बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय: बवासीर गुदा शिराओ के रक्तवाहिनियों में होने वाला रोग है। जिसका असर गुदा द्वार और इससे सम्बन्धित अंगो पर दिखाई पड़ता है। जिसमे गुदा में पायी जाने वाली रक्त शिराओ में, खून जमने से गुदा में मांस के मस्से निकलने लगते है। जो मुख्य रूप से बवासीर के लक्षण कहे गए है। जिसमे कई तरह के दर्द, खुजली और स्राव जाने की समस्याए हुआ करती है। जिसके कारण रोगी शारीरिक रूप से कमजोर होता जाता है। परन्तु बीमारी के बढ़ने से स्राव के साथ जब रक्तस्राव होने लगता है। तब रोगी में घबराहट और बैचेनी बढ़ने लगती है।
बवासीर के मस्सों से जो स्राव निकलता है। वह खून और मवाद मिला हुआ रहता है। जिससे इन मस्सों का स्राव चिपचिपा और बदबूदार होता है। जिसको सुखाने के लिए बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय अपनाने पड़ते है। तब जाकर बवासीर में स्राव निकालने वाले, मस्से से हमे अजादी मिल पाती है। स्रावी बवासीर का स्राव संक्रमण के कारण, लिसलिसा और बहुत गंध करने वाला हो सकता है।
आयुर्वेदादी शास्त्रों में बवासीर का स्थान गुद वलियो को माना गया है। जो गुदा और मलाशय के बीच गुद नलिका में पायी जाती है। जिसमे तीन पेशिया होती है। जिन्हे वलियो के नाम से जाना जाता है। जिसमे रक्त शिराए लम्बाई में फैली रहती है। यह वलियाँ मल के संचय और निष्कर्षण में सहयोग करती है। परन्तु जब उदर विकारो के कारण, मलबद्धधता या अतिसार रोग उत्पन्न हो जाते है। तब मलापनोदन के लिए प्रवाहण करना पड़ता है। जिससे इन शिराओ में गया हुआ रक्त वापस नहीं निकल पाता। ऐसा बार – बार होने से रक्त शिराए खून से भरकर फूलने लगती है।
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बवासीर क्या होता है | What is Bavasir in Hindi
गुदा और मलाशय के बीच का भाग नाली सरीखा होता है। जो गुदा के भीतर स्थित होने से, गुद नलिका कहलाता है। जिसमे सवंरणी, विसर्जनी और प्रवाहणी नाम की काली – काली तीन वलिया पायी जाती है। जो शंख जैसे आकार की एक अंगुल उभरी एवं टेढ़ी होती है। यह गुद नलिका चार अंगुल की लम्बाई में स्थित रहती है। जो डेढ़ – डेढ़ अंगुल के फासले पर, एक के ऊपर एक चढ़ी रहती है।
गुद नलिका में संवरणी और प्रवाहणी वली के बीच में विसर्जनी वली पायी जाती है। जो गुदौष्ठ से उत्तरोत्तर ऊपर पायी जाती है। जिसमे मल को बाहर निकालने के लिए जोर लगाने पर, इन वलियो में पायी जाने वाली रक्त शिराओ में खून जाया करता है। जिसके वापस आने का कोई मार्ग नहीं होता। जिसके कारण प्रवाहन के समय इन पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
लेकिन यही प्रक्रिया जब बार – बार दोहराई जाती है। तब हर बार वलियो की शिराओ में खून जमा होता जाता है। जिसके कारण यही शिराए फूलते – फूलते, मांस के अंकुरों में बदल जाया करती है। जिनको बवासीर के मस्से कहते है।
बवासीर के प्रकार / Types of Bavasir
आयुर्वेद में बवासीर के स्थान पर अर्श शब्द का प्रयोग है। परन्तु आधुनिक भाषा के साथ सामजस्य बिठाने पर, गुद अर्श के लिए बवासीर शब्द का प्रयोग सुसंगत है। जिसके आयुर्वेद में दो भेद माने गए है। जिसमे पहले को सहज और दुसरे को कालज गुद अर्श का नाम दिया गया है।
