पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna
उदर रोगों से आज के दिन अधिकतर व्यक्ति परेशान रहते है | असंतुलित आहार – विहार , अनियमित आहार एवं स्वादवस् किया गया अपथ्य आहार आदि कारण है जो उदर रोगों एवं यकृत के रोगों को जन्म देते है |
उदर रोगों में अपच , अजीर्ण और विबंध ( कब्ज ) मुख्य रोग है | उदर की खराबी शरीर में 80 प्रकार के रोगों को जन्म देती है | वैसे तो आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में बहुत सी औषधियां है जो उदर विकारो में काफी असरदार साबित होती है |
इन औषधियों में शामिल Panchkol churna सबसे ज्यादा उपयोगी और सार्थक औषधि है | आज आपको पंचकोल चूर्ण को बनाने की विधि और सेवन की विधि के बारे में बताएँगे ताकि आप इस चूर्ण को घर पर तैयार कर सके और इसका सही तरीके से सेवन करके रोगों से बच सके |
पंचकोल चूर्ण बनाने की विधि / Panchkol Churna
जैसा की नाम से ज्ञात होता है | पंचकोल अर्थात पांच औषधियों के मिश्रण की एक मात्रा जिसे पंचकोल कहते है | यह दो शब्दों से मिलकर बना है – पञ्च + कोल | पञ्च = 5 और कोल एक आयुर्वेदिक परिमाण की मात्रा है | पंचकोल चूर्ण में पांच द्रव्यों का मिश्रण किया जाता है |
- पिप्पली
- पिप्पली मूल
- च्वय
- चित्रक
- शुंठी
ये सभी द्रव्य आपको पंसारी की दुकान से मिल जावेंगे | इन सभी को 50 – 50 ग्राम की मात्रा में लेकर, इनको कूट – पीसकर महीन चूर्ण बना ले | तैयार चूर्ण को किसी कांच की शीशी में भर ले | आपका पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna तैयार है |
पंचकोल चूर्ण ( Panchkol Churna ) की सेवन विधि और मात्रा
पंचकोल चूर्ण में पड़ने वाले पांचो द्रव्य उष्ण वीर्य के होते है , इसलिए इसे पंचोषण भी कहा जाता है | पंचकोल को 3 ग्राम तक की मात्रा में शहद या गरम पानी के साथ सेवन करना चाहिए |
अगर आपकी प्रकृति उष्ण है तो इसे एक गिलास छाछ में 3 ग्राम की मात्रा में पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna मिलाकर , घूंट घूंट पी सकते है |
पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna को दाल के साथ भी सेवन किया जा सकता है | या तो इसे दाल के ऊपर छिडक कर खा सकते है या दूसरी विधि है जब आप दाल बनाये तब एक साफ़ सूती कपडे में 20 ग्राम की मात्रा में पंचकोल चूर्ण बांध कर पोटली बना ले |
दाल को उबालते समय यह पोटली भी इसके पानी में डुबाकर लटका दे | दाल में छोंकन देशी घी का दे और फिर से पकने तक पोटली को दाल में डूबी रहने दे , जब दाल तैयार हो जाए तब पोटली निकाल कर फेंक दे | इस दाल का सेवन करने से पाचन प्रणाली सही होती है एवं इससे दाल का स्वाद भी बढ़ जाता है |
पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna के रोग प्रभाव –
पंचकोल चूर्ण / Panchkol churna – कटु रस , कटु विपक्क , तीक्ष्ण गुण और उष्ण वीर्य का होता है | इसलिए यह उत्तम रुचिकर ( भोजन में रूचि बढ़ाने वाला ) , दीपन , पाचन , पित्त्कोपक एवं वात एवं काफ का शमन ( नाश ) करने वाला है |
पंचकोल चूर्ण के सेवन से उदर के सभी रोगों में लाभ मिलता है | यह गुल्म , आनाह ( आफरा ), यकृत के दोष , प्लीहा वर्द्धि , उदर शूल ( पेट दर्द ) कफजन्य व्याधियों को नष्ट करता है |
इसके अलावा कब्ज , श्वास – कास ज्वर , अरुचि और अग्निमंध्य रोगों में उत्तम परिणाम देता है | कब्ज होने पर इसे रात्रि में सोते समय 3 ग्राम की मात्रा में गरम पानी के साथ सेवन करे , जल्द ही आपको कब्ज से छुटकारा मिलेगा और शरीर स्वस्थ रहेगा |
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धन्यवाद |
Bhaut badiya lagi
धन्यवाद गुप्ता जी |
very nice
Sr
liver jandice ko panchkol churna LA Sakta ha