Taila bindu pariksha / तेल बिंदु परीक्षा : इसे Oil drop test भी कहते हैं, यह यूरिन (पेशाब जाँच) टेस्ट का आयुर्वेदिक तरीका है | प्राचीन समय में यह बहुत उपयोग में लिया जाता था, उसके बाद आधुनिक चिकित्सा आविष्कारों के साथ इसकी अहमियत कम हो गयी | इसका वर्णन योगरत्नाकर, वान्गसेन संहिता, योगतरंगिनी आदि आयुर्वेद ग्रंथो में मिलता है | इस परिक्षण में एक ग्लास में पेशाब लेके उस में तेल की बूंद डाल कर उसका व्यवहार देखते हैं, इस व्यवहार को देख कर रोग के प्रकृति एवं दोषों के बारे में अनुमान लगाया जाता है |
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Taila bindu pariksha in hindi नाम से इस लेख में इस आयुर्वेदिक परिक्षण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको प्राप्त होगी | आयुर्वेद शास्त्रों में बताया गया है की सबसे पहले रोग का परिक्षण करना चाहिए और उसके बाद ही उपचार करना चाहिए | इसके लिए आयुर्वेद में अनेकों प्रकार के परिक्षण हैं जिनमे अष्टविधा परीक्षा सबसे अधिक प्रचलित है | इसी परीक्षा में मूत्र परीक्षा का वर्णन है | तेल बिंदु परीक्षा मूत्र परिक्षण / यूरिन टेस्ट का ही एक तरीका है |
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तेल बिंदु परीक्षा क्या है / What is taila bindu test in hindi ?
यह रोग निर्धारण का आयुर्वेदिक तरीका है | इसमें मूत्र का परिक्षण किया जाता है | एक ग्लास में पेशाब लेकर उस पर तेल की बूंद डाल होने वाले व्यवहार को समझ कर रोग के बारे में अनुमान लगाया जाता है | यह बहुत ही प्राचीन तरीका है इसका वर्णन अनेक आयुर्वेदिक ग्रंथो में मिलता है | तेल की जिस तरह की आकृति बनती है उससे दोष का पता चलता है |
इसके लिए परिक्षण के लिए लिया जाने वाला पात्र, पेशाब की मात्रा, तेल की बूंद का आकार, बूंद को पात्र में डालने की ऊंचाई आदि का ध्यान रखना होता है | अलग अलग दोष होने पर तेल की बूंद अलग अलग तरह के आकार लेती है | इसी के आधार पर दोष का निर्धारण किया जाता है |
तेल बिंदु परीक्षा कैसे करते हैं / Process of taila bindu pariksha in hindi
Oil drop test या तेल बिंदु परीक्षा करने के लिए सुबह के समय पेशाब लिया जाना चाहिए | पेशाब करना शुरू करने के बाद और ख़त्म होने से मध्य का पेशाब ही परिक्षण के लिए उत्तम रहता है | इसके लिए लिया जाने वाला पात्र शीशे का होना चाहिए | किसी किसी आयुर्वेद ग्रन्थ में इसे तांबे का लेना भी बताया गया है | यह परिक्षण करने के लिए निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए :-
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Urine collection / परिक्षण के लिए मूत्र कैसे लें :-
तेल बिंदु परिक्षण के लिए लिया जाने वाला मूत्र सुबह के समय का होना चाहिए | मूत्र शुरू करने एवं ख़त्म होने से पहले का यानी मध्य समय का मूत्र लेना अच्छा रहता है | सूर्योदय से पहले ही मूत्र ले लेना चाहिए |
Bowl for urine collection / मूत्र परिक्षण के लिए लिया जाने वाला पात्र :-
लगभग सभी आयुर्वेद ग्रंथो में शीशे/ कांच का पात्र लेने के लिए बताया गया है | वांगसेन संहिता में इसे कांच या ताम्बे में से कोई एक लेने को बोला गया है | सामान्यतः कांच का पात्र ही लिया जाता है |
Oil for test / तेल बिंदु परिक्षण के लिए कोनसा तेल उपयोग में लिया जाना चाहिए :-
