पुष्यानुग चूर्ण आयुर्वेदिक हर्बल मेडिसन है | स्त्री के समस्त प्रकार के यौन रोगों की उत्तम औषधि है। इस चूर्ण के सेवन से योनि रोग, योनि में जलन, सब प्रकार के प्रदर रोग, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, योनि स्राव, बादी तथा खूनी बवासीर, अतिसार, दस्त में खून आना. गर्मी और खूनी आंव जैसे रोग पूर्णत: नष्ट हो जाते हैं |
आज हम यहां इस पोस्ट में पुष्यानुग चूर्ण के फायदे मात्रा गुण व नुकसान के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार से देंगे तो चलिए जानते हैं सबसे पहले पुष्यानुग चूर्ण के घटक द्रव्य के बारे में
पुष्यानुग चूर्ण के घटक द्रव्य | Ingredients of Pushyanug Churna
आयुर्वेदिक ग्रंथों में इन सभी औषधियों को पुष्य नक्षत्र में इकट्ठा करने की सलाह दी गई है | अतः इस चूर्ण को बनाने से पहले इन सभी औषधियों को पुष्य नक्षत्र में इकट्ठा कर एकत्रित कर ले, जिससे यह औषधियां और भी गुणकारी हो जाए
- जामुन की गुठली की गिरी
- पाठा
- आम की गुठली की गिरी
- पाषाणभेद
- रसोंत
- मोचरस
- मंजिष्ठा
- कमल केसर
- अतीश
- नागर मोथा
- बेलगिरी
- काय फल
- गेरू
- काली मिर्च
- मुनक्का
- लाल चंदन
- सोना पाठा की छाल
- इंदर जो
- अनंतमूल
- धाय के फूल
- मुलेठी
- अर्जुन की छाल
- लोध्र
पुष्यानुग चूर्ण के फायदे | Benefits of Pushyanug Churna
स्त्रियों में बहुत से रोग उनकी योनि अर्थात गुहा प्रदेश के कारण उत्पन्न होते हैं। कई बार छोटी उम्र में अत्यधिक समागम से तथा गर्भधारण से गुप्तांगों की सफाई न रखने के कारण गर्भावस्था के समय या डिलीवरी के दौरान या डिलीवरी के बाद उचित सफाई ना रखने के कारण और गलत आहार-विहार के कारण स्त्रियों के योनि प्रदेश में रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन समस्त प्रकार के रोगों में पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग अत्यधिक लाभकारी होता है।
पुष्यानुग चूर्ण में पुष्यानुग चूर्ण में ऐसी औषधियों का समावेश किया जाता है जो योनि में होने वाले समस्त प्रकार के रोगों को दूर करके फायदा पहुंचाता है।
पुष्यानुग चूर्ण के गुण व उपयोग | Pushyanug Churna Uses and clinical properties
- प्रदर रोगों में
- अतिसार में
- बवासीर में
- गर्भाशय फूलना
- मासिक धर्म संबंधी अनियमितता में
- गर्भाशय का शरीर से बाहर आना
पुष्यानुग चूर्ण में अर्जुन के छाल का उपयोग किया जाता है जो शरीर में बैक्टीरिया को खत्म करके आंत की सूजन को कम कर देता है जिससे समस्त प्रकार के योनि स्राव दूर हो जाते हैं।
इसमें लोदर जड़ी बूटी का उपयोग किया जाता है जिस में सूजन को कम करने का गुण विद्यमान होता है अपने इस गुण के कारण यह गर्भाशय की सूजन को कम कर देता है जिससे गर्भाशय की सूजन कम होकर गर्भाशय का फूलना जैसे रोग खत्म हो जाते हैं।
अतिसार में गैस्टिक जैसी समस्या होने के कारण वात बढ़ जाती है और बात बढ़ने के कारण गुदा प्रदेश से बार-बार मल का स्राव होता है | पुष्यानुग चूर्ण में ग्राह्य और कषाय गुण होने के कारण यह बार-बार होने वाले मल को कठोर कर देता है जिस कारण अतिसार बंद हो जाते हैं।
पुष्यानुग चूर्ण में लाल चंदन के कारण शीत और कषाय गुण होने के कारण यह योनि में होने वाले जलन को शांत कर देता है।
पुष्यानुग चूर्ण में काली मिर्च का उपयोग किया जाता है। काली मिर्च में दर्द को कम करने का गुण विद्यमान होता है | इस कारण पुष्यानुग चूर्ण का सेवन करने से गर्भाशय और योनि में होने वाले समस्त प्रकार के दर्द से छुटकारा मिल जाता है।
इसका एक घटक ग्वारपाठा है | ग्वारपाठे के अंदर खुजली और कीड़ों को खत्म करने का गुण विद्यमान होता है। इस कारण से पुष्यानुग चूर्ण में ग्वारपाठे का भी उपयोग किया जाता है जिससे योनि में होने वाली खुजली और कर्मियों का नाश हो और योनि स्वच्छ हो जाती है।
पुष्यानुग चूर्ण के गुणों को जानने के बाद अब हम इसकी मात्रा या सेवन विधि के बारे में जानेंगे।
पुष्यानुग चूर्ण की मात्रा और सेवन विधि
1 से 2 ग्राम सुबह और शाम शहद के साथ लेकर ऊपर से चावल का दो वन अर्थात चावल का पानी लेने से अत्यंत शीघ्र लाभ होता है।
पुष्यानुग चूर्ण के नुकसान
पुष्यानुग चूर्ण को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए। पुष्यानुग चूर्ण का लगातार उपयोग करने से कब्ज जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है अतः डॉक्टर की सलाह के अनुसार निश्चित समय तक ही प्रयोग करें |
पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग गर्भवती स्त्री और स्तनपान कराने वाली स्त्री को नहीं करना चाहिए इसमें ग्राही गुण होता है अर्थात शोधक गुण होता है जिससे गर्भपात की समस्या बन सकती है ।
धन्यवाद ||