आयुर्वेदादी शास्त्रों में जन्म से होने वाली बवासीर को सहज गुद अर्श कहा गया है। जिसे स्वाभाविक रोग कहा गया है। जैसे – भूख, प्यास आदि को स्वाभाविक रोगों की श्रेणी में रखा गया है। जबकि जन्म के बाद देहगत विकारो से, उत्पन्न होने वाली बवासीर को कालज गुद अर्श की संज्ञा दी गई है। जिसमे स्वभावगत सहज गुद अर्श को लाइलाज कहा गया है। वही कालज गुद अर्श के उपचार की विधियों का वर्णन किया गया है।
कालज गुद अर्श के दोषो में विलक्षणता होने पर, इनको दो भागो में बांटा जा सकता है –
बादी बवासीर : यह स्राव मुक्त बवासीर होती है। जिसमे गुदाद्वार पर बड़े आकार और रंग के मस्से पाए जाते है। जिससे इन्हे मस्से वाली बवासीर के नाम से भी जाना जाता है। जिसमे कुछ अत्यंत दर्द पैदा करते है, और कुछ बिना दर्द के ही होते है। इस बवासीर के मस्से गुदा की वलियो में पाए जाते है। जो गुद नलिका में पायी जाती है। जिसके कारण मल के बाहर निकलने से, इन पर रगड़ लगती है। जिससे गुदा पर घाव बन जाता है। जिसमे मलत्याग के समय चुभन का दर्द होता है।
खूनी बवासीर : यह स्राव पैदा करने वाली बवासीर है। जिनके मस्सों से कुछ न कुछ स्राव बहा करता है। जिसमे मवाज अथवा मवाज के साथ खून भी देखा जा सकता है। जबकि इसके मस्से मस्से वाली बवासीर से छोटे होते है। फिर भी अत्यंत जलन कारी होते है। जिसके कारण रोगी मलत्याग तो दूर की बात, मल के वेग से ही घबरा उठता है।
बवासीर कैसे होती है?
बवासीर को जीवनशैली से जुड़ा हुआ रोग माना गया है। जिसके कारण खान – पान, व्यवहार आदि की सम्पादन में गड़बड़ी होने से बवासीर होने का मार्ग प्रशस्त होता है। जैसे –
- तला – भुना, मिर्च – मसालेदार और चटपटे खाद्य पदार्थो को खाने से
- अत्यधिक गर्म और क्षमता से अधिक आहार का सेवन करने से
- विविध प्रकार के भोज्य आहारों को एक साथ मिलाकर खाने से
- फाइबर न पाए जाने वाले भोजन को खाने से
- बहुत चिकना, सूखा और गरिष्ठ भोजनहार करने से
- चीनी और रिफाइंड नमक को भोजन के रूप में खाने से
- अविधि पूर्वक और अशुद्ध तेल एवं घी का सेवन करते रहने से
- अधिक समय तक धूप में काम करने से
- अग्नि पर अधिक समय बिताने से जैसे- खाना बनाना आदि।
- अधिकता में मादव द्रव्यों का सेवन करते रहने से
- रात में जागने और दिन में सोने से
- रति क्रिया में लीन रहने से
- मलत्याग के उपरान्त ठंडे पानी से मलद्वार को धोने आदि से।
बवासीर के लक्षण / Symptoms of Bavasir
स्राव को स्रावित करने वाले बवासीर के मस्से, पित्त दोषो से प्रकुपित पाए जाते है। जिसके कारण यह खूनी बवासीर के लक्षणों से युक्त होते है। जिसमे निम्न लक्षण देखे जा सकते है –
- गुदाद्वार से स्राव निकलते रहना
- गुदा में भीषण जलनकारी दर्द होना
- शौच के समय जलन का बढ़ जाना
- शौच के उपरांत भी जलन का बने रहना
- मल बहुत ही गीला, फेनदार और पतला होना
- मलत्याग के समय मल में आव आना
- मल का अत्यंत बदबूदार होना
- गुदाद्वार से दर्द अथवा बिना दर्द के खून आना
- गुदा में दर्द और सूजन बनी रहना
