लहसुन की पांच कली नित्य चबा – चबा कर खाएं । साथ ही कच्चे लहसुन की चटनी भी खाएं । इससे साइटिका के रोग में आराम मिलेगा ।

ग्यारवाँ नुस्खा (11): शक्तिवृद्धक नुस्खा

👉एक गाँठ लहसुन की छीलकर प्रत्येक कली के छोटे – छोटे टुकड़े करलें । इसे एक चम्मच घी में सेके । सेंकते हुए जब लहसुन का रंग बादामी रंग का हो जाये तब उसमे बुरा डालकर मिलाएं, यह नित्य प्रात: खाएं । इस प्रकार से लहसुन को खाने से शरीर में शक्ति का वृद्धन होता है ।

बारहवां नुस्खा (12): मूली का प्रयोग

👉सुबह के भोजन के समय मूली एसे खाएं कि आपका पेट भर जाए । आधा पेट भरकर भोजन करें । इस प्रकार से भोजन करने से आपका मधुमेह ठीक हो जायेगा ।

👉जोड़ों के जकड़न दूर करने हेतु मूली के बीज पीसकर तिल के तेल में गर्म करके जोड़ों पर लेप करके पट्टी बांधे मूली, अदरक, पत्तागोभी का रस निकालकर एक कप धुप में बैठ कर पीएं । इस प्रकार से सेवन करने से जोड़ो के दर्द एवं गठिया रोग में आराम मिलेगा ।

तेरहवां नुस्खा (13): मेथी का प्रयोग

👉मेथी का साग खाने से भूख बढती है । अगर इसके साग को घी में तलकर खायेंगे तो शरीर में पित्त विकार, सुस्ती, जी मचलाना जैसी समस्याओं में लाभ मिलेगा ।

👉अगर दर्द एवं गैस की समस्या हो तो 100 ग्राम दाना मेथी तवे पर इस तरह सेंके, भुने की आधी कच्ची एवं आधी सिकी हुई रहे । फिर इसे दरदरा कूट लें । इसमें 25 ग्राम अर्थात चौथाई भाग काला नमक मिलाएं । इसकी सुबह, शाम दो चम्मच गर्म पानी से फंकी लें । इससे जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, घुटनों का दर्द, आमवात का दर्द तथा हर प्रकार का दर्द ठीक हो जायेगा । शरीर में गैस भी नहीं बनेगी ।

चौदहवां नुस्खा (14): शक्करकंद का प्रयोग

👉पुरुषों में वीर्यवृद्धि के लिए रोजाना 50 ग्राम शक्करकंद को पानी में उबालकर या आग के भोभलों में सेंक कर खाने से शरीर में वीर्य का विस्तार होने लगता है । इससे वीर्य बढ़ता, गाढ़ा होता है, एवं मर्दाना ताकत में बढ़ोतरी होती है ।

पन्द्रहवां नुस्खा (15): मूंगफली का प्रयोग

👉महिलाओं में दूध की वृद्धि करने के लिए नित्य 15 दिन कच्ची ताजा निकली हुई मूंगफलियों को सेंक कर खाने से स्त्रियों में दूध की वृद्धि होती है ।

👉त्वचा को कोमल बनाने के लिए सर्दियों के मौसम में नित्य मूंगफली के तेल से हाथ एवं पैरों की मालिश करने से पैरों की एडियों एवं हाथों की त्वचा कौमल बनती है ।

सोलहवां नुस्खा (16): बाजरे का प्रयोग

👉बाजरा उष्णप्रकृति के एक सुपर फ़ूड है । ऋषि वाग्भट जी अनुसार सर्दियों के मौसम में बाजरा का सेवन करना चाहिए । इससे शरीर में उष्णता आती है एवं शारीरिक लाभ मिलता है ।

👉सर्दियों में नित्य बाजरे की रोटी में नूनी घी या तिल लगाकर खाने से लाभ मिलता है । अगर बाजरे की रोटी में तिल मिलाकर रोटी बनाई जाये तो यह और अधिक लाभ देती है ।

सत्रहवां नुस्खा (17): मुलहठी का प्रयोग

👉अगर किसी भी मौसम में कफ की वृद्धि हो गई हो या खांसी आती हो तो 5 ग्राम मुलहठी चूर्ण, 2 कप पानी में डालकर इतना उबालें कि पानी आधा रह जाये । इस पानी को आधा सुबह और आधा शाम को पीने से खांसी एवं कफ में आराम मिलता है । इस प्रकार से 3 से 4 दिन तक प्रयोग करना चाहिए ।

अठारहवां नुस्खा (18): सरसों तेल का प्रयोग

👉जोड़ों के दर्द में सरसों के तेल की मालिश करने से लाभ मिलता है । सरसों के तेल को हल्का गरम करके प्रभावित स्थान पर मालिश करने से लाभ मिलेगा ।

👉ऋषि वाग्भट जी के आयुर्वेदिक नुस्खों में नमक और सरसों के तेल को मिलाकर छाती पर मालिश करने का विवरण भी मिलता है । इस प्रकार से मालिश करने से दमा की समस्या में लाभ मिलता है ।

उन्नीसवां नुस्खा (19): तिल का प्रयोग

👉2 चम्मच पीसी हुई पिली राल, एक चम्मच पीला मोम और दो चम्मच तिल का तेल और तारामीरा का तेल । इन सब को मिलाकर पेस्ट बना लें । इस पेस्ट को त्वचा विकारों में लगाने से त्वचा के संक्रमण से राहत मिलती है ।

बीसवां नुस्खा (20): लौंग का प्रयोग

👉आचार्य ऋषि वाग्भट जी के आयुर्वेदिक नुस्खे पीडीऍफ़ के अनुसार हिचकी समस्या में दो लौंग चबा कर गर्म पानी पीने से हिचकी बंद हो जाती है । यदि गर्म पानी उपलब्ध न हो तो दो लौंग मुंह में रखकर धीरे – धीरे चूसते रहें ।

👉सिरदर्द, नजला, जुकाम, आदि की समस्या में तुलसी के 15 पत्ते, चार लौंग दोनों पर जरा सा घी लगाकर आग पर डालकर धुंवा नाक से सूंघे । इस प्रकार से लौंग का प्रयोग करने से इन सभी समस्यों में आराम मिलता है ।

इक्कीसवां नुस्खा (21): जीरा का प्रयोग

जीरे को हाजमे के लिए उत्तम माना जाता है । जीरा पेट की एंथन को ठीक करता है, अपच, गैस के कारण दर्द और आँतों के दर्द को ठीक करता है । जीरा, सौंफ और धनिया हरेक 40 ग्राम सेंक लें । सकने के बाद इसमें अनारदाना 40 ग्राम, काला नमक 20 ग्राम, निम्बू का सत 10 ग्राम और चीनी 200 ग्राम सब मिलाकर पीसलें । इसकी एक चम्मच नित्य सुबह शाम लें ।

ऋषि वाग्भट के आयुर्वेदिक नुस्खे PDF फाइल Download

आप निम्नोक्त दिए गए पीडीऍफ़ फाइल लिंक से इन सभी उपरोक्त नुस्खों को सीधे ही डाउनलोड कर सकते हो । यहाँ हमने इन सभी नुस्खों की एक पीडीऍफ़ फाइल बनाई है और हमारे सर्वर पर अपलोड की है । जिससे आप इसे आसानी से डाउनलोड भी कर सको ।

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