कहरवा पिष्टी के उपयोग, गुण, खुराक एवं निर्माण विधि | Kaharava Pishti Uses in Hindi

कहरवा पिष्टी परिचय: हमारी प्रकृति ने अनेक चीजे हमें उपहार में दी है, यदि हमें इनका सही तरीके से सेवन करना पता चल जाये ,तो हम इनका सेवन करके स्वस्थ रह सकते है और दीर्घायु को प्राप्त कर सकते है | प्रकृति द्वारा प्रदान उपहार में से ही एक है कहरवा भस्म या पिष्टी जिसे तृणकान्तमणि पिष्टी भी कहते है |

जिसके बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी देगें | जैसा कि नाम  से स्पष्ट है कि वह ओषधि जिसके  उपयोग से  रोग पर पूरी तरह से कहर बरस जाये अर्थात् रोग पूरी तरह से नष्ट हो जाये वह है कहरवा पिष्टी |

इस औषधि का निर्माण कहरवा नामक गोंद के द्वारा किया जाता है | कहरवा एक प्रकार का गोंद है ,जो स्वच्छ ,अत्यन्त चमकदार और रंग में पीला होता है | यह प्राय :वर्मा की खानों और कतिपय अन्य खानों से भी निकलता है |

उत्तम कहरवा गोंद की पहचान क्या है ? | What is the Identity of Uttam Kaharava ?

  1. उतम कहरवा की पहचान यह है कि वह कड़ा ,उज्ज्वल ,स्वच्छ और सोने के समान पीला हो और पिघलने में समय लगाये
  2. हाथ से रगड़ने पर वह गर्म हो जाये |
  3. उतम कहरवा में निम्बू जैसी खुशबू आये |
  4. यदि इसे कपड़े पर रगड़कर घास ,तिनके और रेशम के पास ले जाये तो यह इन्हे चुम्बक की तरह पकड़ लेता है इसे ही उतम कहरवा मानना चाहिए |
  5. इन्ही भौतिकीय आकर्षण शक्ति के कारण ही विधुत शक्ति को उर्दू में “कुव्वत कहरुवाइया’’ कहा जाता है |

कहरवा पिष्टी के घटक द्रव्य

  1. कहरवा
  2. गुलाब जल

कहरवा पिष्टी की निर्माण विधि

कहरवा पिष्टी  _कहरवा के छोटे -छोटे टुकड़े करके महीन चूर्ण कर छान लें | फिर इसको गुलाबजल में 10 -12 दिन तक लगातार खरल करे ,जब अच्छी  तरह घुट जाय, तब शीशी  में सुरक्षित रख लें|

कहरवा भस्म-कहरवा को बारीक़ टुकड़े -टुकड़े करके मिट्टी के सिकोरे में रख अच्छी तरह मुख बंद कर कपड़ा मिट्टी को लगा ,सुखाकर गजपुट में फूक दें ,फिर सुबह निकाल कर खरल करके महीन भस्म छानकर काम में ले |

चूँकि_ कहरवा एक रालीय (गोंद) जाति का पदार्थ है ,भस्म बनाने से इसके मूल गुण कम रह जाते है जबकि पिष्टी बनाने में सम्पूर्ण मूल गुण विधमान रहते है | अत :इसकी पिष्टी बनाकर लेना लाभदायक रहता है | एवं अधिकतर आयुर्वेद में इसकी पिष्टी का ही उपयोग चिकित्सार्थ किया जाता है |

कहरवा पिष्टी के उपयोग | Uses of Kaharava pishti in Hindi

बवासीर: यह अपनी स्तभनकारिणी शक्ति  के कारण बवासीर में होने वाले रक्तस्राव को रोकता है | बवासीर या मूत्रमार्ग से खून निकलता हो तो सफेद दूब के स्वरस के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है |

पित्तविकार: यह शीतल होने के कारण पित्तविकार ,रक्तपित्त ,दाह ,जलन ,ज्यादा प्यास लगना ,पसीना ज्यादा आना ,वमन ,रक्तातिसार आदि रोगों में इसका उपयोग लाभदायक है|पितविकारो में प्रवाल पिष्टी 2 रती मिलाकर आँवले का मुरबा या अनार के शर्बत या गाय के दूध के साथ दे |रक्तातिसार में कुटज क्वाथ के साथ दे |

रक्तस्राव: नाक ,मुहँ ,गुदा ,योनि ,लिग़ आदि किसी भी स्थान पर होने वाले रक्तस्राव को रोकने में यह लाभदायक  है |

उन्माद: इसमे प्रकति को सौम्य रखने की उतम शक्ति होती है जिसके कारण यह मष्तिष्क उन्माद में बहुत लाभकारी है |

संग्रहणी: अपनी धारक शक्ति के कारण यह संग्रहणी ,आवं (पेचिश )और प्रवाहिका को भी दूर करता है |पेचिश  में इसे इसबगोल की भूसी के साथ मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए |

सिरदर्द: मष्तिष्क में कीड़े पड़ जाने से बराबर होने वाले सिरदर्द में इससे अच्छा फायद होता है | घाव पर छिडकने से यह खून को बंद कर घाव को सुखा देता है |

अग्निदग्ध: अग्नि से जल जाने पर इसकी पिष्टी को मुर्दासंग ,कबीला  और गाय के घी के साथ मिलाकर लेप करने से बहुत फायदा होता है |

गर्भधारण में: ऐसी गर्भवती स्त्री जिसका अकाल में गर्भ प्रसव हो जाता है या गर्भ गिर जाता है उसके गर्भाशय की धारण शक्ति  बढ़ाने के लिए इसकी पिष्टी का सेवन उतम है और साबुत कहरवा लेकर उसकी माला या ताबीज बना गले में धारण करने से भी गर्भ की रक्षा होती है |

ह्र्दय को मजबूती: ह्र्दय को शक्ति प्रदान कर ह्र्दय की दुर्बलता को दूर करता है और ह्र्दय को मजबूत बनता है |

कहरवा पिष्टी की खुराक एवं अनुपान

इस औषधि का उपयोग वैद्य सलाह से 2 से 4 रति की मात्रा में मक्खन या शहद के साथ सेवन किया जा सकता है | वैद्य द्वारा निर्देशित मात्रा में ही औषधि का सेवन करना चाहिए | अधिक मात्रा में सेवन नुकसान दायक साबित हो सकता है |

यह उत्तम रक्तरोधक औषधि है | चाहे बवासीर में रक्त बहता हो या नकसीर में रक्त बहता हो या फिर किसी घाव में से रक्त बहता हो यह सभी में तुरंत असर करती एवं रक्त बहने को रोकती है |

धन्यवाद |

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