वमन कर्म क्या है | जानें इसके फायदे एवं करने की विधि

updated – 18/06/2020

वमन कर्म – आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का एक भाग है पंचकर्म | इस पंचकर्म चिकित्सा में मुख्यत: पांच कर्म किये जाते है | वमन, विरेचन, नस्य, अनुवासन, निरुह ये पांच कर्म है जिनसे शरीर का शोधन किया जाता है |

इनमे से वमन कर्म भी शरीर शोधन का एक भाग है | वमन का अर्थ उल्टी करना होता है | इस कर्म के अंतर्गत रोगी को उल्टी करवाके उसके शरीर में स्थित दोषों को बाहर निकाला जाता है | दोष शरीर से बाहर निकलने पर रोग की चिकित्सा करना और अधिक आसान हो जाता है |

आप वमन कर्म को इस प्रकार से भी समझ सकते है कि शरीर में स्थित दोषों को मुख के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को वमन कर्म कहते है | इस कर्म के द्वारा मुख्य रूप से शरीर में बढे हुए कफ को बाहर निकाला जाता है |

आयुर्वेद के अनुसार वमन कर्म / Vaman Therapy according Ayurveda in Hindi

वमन कर्म में शरीर शोधन के लिए जो उल्टी करवाई जाती है, यह एक शोधन कर्म है | इस शोधन कर्म के द्वारा शरीर से मुख मार्ग के द्वारा बढे हुए दोषों को निकाला जाता है | वमन द्वारा जो दोष शरीर से बाहर निकलते है उसमे से कफ दोष ; इसके पश्चात पित दोष एवं सबसे अंत में वात दोष निकलते है |

इसमें मदनफल आदि औषधियों के द्वारा रोगी को उल्टी करवाई जाती है |

वमन कर्म करने की विधि / Procedure or Vaman Therapy in Hindi

पंचकर्म चिकित्सा के इस कर्म को तीन चरणों में पूरा किया जाता है – पूर्व कर्म, प्रधान कर्म एवं पश्चात कर्म |

vaman karma in hindi

अब इसे समझने के लिए आपको समझना होगा की पूर्व कर्म, प्रधान कर्म एवं पश्चात कर्म क्या है ?

पूर्व कर्म – यहाँ पूर्व कर्म से तात्पर्य यह है कि वमन करवाने से पहले रोगी का परिक्षण किया जाता है कि वह रोगी इस कर्म को करने के लिए उपयुक्त है या नहीं | इसमें रोगी का तापकर्म नापा जाता है | उसका बल, प्रकृति, मनोबल एवं रोग आदि का परिक्षण किया जाता है |

जैसे कुछ रोगों एवं रोगियों को वमन कर्म के उपयुक्त नहीं समझा जाता उदहारण के लिए बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती, प्लीहा दोष, अधिक मोटा व्यक्ति, कानों की समस्या से ग्रषित एवं मुत्रघात आदि |

पूर्व कर्म में रोगी को अभ्यंग (मसाज) एवं स्वेदन आदि करवाके रोगी के दोषों को क्लेदन करवाके , दोषों को अमाशय में इक्कठा किया जाता है | इसके पश्चात ही प्रधान कर्म अर्थात वमन करवाया जाता है ताकि इक्कठे दोष शरीर से बाहर निकल जाएँ |

प्रधान कर्म – प्रधान कर्म का अर्थ है वमन कर्म की मुख्य विधि | इसमें रोगी को परीक्षित करके एवं अभ्यंग, स्वेदन के पश्चात वामक द्रव्यों का निधारण करके वमन करवाया जाता है | वामक द्रव्य वे द्रव्य है जो उल्टी लाने में सहायक होते है |

रोगी को सबसे पहले वामक द्रव्यों का सेवन करवाया जाता है | इसके पश्चात रोगी को कंठ तक भर कर गोदुग्ध का सेवन करवाया जाता है | अब प्रक्षिशित नुसिंग स्टाफ या चिकित्सक के द्वारा वमन करवाया जाता है |

पश्चात कर्म – पश्चात कर्म में रोगी को आहार के सम्बंधित कुच्छ फॉलो उप रूटीन बताया जाता है जिससे रोगी का पाचन ठीक हो एवं रोगों की पुनरावृति न हो |

वमन कर्म के फायदे या स्वास्थ्य लाभ / Benefits or Vaman karma in Hindi

आचार्य चरक एवं सुश्रुत ने कफप्रधान दोषों में वमन कर्म को सबसे उपयुक्त चिकित्सा बताया है | क्योंकि वमन पदार्थ आमाशय में जाकर अपने प्रभाव से वक्ष: स्थल में स्थित विकृत कफ को ऊपर फेंक देता है | जिससे कफज रोगों में पूर्ण आराम मिलता है |

वमन से होता है अमाशय का शोधन

यह कर्म अमाशय में स्थित दोषों का शोधन करता है | अमाशय का शोधन होने से पुरे शरीर का ही शोधन हो जाता है | वमन करने से पहले किया जाने वाला अभ्यंग (बॉडी मसाज) एवं स्वेदन शरीर के दोषों को अमाशय में इक्कठा कर देता है |

ये सभी दोष वमन कर्म के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते है | इसमें कुपित कफ, टोक्सिन एवं अन्य गन्दगी का शोधन हो जाता है |

रोगों में होता है तीव्र लाभ

इस कर्म में प्रयुक्त वामक द्रव्य उत्क्लेश पैदा करते है | उत्क्लेश के कारण शरीर में स्थित दोष चलायमान बनते है | इन दोषों को शरीर से बाहर निकाल कर रोगी के आधे रोग का शमन हो जाता है बाकी इसके पश्चात दी जाने वाली आयुर्वेदिक दवाओं से रोग में तीव्रता से लाभ मिलता है |

कफ रोग का नाश

वमन कर्म मुख्य रूप से कफ का शमन करता है | इसमें किये जाने वाले बारम्बार गर्म जल पिलाना, मुलहठी व पीपल का क्वाथ पिलाना या लवण जल आदि पिलाने वाली क्रियाएं कफ को पिघला देती है | यह द्रवित कफ अमाशय से वमन कर्म के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है |

सम्पूर्ण शरीर के शोधन में लाभदायक

वमन सम्पूर्ण काया को आंदोलित कर अंगो और शारीरिक यंत्रो में नविन कार्यक्षमता, प्रेरणा और स्फूर्ति देता है | इससे शरीर की धातुओं की चयापचय क्रिया का परिवर्तन होता है | सम्पूर्ण शरीर में स्थित कुपित कफ को बाहर निकाल कर कफज विकारों में लाभ देता है | यह कर्म सम्पूर्ण शरीर का शोधन करके उसे नविन उर्जा से भर देता है |

वमन कर्म से ठीक होने वाले रोग

  • श्वांस
  • खांसी
  • जुकाम
  • एलर्जी
  • स्किन एलर्जी
  • कुष्ठ रोग
  • अमाशय शोधन
  • अरुचि अर्थात खुल कर भूख न लगना
  • साइनस
  • मोटापा
  • मूत्र विकार
  • सभी प्रकार के कफज विकार
  • सभी प्रकार के पित्तज विकार

धन्यवाद |

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