विपाक की परिभाषा एवं अर्थ आयुर्वेद अनुसार जानें

विपाक की परिभाषा: आयुर्वेद में विपाक का अपना एक अलग स्थान है । औषध द्रव्यों में सप्तपदार्थ अवश्य होते हैं तभी ये द्रव्य कहलाते हैं । प्रत्येक औषधि में सप्तपदार्थ ये हैं – द्रव्य, रस, गुण, वीर्य, विपाक, रोगप्रभाव, एवं कर्म । इन्ही में विपाक भी होता है जो पाचन के पश्चात आने वाले आहार एवं औषधि के स्वाद को इंगित करता है ।

आज हम आपको विपाक की परिभाषा, इसका अर्थ एवं प्रकार आदि के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे ।

विपाक क्या है ? (What is Vipaka in Hiindi)

विपाक से तात्पर्य विशिष्ट पाक से है अर्थात खाए हुए आहार का सम्यक पाचन होना होता है ।

आहेरणाग्निना योगाद्यदुदेति रसान्त्रम ।
रसनां परिणाममान्ते स विपाक इति स्मृत: ।।

आहार एवं औषध द्रव्यों द्रव्यों के खाने के बाद होने वाले पाचन क्रिया के अंत में क्रिया जठराग्नि, भौतिकाग्नियों द्वारा परिपाक के रूपांतरित होने पर अंत में जो रस या गुण विशेष की उत्पति होती है । उसको विपाक या निष्ठ पाक कहते हैं । विपाक में अहारोषधि रसों का शोषण होने के बाद शरीर सात्मीकरण के लिए इनका रसांतर रूप में होता है ।

विपाक के प्रकार

आयुर्वेद में विभिन्न आचार्यों द्वारा विपाक 4 प्रकार के माने गए हैं ।

1. षडविध विपाक

षडविध विपाक में रस विपाक और अनियत विपाक माने गए हैं ।

  • रस विपाक की मान्यता है कि मधुर, अम्ल, लवण, कटुतिक्त एवं कषाय इन 6 रसों के आधार पर खाए हुए आहार का भी विपाक 6 प्रकार का होता है ।
  • अनियत विपाक को मनाने वाले आचार्यों ने भी 6 रसों की तरह इनका विपाक भी 6 प्रकार का ही मानते हैं परन्तु इनका ये मानना है कि जिस रस का बल अधिक होता है वही रस विपाक में भी देखने को मिलता है ।

2. पञ्चविधविपाक

इस प्रकार के विपाक का वर्णन चरक और सुश्रुत संहिता में मिलता है । पञ्चविध विपाक वादियों के मतानुसार सभी द्रव्यों का विपाक भी पञ्च प्रकार का होता है इस मत का चक्रपाणी और शिवदास सेन ने किया है ।

3. त्रिविध विपाक

इस प्रकार के विपाक को आत्रेय संप्रदाय के आचार्य मानते हैं । उनके अनुसार मधुर, अम्ल, कटु भेद से तीन प्रकार का विपाक होता है । कटु, तिक्त और कषाय इन तीनों रसों का विपाक हमेंशा कटु ही होता है । अम्ल रस का विपाक अम्ल ही होता है एवं मधुर और लवण रस वाले द्रव्यों का विपाक अधिकतर मधुर ही होता है । इसी मत को अधिकतर आचार्यों ने मान्यता दी है । हालाँकि इसमें मतभेद भी है परन्तु फिर भी इसे अधिक मान्यता मिली है ।

4. द्विविध विपाक

इस प्रकार के विपाक को महर्षि सुश्रुत ने माना है । जिसमे गुरु या मधुर और लघु या कटु, ये दो प्रकार के ही विपाक होते हैं । क्योंकि महर्षि सुश्रुत और नागार्जुन का विपाक क्रम महाभूत और गुणों पर आधारित है । इसको गुण विपाक या भुत विपाक भी कहते हैं । इसके अनुसार या तो विपाक गुरु होगा अर्थात मधुर होगा या लघु अर्थात कटु होगा भले ही आहार और औषध द्रव्य का रस कोई भी हो ।

इनके अनुसार पाचन के समय जो गुण निष्पादित होते हैं उन्हें कटु और मधु इन दो वर्गों में ही विभक्त किया जा सकता है ।

रस एवं विपाक में अंतर

रस विपाक
रस का ज्ञान जीभ से होता है ।वहीँ विपाक का ज्ञान पाचन के बाद होने वाले कर्मों के आधार पर किया जाता है ।
रस का ज्ञान जीभ पर रखते ही हो जाता है ।परन्तु विपाक का ज्ञान पाचन के पश्चात कुछ समय के बाद होता है ।
रस का शरीर के साथ – साथ मन पर भी असर रहता है । विपाक का शरीर पर सिमित प्रभाव होता है ।
रसों का प्रभाव जीभ, मुख, तालू, कंठ, गला, और होठों पर स्थानिक रूप से होता है । वहीँ विपाक का प्रभाव दोष, धातु और मल पर होता है ।

सारांश (Conclusion)

इस लेख में हमने आपको विपाक की परिभाषा, इसका अर्थ और इसके प्रकार के बारे में विस्तृत रूप से समझाया है । अगर आप आयुर्वेद से सम्बंधित अन्य जानकारियां चाहते हैं तो हमारे इस ब्लॉग को फॉलो करें और आयुर्वेद से सम्बंधित सभी जानकारियों को फ्री में विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं ।

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