करंज – Karanj Detail | परिचय, फायदे और औषधीय गुण

Karanj in Hindi – वैदिक काल से ही करंज का इस्तेमाल आयुर्वेद चिकित्सा एवं धार्मिक कार्यों में किया जाता रहा है | आयुर्वेद में इससे कई औषध योगों एवं करंज के तेल आदि का निर्माण होता है जो कुष्ठ, कृमि, प्रमेह एवं स्त्रिरोगों में लाभ देता है |

इसे करंज, नक्तमाल, चिरबिल्व, स्निग्ध पत्र एवं गुच्छपुष्पक आदि नामों से भी जाना जाता है | औषध उपयोग में मुख्यत: इसके बीज प्रयोग में लिए जाते है जिनसे तेल आदि का निर्माण भी होता है |

वानस्पतिक परिचय / Botanical Introduction of Karanj

इसका सदा हरा रहने वाला २५ से ३० फीट ऊँचा वृक्ष होता है | शाखाएं लटकी हुई होती है | करंज के पते 8 से 15 इंच लम्बे, पकश्वत और किनारे पर से फुले हुए होते है | इन पतों में पत्रक लगते है जो 5 से ७ की संख्या में चमकीले एवं चिकने, 2 से 5 इंच लम्बे, आयताकार, लटवाकार आगे से नुकीले और छोटे वृंत युक्त होते है |

करंज
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करंज के फुल गुलाबी रंग के और कुच्छ नीलाभ श्वेतवर्ण के गुच्छ में लगते है | फली चिकनी होती है यह चपटी, कठोर, 1 से 2 इंच लम्बी, मिटटी के जैसे गहरे रंग की होती है | इसमें एक बीज रहता है |

करंज के बीज चिपटे, गहरे लाल रंग के, अंडाकार होते है | इन बीजों में तेल मिलता है जिसका उपयोग विभिन्न रोगों के चिकित्सार्थ किया जाता है |

इसके पौधे सम्पूर्ण भारत में पाए जाते है | विशेषकर मध्य एवं पूर्वी हिमालयी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलते है |

करंज के प्रकार / Karanj Types in Hindi

भावप्रकाश निधंटू के अनुसार इनकी तीन प्रजातियाँ होती है अर्थात ये तीन प्रकार के होते है |

  1. करंज
  2. कटकरंज
  3. चिरबिल्व

करंज के औषधीय गुण धर्म

यह स्वाद में चरपरी अर्थात इसका रस तिक्त, कटु एवं कषाय होता है | गुणों में यह लघु और तीक्षण होती है अर्थात आसानी से पचने वाली होती है | वीर्य उष्ण अर्थात करंज गरम तासीर की होती है |

यह कफ एवं वात का शमन करने वाली औषधि है | कृमि यानि कीड़ों की समस्या, कुष्ठ, पाचन, आफरा, अर्श एवं घाव आदि में लाभदायक रहती है |

करंज के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग

विभिन्न रोगों में करंज का उपयोग चिकित्सार्थ किया जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसके प्रयोग से विभिन्न औषध योग जैसे करंजादि चूर्ण, क्रंजाध्य घृत एवं करंजादि तेल आदि का निर्माण किया जाता है |

आपको आसानी से समझ आये इसके लिए हमने इसके फायदे विभिन्न रोगों अनुसार बताएं है |

1 . कुष्ठ रोग में करंज का उपयोग

विशेषकर वातज एवं कफज कुष्ठ में करंज काफी लाभदायक सिद्ध होता है | इसके पौधे की छाल का घिसकर लेप बना लें | इस लेप का कुष्ठ वाले स्थान एवं घाव आदि पर करने से अत्यंत फायदा मिलता है |

इससे निर्मित होने वाला तेल कृमिनाशक होता हिया | अत: इसके तेल के इस्तेमाल से भी कुष्ठ में लाभ मिलता है | तेल पाए जाने वाले जिवानुनाशक गुण इसे कुष्ठ आदि में फायदेमंद साबित करते है |

2 . घाव में करंज तेल के फायदे

इसके कटु एवं तिक्त रस के गुण इसे घाव को ठीक करने में सहायक बनाते है | करंज तेल का इस्तेमाल करने से घाव में होने वाले इन्फेक्शन से बचा जा सकता है एवं साथ ही घाव में स्थित पुय या मवाद को ठीक करने में भी फायदेमंद साबित होताहै |

3. सुजन दूर करने के गुण

करंज के पतों का सेक करने या स्वेदन करने से शरीर में आई सभी प्रकार की सुजन में लाभ देता है | यह वात एवं कफज सुजन में राहत पहुंचाती है एवं दर्द का भी अंत करती है | जोड़ों के दर्द या आमवात में करंज के पतों से स्वेदन करने एवं इसके तेल की मालिश करने से लाभ मिलता है |

4. बवासीर एवं गुल्म में करंज के फायदे

कटु रस और तीक्षण गुणों के कारण यह भेदन का कार्य करता है | अर्थात शरीर में पाचन को सुधर कर कब्ज एवं गैस आदि को नहीं बनने देता | अत: बवासीर एवं गुल्म में फायदेमंद साबित होती है |

अगर बवासीर खुनी है तो करंज के मूल को गोमूत्र में पीसकर देने से लाभ मिलता है |

5. दांतों के लिए अच्छा – इसकी लकड़ी से दांतों की सफाई की जाती है | यह मुखरोग एवं दांतों की समस्यों में भी लाभदायक रहती है |

6. मधुमेह एवं योनी रोग में करंज के फायदेमधुमेह की समस्या में इसके फूलों को इक्कठा करके उनका फांट निकाल कर सेवन करने से तुरंत आराम मिलता है | योनी दोषों में करंज साधित घी का सेवन लाभदायक रहता है |

करंज के प्रयोज्य अंग, मात्रा एवं सेवन विधि

स्वास्थ्य उपयोग के लिए इसके तेल, पतों, जड़ एवं क्वाथ आदि का इस्तेमाल आयुर्वेद जगत में प्रचलित है |

  1. करंज की जड़
  2. करंज के बीज
  3. छाल
  4. पत्र (पते)

करंज सेवन की मात्रा

फलस्वरस – १० से २० मिली

बीजचूर्ण – 1 से 3 ग्राम

त्वक चूर्ण – 1 से 3 ग्राम

पतों का चूर्ण – 1 से 2 ग्राम

धन्यवाद |

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