गिलोय – गिलोय के फायदे और गिलोय के औषधीय गुण

गिलोय (गुडूची)

परिचय(कृपया पूरा लेख पढ़ें तभी आप गिलोय को सम्पूर्ण समझ सकते है) प्राय सर्वत्र भारत में पायी जाने वाली एक बहुवर्षायु लता है | जिसे आप खेत, घर, बाग़ – बगीचे या सड़क के किनारे किसी पेड़ या दीवार पर चढ़ी हुई देख सकते है | गिलोय के पते पान के पतों की आकृति के होते है | आयुर्वेद में इसे अमृता कहा जाता है क्योकि इसके जो गुण है वो अमृत के समान उपयोगी है | मानव शरीर पर गिलोय का प्रयोग अमृत के समान फलदायी होता है |

परम्परागत चिकित्सा पद्धति में गिलोय का इस्तेमाल शुरू से ही होता आया | भारत के आम नागरिको को भी इसके चिकित्सकीय गुणों का ज्ञान सदा से ही रहा है | गाँवों में प्राचीन समय से ही बुखार , कफज आदि रोगों में गिलोय का काढ़ा देने का प्रचलन रहा है |

गिलोय का प्रमुख गुण होता है की यह जिस पेड़ पर चढ़ कर फैलती है | उसके सारे गुण भी अपने में गृहण कर लेती है | नीम पर चढ़ी गिलोय स्रवाधिक उपयोगी मानी जाती है – जिसे नीम गिलोय भी कहते है , इसमें नीम के सारे गुण होते है साथ ही अपने गुणों के कारण यह मधुमेह जैसे रोगों में अधिक लाभदायक सिद्ध होती है |

गिलोय का कांड (तना)

गिलोय का डंठल

औषध उपयोग में गिलोय का कांड ही सर्वाधिक उपयोगी होता है | इसका तना मांसल होता है जिनपर लताये निचे की तरफ झूलती रहती है | गिलोय के तने का रंग धूसर , भूरा या सफ़ेद हो सकता है | तने की मोटाई अंगुली से अंगूठे जितनी होती है , लेकिन अगर बेल अधिक पुरानी है तो यह तना भुजा के आकार का भी हो सकता है | तने को काटने पर तने के अन्दर का भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है |

गिलोय के पत्र (पतियाँ)

गिलोय के औषधीय गुण

पान के पते आप सभी ने देखे होंगे | गिलोय के पते भी पान के पतों के समान आकृति और प्रारूप के होते है | गिलोय के पतों का व्यास 2″ से 4″ का होता है | पतों पर 7 से 8 रेखाएं बनी हुई होती है | इसके पत्र को छूने पर कोमल और स्निग्ध (चिकने) प्रतीत होते है | ये पते 1 से 3 इंच के पत्र डंठल से जुड़े होते है जो सीधा बेल के पतले तनों से जुड़े हुए होते है |

फुल 

ग्रीष्म ऋतू में जब गिलोय के पते झड जाते है तब इसके फुल आते है | गिलोय के फुल आकार में छोटे, पीले या हरिताभ पीले रंग के होते है | इसके फुल मंजरियों में इक्कठे लगते है |

गिलोय के फल 

गिलोय के फल

इसके फल शीत ऋतू में लगते है, जो आकार में मटर के सामान छोटे होते है जो अंडाकार और चिकने मांसल होते है | कच्चे फल हरे रंग के और पकने पर लाल रंग के हो जाते है | इन फलों में बीज निकलते है जो सफ़ेद और चिकने होते है , ये बीज मिर्च के बीज के सामान टेढ़े और पतले होते है |

गिलोय का रासायनिक संगठन 

इसके कांड में स्टार्च मुख्य रूप से पाया जाता है , इसके अलावा इसमें तीन रवेदार द्रव्य गिलोइन , गिलोइनिन और गिलिस्टरोल पाए जाते है तथा साथ में ही बर्बेरिन भी कुछ मात्रा में पाया जाता है |

