तालीशपत्र / Talishpatra In Hindi (Albies webiana Lindle)
Talishpatra in hindi – तालीशपत्र एक आयुर्वेदिक हर्बल प्लांट (पौधा) है | इसके पतों का आयुर्वेद में बहुत सी औषधियां बनाने में प्रयोग किया जाता है | श्वसन सम्बन्धी विकारों में इसके योग से निर्मित तलिशादी चूर्ण का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है | ब्रोंकाइटिस, अस्थमा आदि रोगों में तलिशादी चूर्ण का विशिष्ट महत्व है | उष्ण वीर्य अर्थात गरम प्रकृति का होने के कारण वात और कफ विकारों के शमन में यह सहायक है |
तालीशपत्र का वानस्पतिक परिचय
भारत में हिमालय के आस पास इसके पौधे पाए जाते है | अधिकतर उतरी गोलार्द्ध के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाए जाते है | इसके वृक्ष सदा हरे भरे रहने वाले व लगभग 150 से 200 फीट ऊँचे होते है | वैसे इसकी कई नस्लें पाई जाती है जिनकी लम्बाई छोटी और मध्यम आकर की भी होती है | इसका शीर्ष गोलाकार और शाखाएं समानांतर फैली हुई होती है | नयी शाखाओं पर भूरे रंग के सूक्ष्म रोम होते है |
इसके पते 1 से 2 इंच लम्बे और 1/12 इंच चौड़े होते है | ये रेखाकार, चपटे, चमकीले और हरे रंग के होते है | इसके पते वृक्ष पर लगभग 8 से 10 साल तक स्थायी रहते है तभी यह वृक्ष सदैव हराभरा रहता है | आयुर्वेद और घरेलु चिकित्सा में इसके पतों का उपयोग कफज रोग, सिरदर्द, मानसिक तनाव , सर्दी – जुकाम एवं एलर्जी आदि में प्रचुरता से प्रयोग किये जाते है |
इसके अलावा खांसी, बुखार, उल्टी, मिर्गी, अरुचि, टी.बी. एवं अन्य वात एवं कफ से संग्रहित रोगों में प्रयोग किया जाता है |
तालीशपत्र के फल 4 से 6 इंच लम्बे और 1.5 इंच गोल व्यास के होते है | वर्ष भर में पकने वाले होते है | जैसे – जैसे फल पकता है इनके उपर लाल रंग का मीठा आवरण पनप जाता है , जिन्हें चिड़ियों द्वारा बड़े चाव से खाया जाता है | फलों से 1/2 से 1 इंच लम्बे बीज निकलते है जो अंडाकार एवं आयताकार होते है | ये बीज विषैले होते है |
तालीशपत्र का रासायनिक संगठन एवं गुण धर्म
इसके पतों में एक उड़नशील तेल पाया जाता है, एवं पेड़ से एक प्रकार की राल भी निकलती है | इसका रस तिक्त और मधुर होता है | गुणों में यह लघु और तीक्ष्ण होता है | इसका वीर्य उष्ण होता है एवं पाचन के बाद इसका विपाक कटु होता है | उष्ण वीर्य होने के कारण यह वात और कफ का शमन करता है |
तालीशपत्र के रोग प्रभाव
शुकोदर तालीशादी चूर्ण को श्वसन विकारों में जैसे – अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, दीर्घ ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, बलगम, खांसी, गले में दर्द, गले में सुजन, श्वास लेने में तकलीफ आदि में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है | यह अपनी विशेष अरोमा सुगंध के कारण सिरदर्द आदि में भी उपयोगी होता है | मानसिक विकार मिर्गी में भी यह उपयोगी होता है |
तालीशपत्र के प्रयोज्य अंग , मात्रा और इसके योग
औषध उपयोग में सैदव इसके पतों का इस्तेमाल किया जाता है | आयुर्वेदिक चिकित्सा हो या घरेलु प्रयोग दोनों में इसके पतों का ही उपयोग किया जाता है | इसके चूर्ण को 2 से 5 ग्राम तक इस्तेमाल किया जा सकता है | आयुर्वेद में तालीशपत्र के प्रयोग से तलिशादी चूर्ण, तलिशादी वटी आदि योगों का निर्माण किया जाता है | इन योगों में मुख्य द्रव्य तालीशपत्र ही होते है |
विभिन्न रोगों में तालीशपत्र के घरेलु प्रयोग एवं फायदे
जुकाम
जुकाम होने पर तालीशपत्र का प्रयोग लाभदायक होता है | इसमें एंटीवायरल गुण विद्यमान होते है जो सर्दी और जुकाम को 2 दिन के इस्तेमाल से ही ठीक कर देतें है | जुकाम होने पर तालिश के पतों के साथ कालीमिर्च और अदरक को डालकर बनाया गया काढ़ा काफी उपयोगी होता है |
अस्थमा में तालीशपत्र के फायदे
तालीशपत्र में पाए जाने वाले एंटीवायरल, एंटी – इन्फ्लेमेटरी (सुजन कम करना) और एंटीटिसिव गुणों के कारण यह अस्थमा में होने वाली श्वास नली की सुजन और फेफड़ों में जमे हुए कफ आदि का सफाया करता है | अस्थमा में तलिशादी चूर्ण को 2 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह – शाम शहद के साथ चाटने से जल्द ही अस्थमा से राहत मिलती है |
ब्रोंकाइटिस में तालीशपत्र का प्रयोग
ब्रोंकाइटिस की समस्या में तालिश्पत्रों के काढ़े का सेवन लाभ देता है | यह काढ़ा श्वासनली की सुजन को जल्द ही ठीक कर देता है | इसके काढ़े को सुबह – शाम दोनों समय कुछ दिनों तक सेवन करने से ब्रोंकाइटिस की समस्या दूर हो जाती है |
खांसी होने पर इसके फायदे
खांसी होने पर तालीशपत्र – 1 भाग, सौंठ – 2 भाग, कालीमिर्च – 3 भाग, पिप्पल – 4 भाग एवं वन्स्लोचन – 5 भाग | इन सभी को निश्चित मात्रा में लेकर इनका महीन चूर्ण बना ले | इस चूर्ण का इस्तेमाल सुबह – शाम आधा से एक ग्राम करने से खांसी चली जाती है | साथ ही सर्दी – जुकाम , श्वास, अस्थमा और गले के रोगों में लाभ मिलता है |
अरुचि एवं स्वर भंग में तालीशपत्र के फायदे
2 ग्राम तालिशापत्र के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से भोजन में होने वाली अरुचि में लाभ मिलता है | साथ ही इस तरह से प्रयोग करने से स्वर-भंग में भी लाभ मिलता है |
तालीशपत्र के प्रयोग में सावधानियां
- गर्भवती महिलाओं को इसके चूर्ण का इस्तेमाल चिकत्सक की देख रेख में करना चाहिए | अधिकतम 2 ग्राम से अधिक न सेवन करे |
- उष्ण प्रकर्ति के लोगों को भी इसका प्रयोग चिकित्सक से सम्पर्क करके करना चाहिए |
- अलसर एवं पेट के छालों में इसका प्रयोग नहीं करे |
- बवासीर के रोगी भी इसके पतों का सेवन उचित दिशा निर्देश अनुसार करे |
- हृदय प्रदाह की समस्या में प्रयोग न करे |
- पेट की जलन में भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए |
- वैसे तालिश्पत्रों के कोई साइड इफ्फेक्ट नहीं है फिर भी चिकित्सक द्वारा बताई गई मात्रा से अधिक सेवन न करे |
धन्यवाद |
बहुत हीं ज्ञान वर्धक पोस्ट है।🙏