उत्तानासन (प्रथम एवं द्वितीय) कैसे करें – विधि, लाभ एवं प्रकार

उत्तानासन को अंग्रेजी में Intense Forward Bending Pose कहा जाता है | योग विद्या में उत्तानासन योग का अपना एक अलग महत्व है | यह महिलाओं के मासिक धर्म की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर एवं पेट की समस्याओं को कम करता है |

उत्तानासन दो प्रकार से किया जाता है | यहाँ हम दोनों विधि एवं उनके लाभ आपको बताएँगे | तो चलिए जानते है उत्तानासन के फायदे, विधि, एवं स्वास्थ्य लाभ आदि के बारे में |

उत् एक संस्कृत भाषा का उपसर्ग है जो विभिन्न शब्दों में लगकर अर्थ बनाता है | तान का का अर्थ तानना, खींचना, फैलाना होता है | अर्थात उत्तानासन में मेरुदंड को बल पूर्वक ताना जाता है | यही उत्तानासन कहलाता है |

उत्तानासन प्रथम प्रकार

प्रथम प्रकार की विधि एवं श्वांस – प्रश्वास की प्रकिया यहाँ बता रहें है | उत्तानासन को अपने सामर्थ्य अनुसार करना चाहिए | उच्च रक्तचाप वाले और कठोर रीद्द की हड्डी वाले इसे सावधानी पूर्वक करना चाहिए |

उत्तानासन
उत्तानासन प्रथम विधि
  • सर्वप्रथम प्रसन्न मुद्रा में अपने आसन में सीधे खड़े हो जाएँ
  • अब श्वांस को छोड़े एवं आगे की और झुकते हुए हथेलियों को एडियों के पास जमीं पर रखें |
  • घुटनों को मुड़ने न दें |
  • अंतिम स्थिति में सर को घुटनों में न लगायें इसे सामने की तरफ ताने |
  • मेरुदंड को भी तान कर रखना है |
  • इस अवस्था में श्वांस को गहरी लें |
  • अब सांस को छोड़े और सर घुटनों से सटा दें |
  • स्वाभाविक श्वांस लेते हुए अपने सामर्थ्य अनुसार इसी अवस्था में रुके |
  • अंत में पहले सिर को उठायें, श्वांस लें और हाथ उठाते हुए पहले की मूल अवस्था अर्थात सीधे खड़े हो जाएँ |

उत्तानासन(प्रथम)विधि के फायदे एवं स्वास्थ्य लाभ

उत्तानासन करने से निम्न स्वास्थ्य लाभ अर्थात फायदे प्राप्त होते है –

  • महिलाओं में मासिक धर्म के समय होने वाले पेट दर्द से मुक्ति दिलाता है |
  • जल्दी ही क्रोधित होने वाले व्यक्ति, चिडचिडे स्वाभाव और तुरंत आवेशित होने वाले व्य्क्तियोंके लिए यह अत्यंत फायदेमंद आसन है |
  • यह मष्तिष्क की कोशिकाओं को शांत करता है | एवं असमय आने वाले क्रोध को रोकता है |
  • मष्तिष्क को तेज बना कर मानसिक उदासीनता को दूर करने में फायदे मंद है |
  • पेट के सभी विकारों को दूर करता है |
  • नियमित अभ्यास से यकृत, प्लीहा और गुर्दों को लाभ मिलता है |
  • कमजोर हृदय वालों के लिए लाभदायक है | यह हृदय को बल प्रदान करता है |
  • मेरुदंड को लचीला बनता है |
  • मेरुदंड से सम्बंधित विकारों में भी फायदेमंद आसन है |
  • बालों का असमय सफ़ेद होना एवं झाड़ना दोनों रुकते है |

उत्तानासन द्वितीय प्रकार

यहाँ हम एक और प्रकार के उत्तानासन का वर्णन कर रहें है | यह आसन भी उत्तानासन ही है | इसे इसका द्वितीय प्रकार समझा जा सकता है | देखें उत्तानासन दुसरे प्रकार की विधि

उत्तानासन २
उत्तानासन द्वितीय विधि
  • सर्वप्रथम प्रसन्न अवस्था में सीधे खड़े हो जाएँ |
  • दोनों पैरो के बीच ढाई फुट की दुरी रख कर खड़े हो |
  • पैरों के पंजो को बाहर की तरफ मोड़कर खड़े हो जाएँ
  • अब अपने हाथों को सीने के सामने जोड़लें |
  • श्वांस छोड़ते हुए धीरे – धीरे निचे की तरफ बैठ जाएँ |
  • घुटने बाहर की तरफ पंजे के ऊपर एक सीध में स्थित होएं चाहिए |
  • श्वास लेते हुए वापस उसी स्थिति में खड़े हो जाएँ |
  • इस अभ्यास में क्रमश: जितना अधिक संभव हो उतना नीचे बठने की कोशिश करें |
  • साथ ही मेरुदंड को सीधा एवं नजर को सीधी रखें |

विशेष :

बैठते समय घुटने बाहर की तरफ मुड़े रहने चाहिए | पहली बार में पूरा न बैठा जाये तो पहले 1 फीट तक नितम्बो को निचे रखें एवं फिर बढ़ाते जाएँ |

उत्तानासन के फायदे

  • इस विधि से उत्तानासन करने पर प्रजनन अंगो के विकार दूर होते है |
  • पैरों की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है |
  • जांघ, घुटने व पिंडलिया मजबूत बनती है |
  • पीठ दर्द, जकड़न एवं कमर दर्द से आराम मिलता है |
  • मूत्राशय एवं गर्भाशय के लिए फायदेमंद है |
  • पैर, घुटने, कमर एवं टखने के जोड़ो के लिए लाभदायक योगासन है |
  • नितम्ब सुदोल बनते है |

उत्तानासन के प्रकार

उत्तानासन के दो प्रकार है | अर्थात इसको करने की दो विधियाँ है | यहाँ ऊपर हमने इन दोनों विधियों की अलग – अलग विधि एवं फायदे बताएं है | पदान्गुष्ठासन एवं पाद हस्तासन ये दो आसन इस उपरोक्त आसन से समानता में बिलकुल समान है | अत: हमने दोनों विधियों का उल्लेख किया है |

धन्यवाद |

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