नवरत्न कल्पामृत रस (Navaratna Ras) आयुर्वेद की महाऔषधि है |

आयुर्वेद औषधियों का कुम्भ है | ऐसी अनेकों औषधियों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है जो जीवनीय शक्ति वर्धक होती हैं | इनमें शरीर के सभी प्रकार के विकारों को दूर करने की क्षमता होती है | नवरत्न कल्पामृत रस एक महौषधि है | यह रसायन सभी इन्द्रियों एवं शारीरिक अवयवों को सबल बनाने का काम करता है | यह तीनों प्रकार के दोषों (वात पित्त एवं कफ़) में उत्पन्न विकारों को ठीक करके उनमें संतुलन स्थापित करता है |

नवरत्न कल्पामृत रस
नवरत्न कल्पामृत रस

इस लेख में हम नवरत्न कल्पामृत रस (Navaratna Kalpamrit Ras) से जुड़ी निम्न बातों के बारे में बतायेंगे :-

  • नवरत्न कल्पामृत रस क्या है ?
  • यह औषधि कैसे बनायी जाती है ?
  • नवरत्न कल्पामृत रस के घटक क्या क्या हैं ?
  • इस औषधि का उपयोग किन किन रोगों में किया जाता है ?
  • नवरत्न कल्पामृत रस के फायदे क्या हैं ?
  • इस दवा का उपयोग एवं अनुपान कैसे करें ?
  • इसका सेवन करते समय परहेज एवं पथ्य अपथ्य क्या हैं ?
  • क्या Navaratna Kalpamrit Ras के कोई दुष्प्रभाव (Side Effect) हैं ?

नवरत्न कल्पामृत रस क्या है / Navaratna Kalpamrit ras kya hai ?

यह एक दिव्य आयुर्वेदिक औषधि है | नवरत्न कल्पामृत रस का निर्माण शुद्ध गुग्गुलु, माणिक्य पिष्टी, नीलम पिष्टी एवं शुद्ध शिलाजीत जैसे उत्तम घटकों के योग से किया जाता है | आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार यह औषधि शरीर के सभी प्रकार के विकारों को ख़त्म करने का सामर्थ्य रखती है | यह शरीर में बल एवं शक्ति का संचार करती है | Navratna Kalpamrit Ras निर्बलता को दूर करने के लिए प्रशिद्ध दवा है |

नवरत्नकल्पामृत रस के घटक क्या हैं / Navratna Kalpamrit Ras ke ghatak

यह उत्तम आयुर्वेदिक अवयवों एवं जड़ी बूटियों के रोग से बनी औषधि है | इस रसायन में निम्न घटकों का इस्तेमाल किया जाता है :-

  • शुद्ध शिलाजीत, गुडूची घन एवं शुद्ध गुग्गुलु – सभी 11-11 तोला
  • गो घृत – 5 तोला
  • माणिक्य पिष्टी, नीलम पिष्टी एवं पन्ना पिष्टी – प्रत्येक एक एक तोला
  • पुखराज पिष्टी, वैडूर्य पिष्टी, गोमेदमणि पिष्टी एवं मुक्ता पिष्टी :– सभी एक – एक तोला
  • रौप्य भस्म, राजावर्त पिष्टी एवं प्रवाल पिष्टी – सभी दो- दो तोला
  • स्वर्ण भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म एवं यशद (जस्ता) भस्म – प्रत्येक 6-6 माशे

नवरत्नकल्पामृत रस को कैसे बनाते हैं ?

यह एक शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक दवा है | इसको निचे बताई गयी विधि से तैयार किया जाता है |

  • सर्वप्रथम सभी पिष्टी एवं भस्मो को अच्छे से मिला लें |
  • अब इस मिश्रण को खरल में डाल कर घोंट लें |
  • फिर गुग्गुलु एवं गुडूचीघन को खरल में डाल थोड़ा थोड़ा घी मिलाकर कर कूटें |
  • साथ साथ इसमें खरल किया हुवा भस्म एवं पिष्टी का मिश्रण भी मिलाते रहें |
  • थोड़ी देर तक कूटने के बाद इसमें शिलाजीत को जल में मिलाकर डाल दें |
  • अब इसे अच्छे से मर्दन करें |
  • इसे तब तक खरल में कूटते रहें जब तक यह गोली बनाने लायक न हो जाये |
  • फिर इसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर छायाँ में सुखा लें |
  • इस विधि से उत्तम श्रेणी का नवरत्न कल्पामृत रस तैयार हो जाता है |

नवरत्न कल्पामृत रस के फायदे / Navratna Kalpamrit Ras ke fayde

यह आयुर्वेदिक रसायन बहुत गुणकारी है | शरीर में किसी भी कारण से आयी निर्बलता को दूर करने के लिए यह बहुत फायदेमंद है | नवरत्न कल्पामृत रस निरंतर पथ्य के साथ सेवन करने से सभी प्रकार की धातुएं पुष्ट हो जाती हैं | यह वातहर, पित्तशामक एवं बलवर्धक गुणों वाली औषधि है | शरीर में इन्द्रियों एवं शारीरिक अवयवों को सुदृढ़ बनाता है | यह नाड़ियो में जमा मल, विषाणु एवं अन्य विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल देता है | इस प्रकार यह रस अनेकों रोगों में फायदेमंद है |

नवरत्न कल्पामृत रस के फायदे
नवरत्न कल्पामृत रस

आइये जानते हैं इसके रोगानुसार इसके फायदे क्या हैं :-

  • यह औज की वृद्धि करता है एवं मुख पर कान्ति लाता है |
  • नवरत्न कल्पामृत रस ह्रदय, मस्तिष्क एवं वृक्क को बल देता है |
  • ये आलस्य एवं थकावट को दूर करता है |
  • यह जीर्ण वातरोग, आमवात एवं संधिवात जैसे रोगों में बहुत फायदेमंद है |
  • ये सप्ताधातुवर्धक एवं पौष्टिक रसायन है |
  • इसका सेवन करने से जीर्ण ज्वर, वीर्य स्राव, राजयक्ष्मा जनित ज्वर एवं दाह आदि रोग नष्ट हो जाते हैं |
  • नवरत्न कल्पामृत रस शोथ एवं जलोदर आदि रोगों में भी बहुत फायदेमंद है |
  • यह उदर रोगों एवं यकृत आदि की समस्या में भी बहुत उपयोगी है |

नवरत्न कल्पामृत रस का सेवन एवं अनुपान कैसे करें ?

इसकी एक या दो गोली सुबह शाम दूध के साथ सेवन करें या रोगानुसार अनुपान करें |

  • आन्त्रिक विकार में :- हरितक्यादी क्वाथ के साथ सेवन करें |
  • उदरकृमि में :- नवरत्न कल्पामृत रस के साथ वायविडंग क्वाथ के साथ दें |
  • गर्भाशय के पोषण के लिए :- अरविन्दासव या सितोप्लादि चूर्ण के साथ सेवन करें |
  • जलोदर रोग में :- पुनर्नवादि क्वाथ के साथ सेवन करें |
  • यकृत बलवृद्धि के लिए :- इसके साथ भृंगराजासव का सेवन करें |
  • वृद्धावस्था के कारण निर्बलता में :- त्रिफलारिष्ट के साथ दें |
  • जीर्णज्वर के कारण निर्बलता में :- अमृतारिष्ट या पीपल के चूर्ण के साथ |
  • हिष्टिरिया एवं उन्माद में :- अश्वागंधारिष्ट के साथ सेवन करें |
  • स्वप्नदोष एवं वीर्यस्राव में :- शतावरी के दुग्धावशेष क्वाथ के साथ दें |
  • मस्तिष्क एवं ह्रदय की शिथिलता में :- अर्जुनारिष्ट के साथ सेवन करें |

नुकसान एवं सावधानियां / Side effects and precautions

यह एक दिव्य औषधि है | सही मात्रा एवं पथ्य अपथ्य के साथ सेवन करने पर इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता है | सावधानी के तौर पर आप इस दवा का सेवन चिकित्सक से सलाह लेकर ही करें एवं बताये गए परहेज का ध्यान रखें |

धन्यवाद !

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