इस परिक्षण के लिए तिल का तेल उपयोग में लिया जाता है | काले या सफ़ेद दोनों ही तरह के तिल का तेल इसके लिए उपयोग में ले सकते हैं |
Time of conducting oil drop test / तेल बिंदु परिक्षण करने का सही समय क्या है :-
सामान्यतः सूर्योदय से पहले मूत्र लेके इसके बाद दो घंटे के अंदर टेस्ट कर लेना चाहिए |
Size of oil drop / तेल की बूंद का आकार :-
मूंग के दाने के आकार की बूंद डालकर परिक्षण करना चाहिए |
तेल बिंदु परिक्षण का परिणाम कैसे निर्धारित करते है / Prognosis of disease by oil drop test
मूत्र के इस पात्र में तेल की बूंद डालने पर होने वाले व्यवहार से रोग निर्धारण होता है | इससे पता चलता है की रोग की प्रकृति क्या है एवं कितना जटिल है | इसे निम्न प्रकार निर्धारित करते हैं |
तेल फैलने के तरीके से / By spreading nature of oil drop :-
- अगर तेल की बूंद फैलती नहीं है तो रोग कठिन माना जाता है | इसका इलाज बहुत ही कठिन या लम्बे समय तक लेना पड़ सकता है |
- तेल की बूंद अगर निचे जाके बैठ जाए तो यह असाध्य रोग का प्रतिक है |
- अगर तेल फ़ैल जाता है और किसी आकृति में बदल जाता है तो यह साध्य रोग माना जाता है |
तेल फैलने की दिशा से / by direction of oil spread :-
- तेल की बूंद पूर्व दिशा में फैले तो रोगी के ठीक होने का संकेत है |
- अगर यह दक्षिण में फैलती है तो रोगी को ज्वर आ सकता है और धीरे धीरे ठीक होगा |
- उत्तर दिशा में फैलने पर रोगी जरुर ठीक होने का संकेत पता चलता है |
- पश्चिम दिशा में फैलने पर भी यह रोगी के ठीक होने का संकेत है |
- अगर यह उत्तर पूर्व दिशा में फैलता है तो रोगी के मरने की आशंका बढ़ जाती है |
तेल की बूंद के आकार से / by the shape of oil drop :-
- अगर तेल हंस, कमल, हाथी, पर्वत आदि का आकार लेता है तो यह अच्छा संकेत माना जाता है |
- मच्छली का आकार लेने पर रोगी को दोष मुक्त समझा जाता है |
- मनुष्य, मृदंग, वाली, चक्र और मृग का आकार लेने पर रोग कठिन माना जाता है |
- अगर मधु मख्खी, भैंस, पक्षी के आकार लेता है तो रोग असाध्य समझा जाता है |
- तीन पैर उया दो पैर वाली आकृति बनती है तो रोगी के जल्द मरने की संभावना होती है |
दोषों का निर्धारण :-
- तेल की बूंद सांप जैसा आकार ले तो वात रोग होता है |
- छाते का आकार लेने पर पित्तज रोग होता है |
- मोती की तरह आकृति बन ने पर कफ़ विकार होता है |
Conclusion / निष्कर्ष
अगर प्रयाप्त शोध और अनुभव हो तो तेल बिंदु परिक्षण आधुनिक समय में भी रोग निर्धारण के लिए उपयोग में लिया जा सकता है | यह आयुर्वेदिक परिक्षण रोगियों के उपचार एवं देखभाल के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा | इसकी सहायता से रोग एवं रोगी की स्थिति का आकलन करना संभव है | जरुरी है आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद में समंवय स्थापित करके इस परिक्षण को और अधिक विश्वसनीय बनाने का प्रयास किया जाये |
धन्यवाद ||
Reference :-
- TAIL BINDU MUTRA PARIKSHA – AN IMPORTANT PROGNOSTIC TOOL
- A study on the method of Taila Bindu Pariksha (oil drop test)
- IMPORTANT ASPECT OF AYURVEDIC TAILA BINDU PARIKSHA TO ASSESSES DISEASE PROGNOSIS
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