गंभारी वनस्पति – जानें इसके फायदे, औषधीय गुण एवं उपयोग के नुस्खे

गंभारी / Gmelina arborea in Hindi

गंभारी

आयुर्वेद चिकित्सा के ग्रन्थ चरक संहिता के अनुसार पुरातन समय से सुजन को दूर करने एवं वात का शमन करने के लिए गंभारी का प्रयोग किया जाता रहा है | यह वनस्पति भारत में विशेषत: दक्षिण भारत, कोंकण, सिलोन, पश्चिमी हिमालय, बंगाल, बिहार एवं झारखण्ड आदि में पाई जाती है

वानस्पतिक परिचय – इसका विशालकाय पेड़ होता है जिसकी ऊंचाई 50 – 60 फीट तक होती है | पेड़ की शाखाएं श्वेताभ (कुच्छ सफेदी लिए) एवं रोमश होती है | इसकी छाल सफ़ेद रंग की होती है |लेकिन ताजा छाल कुच्छ पीलापन एवं हरियाली लिए हुए रहती है |छाल पर काले चिन्ह एवं छोटे – छोटे दाने दिखाई पड़ते है |

गंभारी के पत्ते 4 से 9 इंच लम्बे एवं 3 – 7 इंच तक चौड़े होते है | ये प्राय: लट्टवाकार, हृदयाकार एवं आगे से नुकीले होते है |इनपर 2 – 6 इंच लम्बा पत्रवंत होते है एवं पत्ते हमेशां आमने – सामने लगे रहते है |

गंभारी के फुल 3 – 8 इंच की लम्बी मंजरियों में लाल एवं पीलापन लिए हुए 1 से 1.5 इंच लम्बे होते है | फूलों पर भूरे रंग के छींटे होते है | गंभारी के फल रंग में पीले, हरे, चमकते हुए एवं साधारण जामुन के फल के बराबर आकार में होते है |

गंभारी के औषधीय गुण / Medicinal properties of gambhari

काश्मरी तुवरा तिक्ता विर्योष्ण मधुरा गुरु: ||
दीपनी पाचनी मेध्या भेदीनी भ्रमशोषजित |
दोषतृष्णा मशुलाशोरविषदाहज्वरापहा ||
तत्फलं ब्रिह्नं वृष्य गुरु केश्यं रसायनम |
स्वादु पाके हिमं स्निग्धम तुव्राम्ल विशुद्धिकृत |
हन्याद्दाहतृषावातरक्त पित्तक्षतक्षयान ||

मूल / Root

रस - तिक्त, कषाय, मधुर
गुण - गुरु 
विपाक -  कटु 
वीर्य -  उष्ण 

फल / Fruit

रस - मधुर, कषाय, अम्ल
गुण - स्निघ्ध, गुरु 
विपाक - मधुर 
वीर्य - शीत (ठंडा)

गंभारी में मुख्यत: दीपन, पाचन, मेध्य एवं मलभेदन (कब्ज) गुण होते है | इसके फल बृहन, वृष्य एवं रसायन गुणों से युक्त होते है | भ्रम, शोष, तृषा, आम, शूल (दर्द), अर्श (बवासीर), विष, दाह एवं बुखार को दूर करने में सक्षम औषधि साबित होती है |गंभारी के फलों में रक्त की कमी, मूत्रविकार, जलन, अधिक प्यास, रक्तपित, क्षत एवं शारीरिक थकावट को दूर करने के गुण होते है |

गंभारी के पर्याय एवं निरुक्ति / Gambhari’s Synonym in hindi

इसे काश्मरी, श्रीप्रणी, भद्रप्रणी, सर्वतोभद्रा, मधुप्रणी आदि नामों से जाना जाता है | इसके विभिन्न नाम गंभारी के विशिष्ट गुण निर्धारित करते है जैसे –

  • गंभारी – यह अधिक जलतत्व को धारण करती है |
  • काश्मरी – यह अपने माधुर्यादी गुणों से प्रकाशित होती है अथवा शरीर के मेद को कम करके शरीर को पतला बनाने का कार्य करती है |
  • सर्वतोभद्रा – इसके सभी अंग कल्याणकारक है |
  • मधुपर्णी – इसके पत्ते मीठे होते है | इन्हें खाने के बाद जब जल ग्रहण किया जाए तो मीठेपन का अनुभव होता है | इनका स्वरस भी मधुर होता है |
  • श्रीपर्णी – गंभारी के पत्ते सुन्दर होते है अत: इसे श्रीपर्णी नाम से भी जाना जाता है |

गंभारी के विभिन्न रोगानुसार उपयोग / Gambhari Uses in Hindi

दीपन – पाचन : – इसका मूल उष्णवीर्य से दीपन – पाचन एवं गुरु स्निग्ध गुण के कारण वतानुलोमन कार्य करता है |