- गुदाद्वार पर घाव होना होना
- मानसिक लक्षणों में बेचैनी और छटपटाहट रहना
- पैरो में मसलने के समान दर्द होना
- बार – बार प्यास लगना और मूत्र का वेग आना
- पाचन शक्ति का कमजोर हो जाना
- पेट में गुड़गुड़ाहट बनी रहना
- भूख न लगना
- दिन प्रतिदिन शरीर में कमजोरी आना, आदि।
बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय / Ayurvedic Treatment of Bavasir
आयुर्वेद में त्रिदोषो के असंतुलित हो जाने को ही रोग माना गया है। इसलिए आयुर्वेद को दोष प्रधान चिकित्सा कहा जाता है। जिसमे रोगो को दूर करने की एकमात्र विधा, तीनो दोषो में संतुलन स्थापित करना है। जिसकी अव्याप्ति और अतिव्याप्ति जब तक नहीं होती, तब तक हमें कोई रोग नहीं होता।
दोषो की अव्याप्ति और अतिव्याप्ति में समता बनाये रखना ही चिकित्सा कहलाती है। फिर चाहे यह रुग्ण व्यक्ति में की जाय अथवा स्वस्थ व्यक्ति में की जाय। स्रावी बवासीर में पाए जाने वाले लगभग सभी लक्षण, पित्त दोष से मेल खाते है। जिसके कारण पित्त दोषो की अधिकता के कारण, बवासीर के मस्सों से स्राव का स्रवण होता है।
इस प्रकार बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय के लिए, सबसे पहले रोगी के दोष की पहचान की जाती है। जिसमे रोगगत और देहगत दोनों प्रकार के दोष शामिल है। इसके बाद रोगी के दोषो का शमन करने वाली औषधियों का प्रयोग कर, बढे दोष को शरीर से बाहर निकाला जाता है। जिसमे उपयोग होने वाले उपायों को, बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय कहते है। जिसके प्रसिद्द उपाय इस प्रकार है –
बवासीर के मस्से सुखाने के आयुर्वेदिक उपाय |
खूनी और स्रावी बवासीर के मस्से सुखाने के लिए, बवासीर के मस्से सुखाने की दवा प्रयोग में लाई जाती है। जो इस प्रकार की बवासीर से पित्त दोषो का निवारण करती है। जिसके प्रभाव से बवासीर से रक्तस्राव निकलना बंद होने में सहायता मिलती है। जैसे –
- आयुर्वेद में खूनी बवासीर की समस्या को दूर करने में, कुटज को बहुत ही उपयोगी बताया गया है। जिसके सेवन से खूनी और स्रावी बवासीर की समस्या में निश्चित ही लाभ होता देखा जाता है। यह मठ्ठे में घोलकर पीने से बहुत फायदा पहुँचाती है। यह प्रयोग किसी भी तरह की स्रावी बवासीर को जड़ से मिटा देता है।
- शुद्ध जल वाले कमल की ताजी पत्तियों को, बकरी के दूध के साथ पीने से। किसी भी तरह के व्यक्ति को खूनी बवासीर क्यों न हो जड़ से ठीक कर देती है।
- अपामार्ग के बीज की चटनी बनाकर, चावल के धोवन के साथ लेने पर खून बवासीर का पूर्ण रूप से नाश कर देती है।
- बिल्ब फल की गुद्दी के साथ पुरइनपाढी का चूर्ण खाने से, स्रावी बवासीर जलन और दर्द नष्ट हो जाती है।
निष्कर्ष :
आयुर्वेद में बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय बताये गए है। जिसका उपयोग करने से सभी तरह की स्रावी बवासीर नष्ट हो जाती है। इसके साथ ही पाचक और अन्य गुदा रोगो में लाभ मिलता है। किन्तु आयुर्वेदिक दवाइयों को खाली पेट लेने से, शीघ्र और पूरा लाभ प्राप्त होता है। जिसके लिए प्रातः काल और सायः काल से पूर्व का समय सबसे अधिक उपयोगी माना गया है।