बच्चों में होने वाले निमोनिया के कारण , लक्षण, प्रकार और आयुर्वेदिक उपचार

निमोनिया (Pneumonia) / बच्चों का श्वसनक ज्वर 

आयुर्वेद में निमोनिया को श्वसनक ज्वर या फुफ्फुसीय ज्वर कहा जाता है | बालकों में श्वसन संस्थान की होने वाली व्याधियों में निमोनिया सबसे प्रमुख व्याधि है | फेफड़ो में बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण के कारण निमोनिया की उत्पति होती है | इसका मुख्य कारण Diplocccus Pneumonia नामक बैक्टीरिया का संक्रमण फेफड़ों में होना होता है | इसके अलावा जिन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है एवं जो दूषित वातावरण में रहते है उनमे प्रतिश्याय और इन्फ्युएन्जा के विषाणु के कारण श्वसनवह संस्थान में विकृति उत्पन्न होकर फेफड़ों में सुजन हो जाती है जिसे निमोनिया रोग कहते है |

निमोनिया

न्युमोनिया होने पर बच्चे के श्वास लेनें में कठिनाई के साथ – साथ ज्वर भी हो जाता है | निमोनिया का संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में होता है | इसका संचय काल 1 से 2 दिन का होता है | जब संक्रामक व्यक्ति के सम्पर्क में आने से या फिर विषाणु के संक्रमण होने पर इस जीवाणु का सबसे पहले संक्रमण नाक के पश्च भाग और गले के उर्ध्व भाग में होता है | तत्पश्चात ये जीवाणु श्वास के द्वारा बाएं फुफ्फुस में पंहुच जाते है और वहां उच्च मात्रा में संक्रमण पैदा करते है जिससे निमोनिया की स्थिति उत्पन्न हो जाती है |

निमोनिया के प्रकार / Types of Pneumonia

Pneumonia को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है, जिसमे से प्रत्येक वर्गीकरण में निमोनिया के भिन्न – भिन्न प्रकार है |

1. स्थान द्वारा वर्गीकृत निमोनिया (Types by Location)

स्थान के आधार पर निमोनिया के दो प्रकार है –

  1. समुदाय से उपार्जित निमोनिया – इस प्रकार का निमोनिया भीड़ – भाड़ वाली जगहों पर जाने से होने वाले संक्रमण के कारन होता है | स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया इसका सबसे बड़ा कारण है |
  2. अस्पताल से उपार्जित – इस प्रकार के निमोनिया को नोदोमोमिया निमोनिया भी कहा जाता है | अधिकतर अस्पताल में भर्ती होने के बाद संक्रमण के कारण फैलने वाला न्युमोनिया है |

2. रोगाणुओं के आधार पर (Types by Germs)

रोगाणुओं के आधार पर निमोनिया के 4 प्रकार होते है –

  1. बैक्टीरिया / Bacteria Pneumonia – बैक्टीरिया के कारण होने वाले Pneumonia को इस प्रकार में जगह दी जाती है | स्ट्रेप्टोकोकस विषाणु इसका मुख्य कारण होता है |
  2. वायरल / Viral Pneumonia – बच्चो में सबसे अधिक होने वाला प्रकार है | यह वायरस के कारण होता है और अधिक गंभीर नहीं है अर्थात आसानी से ठीक होने वाला नुमोनिया रोग है |
  3. माइकोप्लाज्मा / Mycoplasma Pneumonia – इस प्रकार का Pneumonia अक्सर वयस्कों में अधिक होता है | यह बैक्टीरिया या वायरस के कारण नहीं होता लेकिन फिर भी इसके लक्षण दोनों प्रकारों से मिलते – जुलते होते है | इस प्रकार का निमोनिया कम ही देखने को मिलता है |
  4. फंगल / Fungal Pneumonia – कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता के बच्चों को अधिक होता है | यह पशु – पक्षियों के अवशिष्ट अर्थात जैसे – इनके पंख , बीट या फंगस के कारण होता है |

3. रचना की द्रष्टि से निमोनिया के प्रकार (Types by Compositionally)