मेध्य – गम्हार या गंभारी का फल मधुर एवं शीत गुण का होने के कारण यह पित का नाश करता है एवं मज्जावह स्रोतस का पोषण करके मेध्य करता है अर्थात यह कमजोर शरीर को पौषित करने एवं मोटा करने का कार्य करता है |

बल्य – बृहन-रसायन : – इसका फल मधुरस होने से मांसादी धातुवर्द्धन करके बल्य, बृहन, रसायन कर्म करने का कार्य करता है | क्षत, सामान्य दौर्बल्यता आदि में फलों का प्रयोग करवाया जाता है |

रक्तपित – गंभारी के फल शीतवीर्य होने से रक्तगत पित्त का शमन करते है | मधुरता से हृदय के लिए फायदेमंद होकर वातज हृदयरोगों में लाभ करता है | साथ ही यह रक्त की शुद्धि करने का कार्य भी करता है , अत: इसके सेवन से रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाले रोगों में अत्यंत लाभ मिलता है | गंभारी के फल को शहद या सीत के साथ प्रयोग करने से पितज्वर, छर्दी, जलन एवं सीने के जलन में लाभ मिलता है |

ज्वर – गंभारी की जड़ का प्रयोग वातज ज्वर में किया जाता है | फल का प्रयोग पितजज्वर एवं जलन एवं अधिक प्यास की समस्या में कर सकते है |

तृषा – फल शीत एवं पित्त का नाश करने वाला होता है | अत: तृषा (प्यास की बार – बार इच्छा होना) का नाश करने के लिए उपयोग किया जाता है |

वृष्य / गर्भस्थापन – फल मधुर, गुरु, स्निग्ध गुण से वृष्यकर्म कर गर्भस्थापन कर कार्य करता है | यह शुक्रदौर्बल्य एवं गर्भाशय के बल्यार्थ एवं गर्भ से होने वाले असामयिक स्राव में उपयोग करने चाहिए |सूतिकाजन्य रोगों (प्रसव के उपरांत माताओं में होने वाले रोग) में गंभारी की जड़ का क्वाथ सुजन आदि को दूर करने में प्रयोग करते है |

मूत्रविकार – गंभारी के फल मूत्र जनन का कार्य करते है अत: पेशाब का रुक रुक कर आना, पुयमह, बस्ती की सुजन आदि में फायदेमंद रहते है | गंभारी के पत्ते का स्वरस निकाल कर गाय के दूध और मिश्री के साथ प्रयोग करने से मूत्रपरवृति साफ़ होती है |

गंभारी के फायदे / Gambhari Benefits in Hindi

  • गंभारी का युष निकाल कर मिश्री के साथ प्रयोग करने से रक्तातिसार में फायदा मिलता है |
  • मुलेठी और गंभारी का तेल का सेवन वातरक्त में सेवन करना चाहिए |
  • गंभारी फल के मज्जा का क्वाथ ठंडा करके, मिश्री मिलाकर पिलाने से जलन, बार – बार प्यास लगना एवं ज्वर आदि का नाश होता है |
  • इसके तेल को नस्य के रूप में प्रयोग करवाना नस्य पलित रोगों में उपयोगी है |
  • रक्तपित की समस्या में इसके फलों के मज्जा को शहद के साथ प्रयोग करवाना फायदेमंद रहता है |
  • गंभारी के पके हुए फलों को सुखाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शीतपित्त में फायदा मिलता है |
  • पत्तों के स्वरस से सुजाक के घाव को धोया जाए तो घाव ठीक होने एवं सुजन में आराम मिलता है |
  • सिरदर्द में इसके पतों को पीसकर लुगदी बना कर माथे पर लेप करने से सिरदर्द में आराम मिलता है |
  • गंभारी के फलों को सुखाकर बनाये गए चूर्ण को मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करवाने से मर्दाना कमजोरी जैसे वीर्य की कमी एवं शारीरिक कमजोरी में फायदा मिलता है
  • औषधीय उपयोग में इसके पते , जड़, छाल एवं फलों का ही अधिक प्रयोग किया जाता है | अधिक प्यास लगने एवं अधिक गर्मी लगने की स्थिति में फलों का ज्यूस बनाकर सेवन करना फायदेमंद होता है |
  • महिलाओं के स्तनों की वृद्धि करने एवं उनमे दूध की कमी में इसके स्वरस को तिल के तेल में पकाकर बनाये तेल से मालिश करने एवं दूध की वृद्धि करने के लिए जड़ का क्वाथ बनाकर शहद के साथ सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है |

गंभारी के प्रयोज्य अंग, मात्रा एवं विशिष्ट योग

आयुर्वेद चिकित्सा में इसके उपयोग से दशमूल क्वाथ, दशमूलारिष्ट, बृहतपञ्चमुलादि क्वाथ एवं श्रीपर्णी तेल का निर्माण किया जाता है | इसके फल, मूल एवं पत्तों का स्वरस औषध उपयोग में लिया जाता है | इससे निर्मित क्वाथ का प्रयोग 50 – 100 मिली तक करना चाहिए |

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पुन: धन्यवाद ||

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