आयुर्वेद चिकित्सा में घृत प्रकरण की दवाओं का अपना एक अलग स्थान है | आयुर्वेदिक घृत विभिन्न औषधियों के पाक से तैयार किया जाने वाला मेडिकेटिड घी है | आज के इस लेख में महातिक्तक घृत के फायदे, उसके घटक, बनाने की विधि, सेवन विधि एवं नुकसान के बारे में जानेंगे |
यह आयुर्वेदिक घृत स्किन इन्फेक्शन, बवासीर, विसर्प, अम्लपित, खून की कमी, कामला आदि रोगों में प्रमुखता से आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग करवाया जाता है | महातिक्तक घृत का प्रयोग महीने दो महीने करने से व्यक्ति इन रोगों से निरोगी हो जाता है | यह दवा परहेज के साथ सेवन की जाती है जिससे दवा का लाभ अधिक मिले |
तो चलिए सबसे पहले जानते है महातिक्तक घृत के घटक औषधियों के बारे में
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महातिक्तक घृत के घटक | Ingredients of Mahatikta Ghrita
इस आयुर्वेदिक घृत का निर्माण निम्न जड़ी-बूटियों के सहयोग से होता है
- सप्तपर्ण छाल
- अतिस
- अमलतास का गुदा
- कुटकी
- नागरमोथा
- खस
- हरड
- बहेड़ा
- आंवला
- परवल पत्ती
- नीम की अंतरछाल
- पित्तपापड़ा
- धमासा
- लालचन्दन
- छोटी पिप्पल
- पद्माख
- हल्दी
- दारूहल्दी
- वच
- इन्द्रायण की जड़
- शतावरी
- अनंतमूल
- वासा
- कूड़ा की छाल
- जवासा
- मुर्वा
- गिलोय
- चिरायता
- मुलेठी
- त्रायमाण
- गाय का घी
- जल
- आंवला रस
महातिक्तक घृत बनाने की विधि: इसे बनाने के लिए सप्तपर्ण की छाल, अमलतास का गुदा, कुटकी, पाठा, नागरमोथा, खस, हर्रे, बहेड़ा एवं आंवला, पटोल की पत्ती, नीम की अंतरछाल, पित्तपापड़ा, धमासा, लाल चन्दन, छोटी पीपल, पद्माख, हल्दी, दारू हरिद्रा, वच, इन्द्रायण की जड़, शतावरी, अनंतमूल, वासा, कूड़ा की छाल, जवासा, मुर्वा गिलोय, चिरायता, मुलेठी एवं त्रायमाण इन सभी को 10 – 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें एवं इसका कल्क करलिया जाता है |
अब घाय का घी 128 तोला, जल 1024 तोला एवं आंवले का रस 256 तोला मिलाकर सबको एकत्र करके मन्दाग्नि पर पकाया जाता है | जब अकेला घी बचे तब इसे आंच से उतार कर छान लिया जाता है | इस प्रकार से महातिक्तक घृत का निर्माण होता है |
महातिक्तक घृत के फायदे | Benefits of Mahatikta Ghrita
- कुष्ठ रोग: महातिक्तक घृत कुष्ठरोगाधिकार से ली गई आयुर्वेदिक दवा है | यह कुष्ठ रोग में बहुत उपयोगी औषधि है | इसका सेवन महीने भर करने से कुष्ठ एवं स्किन इन्फेक्शन में फायदा मिलता है |
- रक्तपित्त: रक्तपित्त की समस्या में यह अत्यंत फायदेमंद औषधि है | यह रक्तपित्त को शांत करता है | रक्तपित्त के बारे में यहाँ पढ़ें
- खुनी बवासीर में इस दवा के सेवन से लाभ मिलता है |
- विसर्प: यह एक त्वचा का संक्रामक रोग है जिसमे लाल चकते हो जाते है एवं इनमे पीड़ा होती है | इस रोग में महातिक्त घृत का सेवन करने से त्वचा का संक्रमण ठीक होता है |
- कामला रोग: पीलिया रोग को ही कामला कहा जाता है | इस रोग में महातिक्त घृत का सेवन करने से लाभ मिलता है |
- कंडू: खुजली की समस्या में इस घृत का सेवन करना अत्यंत लाभदायक है | नियमित सेवन से खुजली की समस्या ठीक हो जाती है |
इसके अलावा यह घृत शरीर पर लाल चकते हो जाना, फोड़े-फुंसी होना, उनमे दाह या जलन रहना, पीब या पानी सा लेस निकलता हो, खुजली के कारण रोगी को बेचैनी अधिक रहती हो, तोय घृत सेवन करने से दाह और खुजली शीघ्र ही शांत हो जाती है | धीरे – धीरे फोड़े-फुंसी में मिटते है | कुछ समय में ही सब विकार मिटकर शरीर पूर्ववत निरोग हो जाता है |
महातिक्तक घृत की सेवन विधि
इस आयुर्वेदिक घृत का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशानुसार करना चाहिए | सामान्यत: 6 माशे से लेकर 1 तोला तक सेवन किया जा सकता है | अनुपान के रूप में गरम जल या गुर्चु क्वाथ के साथ मिलाकर इस घी का प्रयोग करना चाहिए |
नुकसान | Side Effects
सामान्यत: इस औषधीय घृत के कोई भी ज्ञात साइड इफेक्ट्स नहीं है | यह पूर्णत: सुरक्षित है अगर इसे निर्धारित मात्रा एवं अनुपान अनुसार लिया जाये | अधिक मात्रा में प्रयोग करने पर पतले दस्त, पेट में मरोड़ एवं सिरदर्द जैसी समस्या हो सकती है | अत: आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा में ही सेवन करें |
धन्यवाद |