रचना की द्रष्टि से Pneumonia के दो प्रकार है –

  1. Labural Pneumonia
  2. Broncho Pneumonia

निमोनिया के लक्षण / Symptoms of Pneumonia in Hindi

फुफ्फुसीय ज्वर होने पर बच्चे में निम्न लिखित लक्षण दिखाई देते है –

  • रोग के प्रारंभिक दिनों में 103 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार रहती है | ज्वर के साथ – साथ बच्चा निढाल हो जाता है |
  • श्वास लेने में कठिनाई होती है |
  • रोगी को छाती के किसी एक और तीव्र चुभने जैसी पीड़ा अनुभव होती है | यह अधिकतर खांसने और श्वास लेने पर अधिक होती है |
  • बार – बार खांसी आना |
  • रोग के कुछ दिनों बाद खांसने पर गुलाबी रंग का कफ निकलने लगता है |
  • श्वास में घरघराहट की आवाज आना |
  • बच्चो को उल्टी और दस्त की समस्या भी हो जाती है |
  • रोगी बच्चे की नाड़ी गति भी अधिक होती है , यह प्राय: 110 से 120 प्रति मिनट तक होती है जो दीर्घ और कम दबाव की होती है |
  • बच्चे की जीभ देखने पर यह श्वेत और शुष्क दिखाई देती है |
  • बच्चे के होंठ लालिमा युक्त हो जाते है |
  • स्टेथोस्कोप से परिक्षण करने पर श्वास में घरघराहट सुनाई देती है |

आयुर्वेद में कैसे किया जाता है निमोनिया का इलाज / Ayurvedic Treatments of Pneumonia in Hindi

आयुर्वेद में सबसे पहले रोगी के रोग का निदान किया जाता है अर्थात रोग की पहचान की जाती है | इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी के सामान्य परिक्षण या लेबोरेट्री परीक्षणों से रोग के अवस्था और प्रकार का ज्ञान करते है | उसके पश्चात रोगी के उपयुक्त आहार – विहार के साथ औषध का निर्धारण करते है | आयुर्वेदिक चिकित्सा में निमोनिया के लिए निम्न लिखित औषध प्रयोग किये जाते है –

1. चूर्ण प्रयोग – चूर्ण प्रयोग में सितोप्लादी चूर्ण, तालिशादी चूर्ण, पुष्करमूल चूर्ण या मुलेठी चूर्ण में से रोगी की प्रकृति और रोग की अवस्था के आधार पर चुनाव करते है |

2. रस का प्रयोग – निमोनिया के लिए आयुर्वेद में वृहतकस्तूरीभैरव रस, त्रिलोक्य चिंतामणि रस, त्रिभुवनकीर्ति रस, आनंदभैरव रस या नारदीय लक्ष्मीविलास आदि का प्रयोग किया जाता है |

3. क्वाथ प्रयोग – शुंठीभारंगी क्वाथ, गोजिव्ह्यादी क्वाथ या गुलाब वनफ्सादी क्वाथ में से किसी एक क्वाथ का प्रयोग किया जाता है |

4. रस सिंदूर, सौभाग्य वटी, कफसेतु रस, समिर्पन्न्ग रस का प्रयोग भी श्वसनक ज्वर में किया जाता है |

इन औषधियों में से चिकत्सक रोगी की प्रकृति और रोग की अवस्था के आधार पर औषध व्यवस्था का निर्धारण करते है | साथ ही रोगी के आहार – विहार में सुधार के लिए भी निर्देश देते है , ताकि रोग से जल्द छुटकारा मिलसके |

निमोनिया में रोगी शिशु के लिए बरती जाने वाली सावधानियां / General Precautions of Pneumonia  

  • बच्चे को पूर्णतया विश्राम दे |
  • शिशु के कमरे में स्वच्छ हवा का आदान – प्रदान होता रहना चाहिए | इसके लिए रोगी को खिडकियों और रोशनदानी से युक्त कमरे में रखना चाहिय ताकि बाहर की शुद्ध हवा और रौशनी रोगी को मिलती रहे |
  • ठन्डे पदार्थों के सेवन पर रोक लगा दे |
  • बच्चे को सीधे ही ठंडी वायु में बाहर नहीं निकालें |
  • हमेशां पीने के लिए गरम पानी दे |
  • बच्चे की छाती पर मालिश करनी चाहिए | मालिश के लिए घी और सेंधा नमक का इस्तेमाल करे |
  • कुमार को दिन में एक बार वाष्प स्वेदन जरुर दें |
  • बच्चे को अधिक तरल पदार्थो का सेवन करवाए, लेकिन वे शीत प्रकृति के न हो |
  • हमेशां बच्चे के सिर को गरम कपडे से ढक कर रखें | सीधे ही ठंडी हवा में न जाने दे |
  • बच्चे को संभावित संक्रमणों से बचा कर रखें | धूल एवं धुंए से भी रोगी शिशु को दूर रखें |

 धन्यवाद |

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