गुल्म रोग क्या है – अर्थ, लक्षण और चिकित्सा

आज हम इस लेख में गुल्म का अर्थ, गुल्म रोग क्या है, गुल्म रोग शरीर के किस स्थान में होता है , यह रोग किन कारणों से होता है, इसके लक्षण और गुल्म रोग की संपूर्ण चिकित्सा के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे इसलिए आप इस लेख को अंतिम तक अवश्य पढ़ें। तो चलिए जानते हैं

गुल्म रोग क्या है ? What is Gulm Rog

गुल्म रोग

गुल्म शब्द का अर्थ है गुच्छा | या गोलाकार पदार्थ होता है जो एक प्रकार की गांठ के समान दिखाई दे। जब यही गांठ हमारे पेट के अंदर हो जाए तो उसे गुल्म रोग कहते हैं। आधुनिक भाषा में इसे एक प्रकार का ट्यूमर (Tumer) कहते हैं। हमारे शरीर में वायु गुल्म रोग का मुख्य कारण होती है अर्थात जब प्रकुपित हुई वायु अपने साथ पित्त और कफ को भी एक स्थान पर इकट्ठा करके एक गोला अर्थात गांठ बना लेती है उसे ही गुल्म रोग कहा जाता है।

गुल्म का स्थान | Place of Gulm Rog

हमारे शरीर में गुल्म का मुख्य स्थान हमारा पेट होता है। स्त्रियों में कई बार गर्भाशय में भी गुल्म बन जाता है इस कारण स्त्रियों के गर्भाशय को भी गुल्म का स्थान माना गया है।

इसके अतिरिक्त आचार्य चरक और सुश्रुत ने गुल्म की उत्पत्ति के हमारे पेट में पांच स्थान माने हैं जो इस प्रकार है –

  1. हृदय प्रदेश (Heart)
  2. नाभि प्रदेश
  3. बस्ती प्रदेश
  4. दो पार्श्व प्रदेश अर्थात पेट के ऊपर, नीचे, और बीच का भाग तथा
  5. पेट के दोनों तरफ के दो भाग।

गुल्म रोग के पूर्व रूप या सामान्य लक्षण | Gulm Purvaroop

गुल्म रोग होने पर उसके शुरुआत में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जिन्हें उसका पूर्व रूप कहा जाता है

  • अधिक डकार आना
  • मल का अवरोध होना
  • पेट भरा मालूम होना
  • शारीरिक शक्ति में कमी होना
  • आंतों में आवाज होते रहना
  • पेट में गुड़गुड़ाहट होना या पेट में वायु का भरा रहना
  • भोजन का पाचन नहीं होना या
  • भोजन में अरुचि होना

गुल्म रोग के प्रकार और उनके होने के कारण व लक्षण | Types of Gulm Rog

मिथ्या आहार-विहार से प्रकुपित हुई वायु आदि दोष पेट के अंदर ग्रंथि या गांठ के समान पांच प्रकार के गुल्म को उत्पन्न करते हैं जो इस प्रकार है-

  1. वातज गुल्म
  2. पित्तज गुल्म
  3. कफज गुल्म
  4. त्रिदोषज गुल्म
  5. रक्तज गुल्म

इसमें पहले चार गुल्म स्त्री और पुरुष दोनों में ही होते हैं परंतु रक्तज गुल्म केवल स्त्रियों में ही होता है।

वातज गुल्म के कारण व लक्षण

कारण: खाने पीने में रुक्ष पदार्थ अर्थात वायु को बढ़ाने वाले पदार्थ का अनियमित तथा अधिक मात्रा में सेवन करना, मल मूत्र के वेग को रोकना, अत्यधिक शोक करना, अधिक उपवास करना आदि कारण वातज गुल्म को उत्पन्न करते हैं।

लक्षण:

वातज गुल्म होने के बाद शरीर मे निम्न लक्षण दिखाई देते हैं।

  • वातज अर्थात वायु के कारण होने वाले गुल्म के स्थान, उसकी आकृति और उसकी पीड़ा सदैव एक जैसी नहीं रहती कभी नाभि में, कभी बस्ती में, कभी हृदय में और कभी पार्श्व में होता है।
  • यह गुल्म कभी गोला, कभी लंबा, कभी छोटा और कभी बड़ा होता है।
  • इस प्रकार के गुल्म में पीड़ा कभी कम, कभी ज्यादा और कभी – कभी सुई चुभने के समान बहुत ज्यादा होती है ।
  • गला और मुख सूख जाते हैं ठंड लगकर बुखार आती है।
  • सीने और सिर में दर्द होता है।

पित्तज गुल्म के कारण व लक्षण

कारण: ज्यादा चटपटे खट्टे, तीखे, गरम और रूक्ष पदार्थों का सेवन करने से, अत्यधिक क्रोध करने से, अत्यधिक मदिरा पीने से, सूर्य की धूप या अग्नि के ताप के संपर्क में अधिक देर तक रहने से, शरीर में आमदोष के अधिक बढ जाने से, चोट लगना और शरीर के रक्त का दूषित हो जाना यह सब कारण हमारे शरीर में पित्तज गुल्म को बढ़ावा देते हैं।

लक्षण:

