लैटिन नाम – Datura innoxia
कुल – Solanaceae
अंग्रेजी – Thorn Apple
स्थानीय नाम – धतूरा
संस्कृत – धूर्त, धतूर, उन्मत, कनकह्री, कनक, मातुल एवं शिवप्रिय आदि नामों से जाना जाता है |
सर्वत्र भारत में पाए जाने वाली वनस्पति है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसकी गणना फल विषों में की गई है | इसके बीजों में विष पाया जाता है | इसीलिए इसका प्रयोग शोधन पश्चात ही आयुर्वेद चिकित्सा में किया जाता है |
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आयुर्वेदिक ग्रंथो में धतूरा
आयुर्वेद के प्रसिद्द ग्रन्थ चरक संहिता में धतूर शब्द का प्रयोग तो कंही नहीं मिलता लेकिन इसमें तीन स्थानों पर “कनक” शब्द का प्रयोग किया गया है जो धतूरे के लिए ही प्रयोग हुआ है | चिकित्सास्थान के विषाध्याय में महागन्धहस्ती अगद में अगद में कनक की योजना की गई है |
कुष्ठरोग में मध्यासव में कनक का समावेश किया गया है | वंही सुश्रुत संहिता में अलर्क विष में धतूर का वर्णन मिलता है | हारित संहिता में अर्श अर्थात बवासीर की चिकित्सा में धतूरे के पतों की वर्ती का उल्लेख मिलता है | अत: हम यह कह सकते है कि प्राचीन समय से ही धतूरे के प्रयोगों का ज्ञान था |
वानस्पतिक परिचय
इसका पौधा 3 से 5 फीट ऊँचा किंचित झाड़ीनुमा होता है | पौधे पर 3 से 6 इंच लम्बे अखंड एवं विषमकार और त्रिकोण आकार के पते लगते है जो अकेले या युग्म में लगे रहते है | इसके पते चिकने एवं पतले होते है |
पुष्प (फुल) – धतूरे के फुल सीधे 6 से 7 इंच लम्बे, अन्दर से सफ़ेद एवं बाहर से नील लौहित रंग के होते है | इनका आकर घंटी की तरह होता है |
फल – इसके फल गोलाकार ऊपर से काँटोयुक्त आधा से 1 इंच व्यास के होते है | कच्ची अवस्था में इनका रंग हरा एवं सूखने पर भूरे रंग के हो जाते है | इन फलों से बीज निकलते है जो काफी संख्या में होते है |
बीज – धतूरे के बीज इनके फलों से निकलते है | जब फल सुख या पक जाते है तो ये विषमभागों में फट जाते है | इनमे से बीज निकलते है ; ये आकर में छोटे एवं चपटे होते है | इनकी सतह गढ़ेदार होती है |
धतूरे के प्रकार
वैसे तो इसकी कई प्रजातियाँ होती है लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा की द्रष्टि से उपयोगी दो प्रकार के धतूरा होते है |
- सफ़ेद धतूरा
- कृष्ण धतूरा (काला)
इन दोनों में मुख्यत: रंग का ही अंतर होता है | सफ़ेद धतूरा के फुल सफ़ेद रंग के होते है | कृष्ण धतूरा का कांड कुछ हरा, जामुनी एवं गहरे काले रंग का होता है | इसके फुल भी गहरे नील रंग के होते है जो इसे सफ़ेद धतूरे से भिन्न दिखाते है |
धतूरे के बीजों का तेल निकालने की विधि
औषधीय पौधों के बीजों एवं गिरी आदि का तेल निकालने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में पाताल यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है | पाताल यंत्र के लिए हमने यहाँ फोटो उपलब्ध करवाई है जिसे देख कर आप आसानी से समझ सकते है |
पातालयंत्र का निर्माण करने के लिए सबसे पहले एक हाथ गहरा और चौड़ा गढ़ा खोदते है | अब इस गड्ढे में भी एक छोटा गड्ढा खोदा जाता है | अब धतूरे के बीजों को एक हांड़ी में रखकर इसके कंठ में एक लोहे की जाली समा देते है |
जाली एसी हो की हांड़ी को उल्टा करने पर भी धतूरे के बीज उसमे से बाहर न निकले | अब इस हांड़ी पर एक छिद्र युक्त ढक्कन रख कर कपड़मिटटी से इस ढक्कन को सील बंद कर देते है | छोटे गड्ढे में एक कटोरी रक्ख कर उस पर इस हांड़ी को उल्टा रख दें |
अब इस गड्ढे में उपले (कंडे) भर कर अग्नि प्रज्वलित करदें | जब सारे कंडे जल जावे एवं आग ठंडी हो जाए तो ध्यान से हांड़ी को उठा कर निचे रखी कटोरी को निकाल लेते है | इस कटोरी में धतूरे के बीजों का तेल इक्कठा हो जाता है |
जिसे छान कर साफ़ कांच की शीशी में सहेज लें | इस प्रकार से धतूरे के बीजों का तेल निकाला जाता है |
धतूरा के उपयोग एवं स्वास्थ्य लाभ
आयुर्वेद अनुसार धतुरा गुणों में लघु, रुक्ष एवं व्यवायी होता है | रस में तिक्त एवं कटु ; उष्ण वीर्य एवं विपाक में कटु होता है | इसका प्रभाव मादक होता है | आयुर्वेदिक उपयोग देखें तो वर्णकारक, जठराग्नि प्रदीपक, ज्वर एवं कुष्ठ नाशक, खुजली, एवं कृमि अर्थात कीड़ों की समस्या को ख़त्म करने वाला होता है | साथ ही यह शुक्र स्तंभक, सुजन को दूर करने वाला, श्वास एवं खांसी नाशक के रप में उपयोगी है |
- अगर श्वास का दौरा पड़े तो धतूरे के पतों का चूर्ण २५ ग्राम , सोंठ का चूर्ण 12 ग्राम एवं सोरा 85 ग्राम इन सभी की धूम्रवर्ती बनाकर धूमपान करवाने से श्वास का दौरा ठीक होता है |
- उन्माद (मश्तिश्कीय विकार) में धतूरे के शुद्ध बीज एवं काली मिर्च समभाग का चूर्ण करें | जल से 125mg की गोलियां बना लें | सुबह शाम सेवन करने से उन्माद ठीक होता है |
- पुरानी खांसी, जीर्ण ज्वर एवं निद्रानाश में कनकवटी – धतूरे के पके हुए डोडे में ऊपर से चार फांक करें एवं संभाग लौंग डालकर पत्र से बंध करके आटा लगाकर पाक करें | फिर निकालकर तीन घंटे धतूरे के पत्र के रस में खरल करें एवं गोलियां बना लें | 1 से 2 गोली सेवन करने से आराम मिलता है |
- घाव में सूजन होने पर धतूरे के पतों की पुल्टिस बांधने से घाव ठीक होते है एवं सूजन दूर होती है |
- सूजन, वृषण शोथ एवं पार्श्वशूल एवं हड्डियों पर सूजन पत्र पर धतूरे के मूल को गोमूत्र में पीसकर लेप करें |
- कर्णपाक में धतूरे के बीजों का तेल कान में डालने से आराम मिलता है |
- आमवातज संधिशोथ में धतूरे के पतों का स्वरस 25 ग्राम, पुनर्नवा मूल 12 ग्राम, अफीम 1 ग्राम सभी को मिलाकर गर्म करें एवं प्रभावित स्थान पर लेप करने से सुजन एवं दर्द से आराम मिलता है |
- बालों के झड़ने की समस्या में धतूरे के पतों का स्वरस निकाल कर मालिश करने से नए बाल आते है |
- स्तन शैथिल्य में धतूरे के पतों पर तेल चुपड कर इनको गर्म करके स्तनों पर बंधने से स्तन कठोर होते है |
शीघ्रपतन की समस्या में धतूरे के बीजों के तेल का प्रयोग अचंभित करने वाला होता है | धतूरे के बीजों का तेल सहवास से पहले पैर के तलवों या जननांग पर मालिश करके सम्भोग करने पर वीर्य स्खलन नहीं होता |
**उपरोक्त सभी प्रयोगों को आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशानुसार उपयोग में लेना चाहिए अन्यथा सेहत के लिए नुकसानदाई हो सकते है |