ऊंटकटारा / ब्रह्मदंडी / उष्टकंटक
परिचय – यह एक बहुशाखाओं युक्त पौधा होता है, जिसकी शाखाएं जड़ों से फूटती है | भारत में यह मध्यभारत , राजस्थान एवं दक्षिणी प्रान्तों में अधिक पाया जाता है | पौधे पर पीले रंग के ढोडे लगते है जिन पर चारों तरफ लम्बे काँटे होते है एवं काँटों के बिच गुलाबी रंग के फुल लगते है | राजस्थान में ऊँटों का यह प्रिय भोजन माना जाता है | पौधे की जड़ें लम्बी एवं गहरी होती है | आयुर्वेद चिकित्सा में जड़ की छाल का चूर्ण अधिकतर प्रयोग में लिया जाता है |
पर्याय
हिंदी – ऊंट कटारा |
संस्कृत – उष्टकंटक, कंतफल, कर्भादन, वृत्तगुच्छ |
मराठी – ऊँटकटीरा |
बंगाली – ठाकुरकांटा |
गुजराती – शुलियों |
अरबी – स्तरखर |
अंग्रेजी – Thistle |
लेटिन – Echinops Echinatus |
ऊँटकटारा के औषधीय गुण
आयुर्वेद चिकित्सानुसार ऊंटकटारा रस में कडवी एवं तिक्त होती है | यह अग्निवर्द्धक, ज्वरविनाशक, उत्तेजक, क्षुधावर्द्धक एवं कामोदिपक गुणों से युक्त होती है | यह स्नायु को बल देती है एवं पौष्टिक होती है | प्रमेह का नाश करने वाली एवं वीर्य का स्तम्भन करने के गुणों से युक्त होती है | साथ ही आयुर्वेद में इसे मूत्रनिस्स्सारक माना जाता है |
ऊँटकटारा के फायदे एवं उपयोग
- अगर गर्भवती को कष्टकारक एवं निराशाजनक प्रसव की स्थिति हो तो इसकी जड़ को पानी में घिसकर एक तोला प्रसूता को पिलाने से तुरंत प्रसव की स्थिति बनती है |
- ऊंटकटारा की जड़ की छाल तीन माशे, गोखरू 3 माशे और मिश्री छ: माशे ले – इन तीनो को बारीक़ चूर्णकरके सवेरे एवं शाम दूध के साथ सेवन करने से प्रमेह की समस्या का नाश होता है |
- वीर्यव्रद्धी एवं पुरुषार्थ के लिए ऊँटकटारे की जड़ की छाल को पीसकर एवं छानकर रख लेना चाहिए | इस चूर्ण में मुगली वेदाना एक तोला छानकर एवं इसके चूर्ण में मिलकर पीना चाहिए | इस योग के सेवन से पुराने से पुराना प्रमेह मिटता है एवं वीर्य की व्रद्धी होकर व्यक्ति पुरुषार्थ गुणों से परिपूर्ण होता है |
- ऊँटकटारे की जड़ की छाल का चूर्ण एवं छुहारे की गुठली का चूर्ण तीन – तीन माशे लेकर फंकी लेने से मन्दाग्नि में लाभ होता है |
- इसकी जड़ की छाल के चूर्ण को पान ने रखकर खाने से कफ के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है |
- तालमखाना एवं मिश्री के साथ इसकी जड़ की छाल की फंकी देने से मूत्रकृछ (पेशाब का रुक – रुक कर आना) में आराम मिलता है |
- सर्प एवं बिच्छु के दंश में ऊंटकटारा की जड़ को पानी में घिस कर लगाने एवं पिने से जहर उतरने लगता है |
- इसकी जड़ की छाल एक तोला लेकर उसे कुचलकर पोटली में बाँधकर आधा सेर गाय का दूध और के सेर पानी में खोलायें | उसमे चार खारक भी साथ डालदें | जब पानी जलकर दूध मात्र रह जाय तब उस पोटली को मिलाकर उस दूध को पी लें | यह दूध अत्यंत कामशक्ति वर्द्धक दवा साबित होता है |
- पाचनशक्ति को बढाने के लिए इसकी जड़ की छाल के चूर्ण के साथ छुहारे का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अत्यंत लाभ मिलता है |
- ग्रामीण इलाकों में पुराने समय में इसकी जड़ के लेप को इन्द्रिय पर लगाया जाता था जो वीर्य स्तम्भन एवं सहवास के समय को बढाने का काम करता था |
धन्यवाद |