हमारे गलत खान – पान एवं शरीर में अधिक उष्णता के कारण रक्त शरीर से बाहर निकलने लगता है | यह रक्त नाक से, मूत्र मार्ग से, गुदा मार्ग से या योनि से आने लगता है | यही रक्तपित्त की समस्या है |
यह रोग धुप में अधिक घूमने, उष्ण पदार्थों का अत्यधिक सेवन, अधिक श्रम करने, दौड़ और अधिक स्त्री प्रसंग के कारण तथा तीक्ष्ण मसालों के अत्यधिक सेवन से पित्त कुपित होकर रक्त को ऊपर एवं निचे की तरफ दोनों तरफ से शरीर से बाहर निकलने लगता है |
रक्तपित्त की परिभाषा / Definition of Raktpitta
अधिक उष्ण भोज्य पदार्थों के सेवन एवं गलत आहार के कारण कुपित हुआ पित्त शरीर से नाक, मूत्र मार्ग, योनि मार्ग एवं गुदा आदि से बाहर आने लगे तो इसे रक्तपित्त रोग कहा जाता है | सामान्य रूप से यह रोग उचित खान – पान से ठीक हो जाता है |
आयुर्वेद चिकित्सा में रक्तपित्त को तीन प्रकार का माना है |
- वातज रक्तपित्त – यदि रक्तपित्त में वायु की अधिकता होती है तो खून काला या लाल, झागदार निकलता है | इस रक्त पित्त में खून गुदा, योनि या लिंग से निकलता है |
- कफज रक्तपित्त – यदि रक्तपित्त में कफ की अधिकता होती है तो निकलने वाला खून गाढ़ा, चिकना होता है | इसमें खून नाक एवं मुंह आदि से निकलता है |
- पित्तज रक्तपित्त – यदि रक्त में पित्त की अधिकता होती है तो खून काढ़े की तरह काला या नीला हो जाता है |
रक्तपित्त के लक्षण / Symptoms of Raktpitta
- शरीर में स्थिलता रहती है | व्यक्ति आलस से ग्रसित रहता है |
- ठन्डे पदार्थों की इच्छा रहती है |
- कंठ में धुंवा सी घटन महसूस होती है |
- सांसो में लोहे की जैसी गंध आदि है |
- शरीर के उर्ध्व एवं अधो भागों से खून निकलने लगता है |
- निकलने वाला खून गाढ़ा, पतला, रंग में काला, गहरा, एवं झागदार हो सकता है |
रक्तपित्त में क्या खाना चाहिए ? / What to eat in Raktpitta
इससे पीड़ित व्यक्तियों को वमन, विरेचन करवाके लंघन कराना चाहिए | वमन एवं विरेचन का निर्धारण रोगी एवं रोग की स्थिति के आधार पर किया जाता है |
रक्तपित्त से ग्रसित रोगियों को पुराने चावल, साठी चावल, जौ , मुंग, चना, अरहर, मोंठ और खीलों के सत्तू, गाय एवं बकरी का दूध, घी, चिरौंजी, केला, चौलाई, पुराना पेठा, ताड़ फल, अनार, आंवले, तरबूज, दाख, मिश्री, शहद और इक्ख आदि पथ्य आहार है |
इसके अलावा ठंडा जल, झरने का पानी, जल छिड़कना, जल में गोता लगाना, तेल की मालिश , शीतल चीजों की उबटन, ठंडी हवा सैर, चन्दन लगाना आदि विहार को अपनाना चाहिए |
रक्तपित्त में क्या न करें ? / What not to do in Raktpitta
कसरत, कुस्ती, म्हणत, पैदल चलना, धुप में घूमना, आग के सामने बैठना, क्रूर एवं गलत कार्य नहीं करने चाहिए | इन सभी कार्यों से रक्तपित्त की समस्या अधिक बढ़ती है |
इनके अलावा मल – मूत्र के वेगों को रोकना, सिगरेट आदि पीना, क्रोध करना आदि नहीं करने चाहिए |
आहार में कुल्थी, पान, शराब, लहसुन, सेम, विशुद्ध भोजन, सरसों का तेल, लाल मिर्च, अधिक उष्ण मसाले, अधिक नमक, आलू, उड़द की दाल आदि से रक्तपित्त के रोगियों को बचना चाहिए |
रक्तपित्त की आयुर्वेदिक औषधियां
इस रोग में निम्न आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है |
- रक्तपितान्तक लौह
- तीक्षणादि वटी
- प्रवाल भस्म
- उशीरासव
- वासरिष्ट
- बब्बुलारिष्ट,
- बोलप्रपटी
- शतमूलादि लौह
- ख़रीदपुष्पादि
- वासावलेह
- अकीक भस्म
- रक्तपित्त कुल कुठार रस
धन्यवाद |