गिलोय के औषधीय गुण धर्म

गिलोय का रस तिक्त और कषाय रस का होता है | गुण में गिलोय गुरु और स्निग्ध होती है | यह शीत वीर्य होती है व पचने पर इसका विपाक मधुर होता है | यह स्वाभाव में चरपरी, कडवी, रसायन, पाक में मधुर, ग्राही, कसैली, हलकी, गरम, बलदायक, त्रिदोष शामक और ज्वर, आम तृषा, प्रमेह, खांसी, पांडू, कामला, कुष्ठ, वातरक्त, कृमि, वमन, श्वास, बवासीर, मूत्र कृच्छ, हृदय रोग एवं वात प्रकोप को दूर करने वाला है |

गुडूची का सत्व वातिक, पैतिक, श्लेष्मिक ज्वर में बहुत फायदेमंद होता है | साथ ही जीर्ण ज्वर, सन्निपात ज्वर, ज्वरातिसार, सूतिका ज्वर, रात्रि ज्वर और मलेरिया ज्वर में बहुत गुणकारी माना जाता है | नीम गिलोय का सत्व मधुमेह रोग के लिए उत्तम औषधि साबित होता है | लगातार इसके सत्व का उपयोग करने से रक्त शर्करा का विकार दूर होने लगता है |

गिलोय के रोग-प्रभाव 

गिलोय त्रिदोष शामक औषधि है | यह सभी प्रकार के ज्वर में सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है | विषम ज्वर ,जीर्ण ज्वर, वायरल , छर्दी , अम्लपित, पीलिया, रक्ताल्पता आदि रोगों में भी बेहतर प्रभाव डालती है | रक्तविकार, यकृत , प्लीहा, सुजन , कुष्ठ, मेह, पुयमेह, श्वेत प्रदर और स्तन्य विकारो में लाभकारी होती है

मात्रा एवं सेवन विधि 

गिलोय का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक ले सकते है | इसके सत्व को 500 mg से 1 ग्राम तक लिया जा सकता है एवं क्वाथ को 5 से 10 ग्राम तक ले सकते है |

विभिन्न भाषाओँ में गुडूची के पर्याय 

संस्कृत – गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, छिनरुहा, तंत्रिका, कुंडलिनी, चक्रलाक्षणिका और वत्सादनि |

हिंदी – गिलोय, गुडूची |

बंगाली – गुलच्च |

मराठी – गुलवेल |

गुजराती – गलो |

तेलगु – टिप्पाटिगो |

लेटिन – Tinospora chordifolia Mies

जाने रोगानुसार गिलोय के फायदे एवं औषधीय लाभ 

गिलोय को अमृता भी कहा जाता है , क्योंकि इसके फायदे अमृत समान गुणकारी होते है | विभिन्न रोगों में गिलोय के लाभ एवं उपयोग यहाँ देख सकते है –

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में फायदेमंद 

गिलोय में एंटी ओक्सिडेंट गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते है | गिलोय के सेवन से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है , जिससे व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं होता एवं लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है | गिलोय के रस का नियमित सेवन करने से शरीर के गुर्दे और जिगर स्वस्थ रहता है | शरीर में मूत्र सम्बन्धी विकारो में भी गिलोय अच्छा परिणाम देती है | नियमित सेवन करने से शरीर बीमारियों से बच सकता है |

खून की कमी एवं रक्त विकारों में उपयोग 

गिलोय के नियमित सेवन से शरीर मे खून की कमी को पूरा किया जा सकता है | जिनके शरीर में खून की कमी है वे गिलोय के रस के साथ शहद मिलाकर सुबह – शाम सेवन करे | खून की कमी के साथ – साथ यह नुस्खा आपके खून को भी स्वस्थ रखने में मदद करेगा |

उत्तम ज्वर नाशक औषधि 

गिलोय एक प्राकृतिक ज्वरनाशक औषधि है | ज्वर या जीर्ण ज्वर में गिलोय के कांड का काढ़ा बना कर लेने से बुखार से निजात मिलती है – बुखार में इस काढ़े को तीन समय तक प्रयोग कर सकते है |

जिन्हें डेंगू , चिकन गुनिया या स्वाइन फ्लू की बुखार हो एवं खून में प्लेटलेट्स भी कम हो रहे हो तो – गिलोय के कांड के साथ पपीते के पतों का रस मिलाकर काढ़ा तैयार कर ले और नियमित सेवन करे | जल्द ही खून में प्लेटलेट्स की संख्या में बढ़ोतरी होगी एवं रोग में भी आराम मिलेगा |

आँखों की रोशनी बढ़ाती है गिलोय 

नेत्र विकारो में भी गिलोय के अच्छे परिणाम देखे गए है | जिनकी आँखों की द्रष्टि कमजोर हो वे गिलोय के स्वरस का सेवन कर सकते है या आँखों पर गिलोय के पतों को पिस कर लगाने से भी लाभ मिलता है |

वात व्याधि में गिलोय के फायदे 

वातज विकारो में मुख्य रूप से शरीर में दर्द रहता है यह दर्द जॉइंट्स ,कमर , पेट आदि किसी भी जगह हो सकता है | अगर आपके शरीर में वातज विकार हो तो गिलोय् के 3 ग्राम चूर्ण को शहद् या घी के साथ नियमित सुबह – शाम सेवन करे | शरीर के वातज विकारो में आराम मिलेगा |

पीलिया रोग में फायदेमंद 

पीलिया रोग में इसका सेवन करना फायदेमंद होता है | गिलोय में पाए जाने वाले तत्व पीलिया रोग को ठीक करने में कारगर सिद्ध होते है | गिलोय के कांड को कूट कर इसका काढ़ा बना ले और इसमें शहद मिलाकर नियमित सुबह शाम सेवन करे | छाछ के साथ गिलोय का रस मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया रोग में जल्दी ही आराम मिलता है |

कैंसर-रोधी गुणों से भरपूर 

इसमें कैंसर रोधी गुण पाए जाते है | ब्लड कैंसर के रोगी को गिलोय के रस के साथ गेंहू के ज्वारे का रस निकाल कर समान मात्रा में मिलाकर सेवन करने से काफी लाभ मिलता है | इसके अलावा गेंहू के ज्वारे का रस निकाल ले , समान मात्रा में गिलोय का रस मिला दे और साथ में तुलसी के पतों को पिस कर इस रस में मिलाले , इसका सेवन नित्य करने से कैंसर के रोग में काफी लाभ मिलता है | यह नुस्खा कीमोथेरेपी से होने वाले शारीरिक नुकसानों से भी बचाता है |

वमन में उपयोगी 

अगर आपको बैगर किसी कारण उल्टी हो रही है तो गिलोय इसमें फायदा कर सकती है | गिलोय के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से उल्टी होना बंद हो जाती है , साथ ही इसके प्रयोग से पेट भी स्वस्थ रहता है

उन्माद एवं हृदय रोगों में लाभदायक 

गिलोय उन्माद ( पागलपन ) के साथ – साथ हृदय के लिए भी फायदेमंद होती है | गिलोय के कांड को कूट कर इसका काढ़ा बना ले , इस काढ़े में एक चम्मच ब्राह्मी का रस मिलादे | इसका सेवन करने से हृदय को बल मिलता है एवं उन्माद दूर होकर याददास्त बढती है |

फोड़े – फुंसियों में उपयोग 

त्वचा के सभी विकारो में गिलोय एक अच्छी औषधि है | चेहरे पर फोड़े – फुंसी या दाग धब्बे है तो गिलोय के फलों को पिसले और इसका लेप चेहरे पर करे | फोड़े – फुंसियो में राहत मिलती है | गिलोय में एंटी बैक्टीरियल गुण मौजूद होते है अत: त्वचा के सभी प्रकार के इन्फेक्शन में भी गिलोय का प्रयोग किया जा सकता है |

फोड़े फुंसियों के लिए गुडूची का रस और निम्बू का रस दोनों को बराबर की मात्रा में मिलाकर चेहरे पर हल्के हाथों से मसाज करने से जल्द ही फोड़े-फुंसियाँ एवं मुंहासे ठीक होने लगते है |

गुडूची का सिद्ध योग 

गिलोय का सिद्ध योग बनाने के लिए गिलोय सत्व – 1 ग्राम में शहद 4 ग्राम अच्छी तरह मिलालें | यह इसकी एक मात्रा है | इसके उपयोग से शुक्रमेह मिटता है | शुक्रमेह में महीने भर तक सुबह एवं शाम इसका सेवन करना चाहिए |

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