पंचगव्य घृत: आयुर्वेद में घृत कल्पना की दवाएं विस्तृत रूप से चिकित्सार्थ उपयोग होती है | आज के इस लेख में पंचगव्य घृत के फायदे, चिकित्सकीय उपयोग, बनाने की विधि एवं सेवन विधि आदि के बारे में आपको जानने को मिलेगा |
जैसा की नाम से ही पता चलता है | पञ्च + गव्य = अर्थात गाय के पांच (घी, दूध, गोमूत्र, गोबर रस एवं दही) इन सभी के सहयोग से पंचगव्य निर्मित होता है | वैसे इसमें विभिन्न अन्य आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों का संयोग होता है जिसके बारे में आपको निचे वर्णन मिलेगा | साथ ही इसे बनाने की विधि के बारे में भी बताएँगे |
इस आयुर्वेदिक घृत का उपयोग मष्तिष्क विकारों एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने, पाचन सुधारने एवं रक्त पित्त रोग में प्रमुखता से किया जाता है |
चलिए सबसे पहले जानते है पंचगव्य घृत के घटक एवं निर्माण विधि के बारे में –
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पंचगव्य घृत के घटक | Ingredients of Panchgavya Ghrita
इसके निर्माण में कुल जड़ी – बूटियों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है –
- हरड
- बहेड़ा
- आंवला
- दशमूल
- दारू हरिद्रा
- हरिद्रा
- सतौना छाल
- अपामार्ग
- नील
- कुटकी
- अमलतास
- गुलर मूल
- पुष्कर्मुल
- भारंगी
- ग्वारपाठा
- सौंठ
- पीपली
- कालीमिर्च
- निसोंथ
- गजपीपल
- पीपल
- दूर्वा
- दंतीमूल
- चिरायता
- चित्रकमूल
- अनंतमूल
- सफ़ेद सारिवा
- गंधतरण
- चमेली के पते
- रोहित घास
बनाने की विधि: पंचगव्य घृत को बनाने के लिए दशमूल, कुटज छाल, सतौना की छाल, अपामार्ग, निल, कुटकी छाल, अमलतास, कठगुलर, त्रिफला, पुष्करमूल एवं धमासा इन सभी औषधियों का सर्वप्रथम क्वाथ तैयार करलें | अन्य बची औषधियों को जल मिलाकर कल्क बना लें | अब मन्दाग्नि पर क्वाथ, कल्क एवं पंचगव्य (गोबर रस, गोमूत्र, दही, दूध एवं घृत सभी समान) इन सभी का पाक करें | जब सिर्फ घी बचे तब इसे छान कर रख लीजिये यह पंचगव्य घृत कहलायेगा |
पंचगव्य घृत के फायदे | Benefits of Panchgavya Ghrita in Hindi
इस आयुर्वेदिक घृत के फायदे विभिन्न रोगों में किया जाता है | आयुर्वेद अनुसार व्याधियों के दो आश्रय माने गए है (1) शरीर एवं (2) मन अर्थात मानसिक | यह मानसिक व्याधियों में प्रमुखता से उपयोग होती है साथ ही इसे शारीरिक व्याधियों में भी उपयोग किया जाता है |
प्रमुखतया घृत कल्पना की आयुर्वेदिक दवाएं स्नेहिल होती है | अत: इनका प्रयोग वैद्य सलाह से किया जाना चाहिए | इसके निम्न रोगों में फायदे है –
मिर्गी रोग में पंचगव्य घृत के फायदे: मिर्गी रोग एक मानसिक व्याधि है | पंचगव्य घृत के इस्तेमाल से मिर्गी में आराम मिलता है | इसे 5 ग्राम की मात्रा में गरम जल के साथ सेवन करने से रोग में आराम मिलता है |
स्मरण शक्ति की कमजोरी: यह आयुर्वेदिक घी स्मरण शक्ति को भी बढ़ाने में फायदेमंद है | इसके सेवन से दिमाग तेज होता है एवं मानसिक व्याधियां दूर होती है |
अस्थमा रोग में: श्वांस रोग में भी इस घृत के सेवन से लाभ मिलता है | यह श्वांस के साथ – साथ टीबी रोग में भी आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा प्रयोग करवाया जाता है | इसके सेवन से अंदरूनी पौषण मिलता है एवं रोग के कारण आई कमजोरी में लाभ मिलता है | साथ ही श्वांस एवं खांसी में आराम मिलता है |
पेटदर्द: गुल्म एवं वात की असाम्यता के कारण होने वाले पेट दर्द में पंचगव्य घृत फायदेमंद है | यह पाचन को भी सुधारने में उपयोगी है |
सुजन में पंचगव्य के फायदे: यह आयुर्वेदिक घी पेट, वृषण एवं हाथ – पाँव की सुजन में बहुत फायदेमंद है | इसमें सुजन नाशक गुण विद्यमान होते है | अत: इसे सुजन में भी इस्तेमाल किया जाता है |
कब्ज: कोष्ठबद्धता में पंचगव्य घृत के सेवन से मल की गुठलियाँ नहीं बनती | साथ ही पेट में वायु नहीं भरती एवं मल आसानी से निकलता है |
धातुक्षीणता: धातु दुर्बलता में पंचगव्य घृत को नित्य रात्रि में 5 ग्राम की मात्रा में गरम जल या दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है |
चिकित्सकीय उपयोग | Clinical Uses of Panchgavya Ghrita
- मिर्गी रोग (Epilepsy)
- स्मरणशक्ति की कमी (Loss of Memory)
- क्षय (Tuberculosis)
- श्वास (Asthma)
- गुल्म (Gulm)
- पेट दर्द (Abdominal Pain)
- सुजन (Swelling)
- भगंदर (Piles)
- रक्ताल्पता (Anemia)
- पीलिया (Jaundice)
सेवन विधि | Dosage
पंचगव्य घृत का सेवन 5 से 10 ग्राम तक की मात्रा में वैद्य सलाह अनुसार किया जाना चाहिए | साथ ही उम्र, प्रकृति एवं रोग के आधार पर वैद्य खुराक एवं अनुपान बदल सकते है | अत: चिकित्सकीय परामर्श पश्चात ही सेवन करना चाहिए |
संभावित नुकसान | Side Effects
इस औषधि के कोई भी ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है | यह पूर्णत: सुरक्षित है | हालाँकि निर्धारित मात्रा एवं अनुपान अनुसार ही सेवन करना चाहिए | अगर मात्रा अधिक ली जाये तो दस्त एवं मरोड़ जैसी समस्याएँ हो सकती है |