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जमालघोटा / jamalghota (Croton Tiglum)
परिचय – जमालगोटा एक आयुर्वेदिक हर्बल औषधि है जिसका इस्तेमाल कब्ज , गंजेपन , जलोदर आदि में किया जाता है | मुख्य रूप से यह एक तीव्र विरेचक औषधि है , जो पुराने कब्ज को तोड़ने का काम करती है | इसका पौधा हमेशा हरा – भरा रहता है | भारत में इसके क्षुप (पेड़) बंगाल , आसाम , पंजाब एवं दक्षिणी भारत में आसानी से मिल जाते है | जमालघोटा को हमारे यहाँ जयपाल के नाम से भी जानते है |
इसके क्षुप की लम्बाई 4 से 6 मीटर तक होती है | जो सदाबहार होते है | जमालघोटा के पत्र 2 से 4 इंच लम्बे – चौड़े होते है , जो आकर में अंडाकार , आगे से कुछ नुकीले एवं कुंगेरदार होते है | इसके फुल हरिताभ पीत वर्ण के होते है अर्थात पीले होते है | ये मंजरियों के रूप में लगते है | इसके फल तीन भागों में विभक्त होते है जिनपर कुच्छ बैगनी रंग की हलकी आभा होती है | ये फल 1 इंच तक लम्बे होते है | इसके बीज एरंड के समान मांसल और बादामी रंग के होते है | इसके बीजो को ही आयुर्वेद में औषध प्रयोग में लिया जाता है |
जमालघोटा / Jamalghota का रासायनिक संगठन
इसके बीजो में एक स्थिर तेल होता है | जिसका प्रयोग अनेक आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है | इसके अलावा इसमें टिगालिक एसिड , ओलीइक , पेनिटिक क्षोभ उत्पादक तत्व एवं एक विस्फोटजनक तत्व पाए जाते है |
जमालघोटा के गुण-धर्म एवं रोग प्रभाव
यह कटु रस का होता है | गुणों में स्निग्ध, तीक्ष्ण एवं गुरु होता है | इसका वीर्य उष्ण एवं पचने के बाद विपाक कटु होता है | यह तीव्र विरेचक गुणों से युक्त होता है | इन्ही गुणों के कारण इसका इस्तेमाल जलोदर, शोथ , आमवात , कब्ज एवं उदर कृमि आदि रोगों में किया जाता है | आयुर्वेद में जमालघोटा के इस्तेमाल से नाराच रस , जलोदरारिरस , इछाभेदी रस एवं बिंदुघृत आदि विशिष्ट योग उपलब्ध है |
जमालघोटा / jamalgota के विभिन्न भाषाओँ में पर्याय
संस्कृत – जयपाल , दंतिबिज , तिन्तिदी फल |
हिंदी – जमालघोटा , जयपाल , जपोलघोटा व अजयपाल
मराठी – जेपाल
गुजराती – जैपाली
बंगला – जयपाल
अंग्रेजी – Purgative croton
लेटिन – Croton tiglum
विभिन्न रोगों में जमालघोटा / jamalgota के फायदे और उपयोग की विधि
- गंजापन – अगर आपके बाल झड रहे हो तो जमालगोटा का पेस्ट बना कर गंजेपन से प्रभावित जगह पर लेप करे | जल्द ही बाल झड़ने बंद हो जायेंगे और नए बाल भी आने शुरू हो जायेंगे | निम्बू के रस में जमाल घोटे को पीसकर लेप करने से भी फायदा मिलता है |
- जीर्ण विबंद – जमालघोटा एक तीव्र विरेचक औषधि है | कितनी भी पुराणी कब्ज हो जमालघोटे के उपयोग से कब्ज आसानी से टूट जाएगी | जमालघोटे के एक बूंद तेल या इसके बीज के 30 से 40 मिलीग्राम चूर्ण का सेवन करने से दस्त शुरु हो जाते है | ध्यान दे यह एक तीव्र विरेचक औषधि है अगर इससे अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है | अगर दस्त न रुके तो कत्था और निम्बू को मिलकर सेवन के लिए दे |
- त्वचा विकार – त्वचा विकारो में इसके बीजो का लेप बना कर प्रभावित तवचा पर लगाने से लाभ मिलता है |
- शीघ्रपतन – शीघ्रपतन या नपुंसकता की समस्या में जमालघोटे के तेल को लिंग पर लगा कर मालिश करने से लाभ मिलता है | यह तेल स्तम्भन शक्ति को बढ़ा देता है जिससे मर्दाना कमजोरी खत्म हो जाती है |
- सिरदर्द – सिरदर्द में माथे पर इसके पेस्ट का लेप करने से लाभ मिलता है |
- घाव – पुराने घाव पर जमालघोटा को पीसकर लगाने से घाव जल्दी भरता है |
- आमवात – आमवात से पीड़ित व्यक्तियो को जमालघोटे के तेल से मालिश करनी चाहिए |
जमालघोटे / jamalgota का इस्तेमाल करते समय बरते ये सावधानियां
जमालघोटा एक तीव्र विरेचक द्रव्य है | इसके अधिक सेवन से तीव्र विरेचन और उल्टियाँ हो सकती है | अत: इसका प्रयोग हमेशा अपने निजी चिकित्सक की देख रेख में ही करना चाहिए | अगर इसके तेल की 10 बूंद एक साथ सेवन करली जाय तो यह जहरीला साबित होता है और इससे व्यक्ति की म्रत्यु तक हो सकती है | जमालगोटा के चूर्ण का सेवन भी एक उचित मात्रा में ही करना चाहिए | अधिक सेवन से पेट में जलन , अमाशय और आंतो पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |
बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इसका इस्तेमाल बिलकुल नहीं करना चाहिए | क्योंकि छोटे बच्चे और गर्भवती महिलाऐं इसके रोग प्रभाव को सहन नहीं कर सकते | ध्यान दे हमेशा शुद्ध जमालघोटे का ही इस्तेमाल करना चाहिए अर्थात इसे सुध्ह कर के ही प्रयोग में ले | जमालघोटे को शुद्ध करने के लिए इसमें दूध , दही या छाछ को मिलाकर इसे शुद्ध करना चाहिए | इसकी सेवन की मात्रा 30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक अधिकतम हो सकती है | इस मात्रा से अधिक कभी भी सेवन न करे |
धन्यवाद |