  • शरीर में पित्त बढ़ने के कारण बुखार आना
  • प्यास अधिक लगना, मुख और शरीर का लाल हो जाना
  • भोजन के पाचन के समय बहुत ज्यादा दर्द होना
  • पसीना अधिक आना
  • पेट में जलन अधिक होना
  • गुल्म का स्थान छूने पर व्रण के समान अर्थात घाव को छूने के समान तेज दर्द होना यह सब पित्तज गुल्म के लक्षण है।

कफज गुल्म के कारण व लक्षण

कारण: ठंडे, भारी अर्थात देर से पचने वाले और चिकने पदार्थों का अधिक सेवन करना, शारीरिक श्रम के कार्यों का कम करना, अधिक मात्रा में खाना-पीना और दिन में सोना यह सब कारण कफज गुल्म को बढ़ाते हैं।

कफज गुल्म के लक्षण:

  • कफज गुल्म होने पर शरीर गीले वस्त्र से ढका हुआ सा संकुचित रहता है
  • ठंड लगकर बुखार होती है
  • अंगों में थकावट रहती है
  • खांसी और मिचली आती है
  • भोजन में अरुचि और शरीर में भारीपन रहता है
  • रोगी का शरीर ठंडा रहता है
  • गुल्म स्थान में पीड़ा कम होती है
  • गुल्म का आकार कठिन और उभरा हुआ रहता है आदि।

त्रिदोषज गुल्म के कारण और लक्षण

जब तीनों दोष प्रकुपित हो जाते हैं, तो वे त्रिदोषज गुल्म के कारण होते हैं।

त्रिदोषज गुल्म के लक्षण: जिस गुल्म में भयंकर दर्द हो, ज्यादा जलन हो, पत्थर के समान कठोर हो और उभरा हुआ हो जिसमें शीघ्र ही पाक होता है और जो मनोबल ,शरीर बल और अग्नि बल को कम कर देता है उसे त्रिदोषज गुल्म कहा जाता है।

रक्तज गुल्म के कारण व लक्षण

कारण: नया-नया प्रसव होने पर या गर्भपात होने पर और पीरियड के दौरान जो स्त्री गलत आहार-विहार करती है उसके गर्भाशय में प्रकुपित वायु रक्त को अवरुद्ध कर दर्द और जलन युक्त गुल्म को उत्पन्न कर देती है। आचार्य चरक ने कहा है की पीरियड काल में भोजन न करने से, भय से, रूक्ष आहार- विहार से, मल – मूत्र को रोकने से, औषधियों के सेवन से, उल्टी करने से और योनि दोष के कारण स्त्रियों को रक्तज गुल्म होता है।

लक्षण:

  • जो गुल्म पिण्ड के रूप मे देरी से स्पन्दन करता हो अर्थात गतिमान होता है, उसमें हाथ – पैर आदि अंगों का संचालन नहीं प्रतीत होता।
  • पेट में हर समय दर्द रहता है
  • जिसमें गर्भ के समान सभी लक्षण दिखाई देते हैं जैसे- पीरियड का बंद हो जाना, होठों ओर स्तनमण्डलो का काला होना, अंगों में थकावट का होना, विविध प्रकार के आहार- विहार की इच्छा होना, पैरों में दर्द, योनि का विस्तार होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।

नोट: यह गुल्म केवल स्त्रियों में ही होता है। प्रसव के बाद 40 या 45 दिन का समय नव प्रसव काल माना जाता है। इस अवधि में गर्भाशय अपनी प्राकत अवस्था को प्राप्त कर लेता है इसलिए प्रसूता स्त्री को इतने दिनों तक कड़ी देखभाल करनी चाहिए। पथ्य आहार-विहार का ही सेवन करना चाहिए। यदि प्रसूता स्त्री गर्भाशय के अपने प्राकृतिक रूप में होने के पहले ही अपथ्य सेवन करने लगे तो उसकी गर्भाशय स्थित वायु प्रकुपित होकर गर्भाशय के मुख को बंद कर देती है जिससे गर्भाशय भली-भांति स्वच्छ नहीं हो पाता और गर्भाशय में रक्त से गुल्म की उत्पत्ति हो जाती है जिसे रक्तज गुल्म हैं।

गुल्म रोग क्या है, इसका स्थान, प्रकार, कारण और लक्षण जानने के बाद अब हम इसकी चिकित्सा के बारे में जानेंगे तो चलिए जानते हैं गुल्म रोग की चिकित्सा के बारे में

गुल्म रोग की सामान्य चिकित्सा क्या है?

गुल्म रोग वात प्रधान होता है अर्थात गुल्म रोग होने का मुख्य कारण प्रकुपित वायु होती है। इस कारण सभी गुल्म रोगों में सबसे पहले वात की चिकित्सा करनी चाहिए। वात के प्रकोप पर विजय प्राप्त कर लेने के पर अन्य दोषों की चिकित्सा आसान हो जाती है।

हमारे आचार्यों ने गुल्म की चिकित्सा के 11 सूत्र बताए हैं अर्थात 11 प्रकार से गुल्म की चिकित्सा करनी चाहिए। जो इस प्रकार है_

  1. स्नेहन
  2. स्वेदन
  3. निरुह
  4. अनुवासन
  5. विरेचन
  6. वमन
  7. लंघन
  8. बृंहण
  9. शमन
  10. रक्तमोक्षण
  11. अग्नि कर्म यह गुल्म के 11 प्रकार के उपचार के साधन है।

धन्यवाद |

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