कनक चंपा (Kanak Champa) अतिसुगन्धित एवं स्वास्थ्य उपयोगी पौधा

कनक चंपा को कठचंपा, कदियार, कर्णिकार एवं मुचकंद आदि नामों से भी जाना जाता है | यह अतिसुगंधित दिव्य स्वास्थ्य उपयोगी पौधा है , जिसका प्रयोग कफ, कुष्ठ, पेट के रोग एवं मूत्राशय से सम्बंधित रोगों में किया जाता है |

भारत में यह हिमालय के निचले हिस्से, पहाड़ियों एवं बंगाल, चटगाँव आदि क्षेत्रों में अधिक मिलता है | आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा में इसका प्रयोग प्राचीन समय से ही होता है | वैसे पुरातन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन नहीं मिलता, लेकिन इसे अमलतास एवं कचनार का ही एक भेद बताया गया है |

वानस्पतिक परिचय / Botanical introduction – कनक चंपा के पेड़ काफी बड़े एवं चिकने छिलके वाले होते है | इस पौधे के छिलके का रंग राख के रंग की तरह होता है | इसके पते भिन्न – भिन्न आकार के होते है |

kanakchampa
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पौधे के पते ऊपर की तरफ से चिकने एवं निचे रोयेंदार रहते है | कनक चंपा की लकड़ी लाल रंग की मजबूत होती है जिसका उपयोग विभिन्न फर्नीचर के निर्माण में किया जाता है |

कनक चंपा के फुल अतिसुगंधित होते है | इनका रंग सफ़ेद होता है एवं ये जोड़ो में लगते है | फुल रात में ही खिलते है एवं सुबह होते ही सभी झड जाते है |

पौधे पर फलियाँ लगती है 10 से 15 सेमि. लम्बी होती है इनमे बीज निकलते है |

कनक चम्पा के औषधीय गुण / kanak champa properties

इसका फुल कडवा, कसैला, पौष्टिक, मृदु विरेचक व् कृमिनाशक होता है | यह कफ, प्रदाह (जलन), रक्त विकार, पेट के रोग आदि में लाभदायक होता है | कनक चंपा के पते एवं छाल से औषधि का निर्माण किया जाता है जो कुष्ठ, चेचक एवं दाद – खुजली आदि में उपयोगी होती है |

रस

इसका रस कषाय, कटू एवं तिक्त होता है |

विपाक

कटू अर्थात पाचन पश्चात विपाक कटु होता है |

गुण

कनकचंपा गुणों में लघु एवं रुक्ष होती है |

वीर्य

यह उष्ण वीर्य अर्थात गरम तासीर की होती है |

दोषकर्म

यह त्रिदोषहर एवं विषघ्न औषधि है |

कनक चंपा के पर्याय / विभिन्न नाम

हिंदी – कनकचम्पा, कठ चम्पा, कदियार आदि |

संस्कृत – कर्णिकार, मुचकंद, पदोत्पल, परिव्यधि |

बंगाली – कनक चम्पा |

मराठी – कनकचंपा या कर्णिकार |

कन्नड़ – कनकचम्पक, राजतरु |

तेलगु – मत्स्कंद |

अंग्रेजीpterospermum acerifolium in hindi

कनक चंपा के स्वास्थ्य उपयोग या फायदे / Kanakchampa benefits in Hindi

1 . इसके पतों को अरंडी के तेल के साथ मिलाकर आमवात और कटिवात के रोगियों को पिलाया जाता है | इसके सके हुए पते ऋतुस्राव नियामक होते है | इसे आमवात की समस्या में घी और पानी के साथ पीसकर प्रभावित स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है |

2. आंख पर अगर फोड़ा हो जाए तो कनक चम्पा के पतों को गुड के साथ मिलाकर तेल में उबल कर आँखों के फोड़ो पर लगाने से लाभ होता है |

3. अगर शरीर में कंही पर सुजन या कोई गाँठ आदि है तो इसके पंचांग को दूध के साथ मिलाकर सुजन एवं गठान वाली जगह पर लगाने से सुजन उतर जाति है एवं गाँठ वाला स्थान मुलायम पड़ जाता है |

4. इसकी छाल एवं पतों का रस निकाल कर सेवन करने से स्त्रियों का अनियमित मासिक धर्म नियमित होता है एवं सुजन और फेफड़ों की समस्याओं में भी आराम मिलता है |

5. कान दर्द या कान की पीड़ा में इसके रस को कान में डालने से लाभ मिलता है |

6. कनक चंपा के पतों एवं छाल का शीत निर्यास आमातिसार एवं रक्तातिसार (खुनी दस्त) में बस्तीक्रिया में काम में लिया जाता है | सिरदर्द की समस्या में इसके पतों को कुचलकर इसका धुंवा सूंघने से सिरदर्द से छुटकारा मिलता है |

7. फोड़े – फुंसी एवं घाव आदि की समस्या में इसके पतों का लेप बनाकर लगाने से फोड़े – फुंसी एवं घाव जल्दी भरता है |

कनकचंपा से सम्बंधित सामान्य पूछे जाने वाले सवाल

कनक चंपा (मुचकुंद) कौन – कौनसे रोगों में उपयोगी है ?

यह रक्तपित्त, विष को दूर करने, सिरदर्द, अनियमित मासिक धर्म, अर्श एवं खुनी बवासीर में लाभदायक है |

आयुर्वेद चिकित्सा में कनकचंपा के कौनसा भाग काम में लिया जाता है ?

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में इसके फूलों का चिकित्सार्थ प्रयोग करते है ?

सेवन की क्या मात्रा है ?

इसका सेवन अगर चूर्ण बनाकर करना हो तो 3 से 6 ग्राम तक एवं क्वाथ को 10 से 20 मिली तक चिकित्सक के परामर्शानुसार सेवन करना चाहिए |

कनक चंपा से आयुर्वेद की क्या दवा बनती है ?

आयुर्वेदिक योग हिमांशु तैल में इसका औषध प्रयोग किया जाता है |

धन्यवाद |

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