शीतपित्त रोग क्या है❓- अर्थ, कारण, लक्षण एवं उपचार (Urticaria in Hindi)

शीतपित्त को Urticaria या उदर्द नामों से जाना जाता है | यह एलर्जी का ही एक प्रकार है | यह रोग शरीर के सम्पूर्ण हिस्सों पर शुरू हो सकता है | यह लाल, खुजलीदार दाने होते हैं जो उभार के साथ पुरे शरीर पर प्रकट हो सकते है |

आज हम इस लेख में एक सामान्य रोग शीतपित्त जो सामान्य होते हुए भी कई बार एक भयंकर रूप ले लेता है के बारे में विस्तार से बताएंगे तो चलिए जानते हैं शीतपित्त रोग क्या है, इसके कारण, लक्षण व उपचार के बारे में

शीतपित्त का अर्थ: शीतपित्त दो शब्दों से मिलकर बना है | जहाँ शीत का अर्थ है – ठंडा एवं पित्त से तात्पर्य उष्णता से है | अर्थात अत्यधिक ठन्डे के कारण अचानक से शरीर पर लाल चकते उभर आना ही शीतपित्त कहलाता है | इस रोग को बोलचाल की भाषा में शरीर में गर्मी का बढ़ना कहते हैं या जुलपित कहते हैं और शरीर में गर्मी बढ़ने के कारण पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं ।आधुनिक भाषा में इस रोग को Urticaria कहते हैं।

शीतपित्त

शीतपित्त रोग क्या है ? | What is Urticaria in Hindi❓

शरीर में गर्मी बढ़ने के कारण या अत्यधिक शारीरिक श्रम करने के बाद पसीने में ठंडे पदार्थ का सेवन करना या ठंडे स्थान का सेवन करने के कारण बढ़ा हुआ पित्त, कफ ओर वात के साथ मिलकर रक्त को दूषित कर देते हैं जिसके कारण त्वचा के भीतर या बाहर दाने उभर आते हैं जिसे शीतपित्त रोग कहते हैं। कई बार इन दानों में जलन और खुजली भी होती है।

शीतपित्त रोग के कारण | Causes of Urticaria in Hindi ☟

  • शरीर में अचानक गर्म और ठंडे का संयोग शीतपित्त रोग का प्रमुख कारण है।
  • तीनों दोषों के दूषित होने के कारण।
  • शरीर में अत्यधिक पित्त बढ़ने के कारण।
  • शरीर में खून के दूषित होने के कारण।
  • अत्यधिक मदिरा पान और ठंडे पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण।
  • रुक्ष ,तीखे, गर्म ओर चटपटे भोजन के अत्यधिक सेवन के कारण।
  • अत्यधिक मसाले युक्त भोजन के कारण।
  • ज्यादा ठंडे प्रदेश में निवास के कारण।

शीत पित्त रोग के कारण जानने के बाद अब हम इनके लक्षणों को भी जानेंगे तो चलिए जानते हैं

शीतपित्त रोग के पूर्व रूप या लक्षण | Symptoms of Shitpitta in Hindi

शीत पित्त रोग होने के बाद त्वचा में लाल रंग के दाने उभर आते हैं और उन दानों के अंदर जलन ओर खुजली होती है कई बार यह जलन और खुजली असहनीय होती हैं। जिसके कारण रोगी को बुखार भी आ जाती है। इसके साथ साथ अन्य लक्षण भी उत्पन्न होते हैं जो इस प्रकार है

  • बार-बार पानी पीने की इच्छा
  • भोजन के प्रति अरुचि
  • जी मिचलाना
  • शरीर में ढीलापन
  • शरीर के अवयवों में भारीपन
  • आंखों में लालीमा का होना
  • उल्टी और बुखार होना
  • अधिक जलन होना और कई बार सुई चुभने के समान दर्द होना

आदि लक्षण शीतपित्त होने पर सामने आते हैं।

शीतपित्त रोग के लिए अपनाएं ये घरेलु उपचार

जैसा कि हमने पूर्व में भी बताया है कि यह एक सामान्य प्रकार का रोग है जिसकी समय पर चिकित्सा नहीं करने पर यह एक भयंकर व्याधि के रूप में उभरता है। यह शरीर में पित्त बढऩे के कारण होता है अर्थात शरीर में बढ़े हुए पित्त को वायु दूषित करके शीतपित्त रोग उत्पन्न करती है इसलिए शरीर में पित्त और वात को सामान्य अवस्था में रखे इसे बढने न दे। इसकी घरेलु चिकित्सा या उपचार निम्न प्रकार है_

