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कनकासव / Kanakasava in Hindi
श्वास एवं कास की एक प्रशिद्ध आयुर्वेदिक दवा है | कफज विकार जैसे श्वांस, खांसी, अस्थमा, सीने में कफ जमना आदि में इस दवा का प्रयोग किया जाता है | आयुर्वेद में आसव – अरिष्ट कल्पना के तहत इस आयुर्वेदिक सिरप का निर्माण किया जाता है | कनकासव सिरप का मुख्य घटक “कनक” अर्थात धतुरा है , इसके साथ ही वासा, कंटकारी एवं मधुक आदि कुल 14 घटक द्रव्य पड़ते है | दमा, टीबी, रक्तपित, जीर्णज्वर आदि रोगों में इसका आमयिक प्रयोग किया जाता है | वैसे अस्थमा एवं क्षय रोग की यह उत्तम दवा है | इसमें धतूरे एवं वासा आदि के गुण होने के कारण दमे जैसे रोग के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होती है |
अगर आप कनकासव खरीदने की सोच रहें है तो बाजार में यह कई कंपनियों की उपलब्ध है | जैसे – बैद्यनाथ कनकासव, पतंजलि, डाबर, धुतपापेश्वर एवं श्री मोहता आदि फार्मेसी इसका निर्माण करती है | बैद्यनाथ के उत्पाद उच्च गुणवता युक्त होते है अत: बैद्यनाथ कंपनी का खरीदना सही निर्णय होगा | कई आयुर्वेदिक फार्मेसी इसे kanakasavam के नाम से भी बनाती है |
कनकासव के घटक द्रव्य / Ingredients
इसके निर्माण में कुल 14 घटक द्रव्यों की आवश्यकता होती है | यहाँ हमने भैषज्य रत्नावली के अनुसार इसके घटक द्रव्यों की सूचि दी है | आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली के हिक्का / श्वास चि. 115-119 में इसका वर्णन मिलता है | इसके निर्माण में प्रयुक्त होने वाले औषध द्रव्य निम्न है –
- धतुर (शा. मू. प. फ) -192 ग्राम
- मुलेठी – 96 ग्राम
- पिप्पली – 96 ग्राम
- वासा – 96 ग्राम
- कंटकारी – 96 ग्राम
- नागकेशर – 96 ग्राम
- भ्रंगी – 96 ग्राम
- सौंठ – 96 ग्राम
- तालिश पते – 96 ग्राम
- धातकी पुष्प – 768 ग्राम
- मुन्नका – 960 ग्राम
- शहद – 2 . 400 किलोग्राम
- शक्कर – 4. 800 किलोग्राम
- जल – 24. 576 किलोग्राम
कनकासव बनाने की विधि / how to made
इसका निर्माण आयुर्वेद की आसव कल्पना विधि से ही किया जाता है | आसव कल्पना द्रव्यों को संधानित करने की ही प्रक्रिया होती है, जिसमें औषध द्रव्यों का बैगर क्वाथ निर्माण किये सीधा ही संधान किया जाता है | इस आयुर्वेदिक सिरप के निर्माण के लिए सबसे पहले ऊपर बताये गए क्रम संख्या 1 से 10 तक के द्रव्यों को लेकर इनका यवकूट (जौ के सामान) चूर्ण कर लिया जाता है | मुन्नका (दाख) को भी कूटकर रख लिया जाता है | अब संधान पात्र (मिटटी का घड़ा) में शुद्ध जल डालकर उसमे शर्करा एवं शहद को अच्छी तरह मिला लिया जाता है | फिर बाकी सभी द्रव्यों के चूर्ण को डालकर पात्र का मुख अच्छी तरह बंद कर दिया जाता है | महीने भर तक इस पात्र को रख दिया जाता है | अंत में संधान परिक्षण से परीक्षित करके (उचित संधान होने पर) बोतलों में भर कर रखा जाता है | इस प्रकार से कनकासव का निर्माण होता है | आयुर्वेद की आसव कल्पना के तहत बनी सभी दवाओं का निर्माण इसी प्रकार से होता है बस उनके द्रव्यों का परिवर्तन होता रहता है |
आयुर्वेदिक आसव एवं अरिष्ट में अंतर
आपने आयुर्वेद की बहुत सी दवाओं के नाम सुने होंगे | जैसे अशोकारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, दश्मुलारिष्ट , चन्दनासव, कनकासव, द्राक्षासव आदि | इनमें से कुछ के नाम के अंत में अरिष्ट शब्द लगा है एवं कुछ के नाम के अंत में आसव शब्द आया है | इन दोनों प्रकार की दवाओं के निर्माण में कुछ भिन्नता होती है | आसव एवं अरिष्ट में क्या अंतर है ? आसव विधि के तहत तैयार होने वाली सिरप में इसके घटकों का सीधा ही प्रयोग होता है अर्थात पहले क्वाथ का निर्माण नही किया जाता | लेकिन अरिष्ट नाम आने वाली सभी आयुर्वेदिक दवाओं में इसके घटक द्रव्यों से पहले क्वाथ का निर्माण किया जाता है अर्थात संधान (किण्वन की विधि) में क्वाथ का ही प्रयोग होता है |
कनकासव की खुराक या सेवन विधि / Dosage
इसका सेवन भोजन करने के पश्चात 12 से 24 मिली की मात्रा में करना चाहिए | सेवन करते समय बराबर मात्रा में गुनगुने जल का प्रयोग किया जाना चाहिए | रोग एवं रोगी की प्रकृति के आधार पर वैद्य इसकी खुराक निर्धारित करते है | अत: सेवन से पहले निपुण वैद्य से परामर्श लेना आवश्यक है |
कनकासव के फायदे या स्वास्थ्य लाभ / Health Benefits of Kankasava in Hindi
- अस्थमा रोग में यह सर्वाधिक उपयोगी है |
- खांसी एवं जमे हुए कफ में इसके सेवन से लाभ मिलता है |
- टी.बी. रोग में भी इसका सेवन फायदेमंद होता है |
- यह छाती में जमे हुए कफ एवं संक्रमण को दूर करने में लाभदायक आयुर्वेदिक दवा है |
- रक्तपित की समस्या में इसका आमयिक प्रयोग बताया गया है |
- जीर्ण ज्वर एवं क्षतक्षीण में भी इसका सेवन बताया गया है |
- पाचन को सुधारती है |
- आमपाचन का कार्य करती है |
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Good
Ye asardar h.
में अत्यधिक प्रसन्न हूं कि आपकी हरेक औषधि बहुत महत्वपूरण व लाभकारी है,
सर, टिप्पणी में सिर्फ यही कहना है कि आपका
प्रयास सार्थक और प्रशंसनीय है। आपको मेरी शुभकामनाएं।
धन्यवाद चन्द्रशेखर जी