  • ✔ सर्दी- गर्मी एक साथ शरीर पर ने लगने दे अर्थात शरीर में गर्मी होने पर या पसीना आने पर अचानक ठंडी हवा में निकले ।
  • ✔ व्यायाम या परिश्रम करके तुरंत न नहाए अर्थात यदि कसरत की है या ऐसा कोई कार्य किया है जिससे पसीना आया हो या थकावट आई हो तो उसके तुरंत बाद स्नान न करके कुछ देर आराम करने के बाद स्नान करें।
  • ✔ गर्मी से पीड़ित होकर तुरंत जल प्रवेश ना करें अर्थात जल में स्नान न करें।
  • ✔ शिशिर ऋतु में शीत से बचाव करें अर्थात मौसम के अनुसार कपड़े और खानपान रखें।
  • ✔ बिना सोचे समझे अंडा, मछली आदि ने खाएं।
  • ✔ विरुद्ध भोजन और आहार – विहार से बचें।
  • ✔ अधिक गर्म पदार्थों का सेवन न करें।
  • ✔ जैसे ही शरीर पर शीतपित्त के चकत्ते दिखाई दे उसी समय रोगी को कंबल ओढाकर लेटा देने से पसीना आकर शीतपित्त शांत हो जाता है।
  • ✔ शरीर में गेरू और सरसों का तेल लगाकर रोगी को हवा से बचाएं।
  • ✔ दूब और हल्दी को एक साथ पीसकर रोगी के शरीर पर लेप करना चाहिए या चकत्ते वाले स्थान पर लेप करना चाहिए।
  • ✔ सेंधा नमक और यवक्षार के चूर्ण को कड़वे तेल में मिलाकर लगावे।
  • ✔ सफेद सरसों, हल्दी, कूठ, चकवङ के बीज और काले तिल के महीन चूर्ण को कटु तेल में मिलाकर रोगी के शरीर पर उबटन लगाना चाहिए।

घरेलू उपचार से चिकित्सा करने पर यदि शीतपित्त सही ना हो तो रोगी को औषध देकर चिकित्सा करनी चाहिए, तो चलिए जानते हैं शीतपित्त रोगी के लिए औषध चिकित्सा

शीतपित्त की आयुर्वेदिक दवाएं और उनकी मात्रा | Useful Ayurvedic Medicine in Urticaria

यदि बाहर से शीतपित्त की चिकित्सा करने पर आराम ना मिले तो रोगी को अभ्यांतर प्रयोग के लिए औषध दी जाती है जिससे अवश्य ही शीतपित्त रोग ठीक हो जाता है, साथ ही पंचकर्म द्वारा भी इस रोग पर आसानी से काबू पाया जा सकता हैं | निम्नलिखित आयुर्वेदिक दवाएं शीतपित्त में खाने के लिए दी जाती है |

  • शुद्ध स्वर्णगैरिक चूर्ण – 1 ग्राम और शुद्ध टंकण 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 4 बार जल से देवें।
  • त्रिफला चूर्ण- 3 से 4 ग्राम की मात्रा में सवेरे- शाम को अमृतादि क्वाथ से देवें।
  • हरिद्राखंड – 5-5 ग्राम सुबह-शाम जल के साथ प्रयोग करें।
  • शीतपित्तभञ्जन रस-250 mg. की मात्रा में दिन में दो बार गुड़ के साथ दें।
  • आद्रक खंड- 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम ठंडे जल से देवें।
  • कैशोरगुग्गुलु- सुबह – शाम 1-1 ग्राम जल के साथ देना चाहिए।
  • रसयोग-सूतशेखर, आरोग्यवर्धिनी, अश्वकंचुकी, गन्धक रसायन, मलयसिन्दुर ओर प्रवालपिष्टी का उचित मात्रा में प्रयोग करें।

सामान्य सवाल – जवाब | FAQ

शीतपित्त रोग का अर्थ क्या है ?

शीतपित्त को Urticaria या उदर्द नाम से जाना जाता है | यह त्वचा पर होने वाले लाल चकतों का रोग है जो एलर्जी के कारण होती है |

शीतपित्त रोग का क्या कारण है ?

अत्यधिक ठण्ड एवं गर्मी का संयोंग इस रोग का मुख्य कारण माना जाता है | साथ ही संक्रमण के कारण भी यह रोग हो सकता है |

शीतपित्त के क्या लक्षण है ?

इसका मुख्य लक्षण है शरीर पर लाल रंग के चकते उभर आते है, जो समूह एवं अकेले हो सकते है |

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *