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वासावलेह / Vasavaleha in Hindi
श्वास, अस्थमा, खांसी, ज्वर, रक्तपित एवं पार्श्वशूल के उपचार के लिए वासावलेह का प्रयोग किया जाता है | अस्थमा एवं टीबी की समस्या में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रमुखता से प्रयोग करते है | सभी प्रकार के कफज विकारों में यह चमत्कारिक एवं प्रशिद्ध आयुर्वेदिक दवा है |
आयुर्वेदिक ग्रन्थ “भा.प्र. राजयक्ष्मा 55-57” में इसका वर्णन किया गया है | यह एक अत्यंत गुणकारी आयुर्वेदिक दवा है | किसी भी प्रकार की खांसी हो या बुखार हो , साँस फूलता हो तो इसे सप्ताह भर सेवन करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है |
वासावलेह का मुख्य घटक द्रव्य वासा (अडूसा) होता है | इसके अलावा इसमें निम्न घटक द्रव्य पड़ते है |
वासावलेह के घटक द्रव्य
इसके निर्माण में निम्न आयुर्वेदिक घटक पड़ते है –
- वासापत्र स्वरस – 768 ग्राम
- सीता मिश्री चूर्ण – 384 ग्राम
- पिप्पली चूर्ण – 96 ग्राम
- गोघृत – 96 ग्राम
- मधु (शहद) – 384 ग्राम
वासावलेह बनाने की विधि
इसके निर्माण की विधि अत्यंत सरल है | सबसे पहले अडूसा के साफ़ एवं स्वच्छ पतों का रस निकाल लिया जाता है | इस स्वरस में सीता चूर्ण को अच्छी तरह से मिलाया जाता है | अब तैयार मिश्रण को धीमी आंच पर पकाया जाता है |
जब मिश्रण गाढ़ा होने लगे तब इसमें पिप्पली का चूर्ण एवं गाय का घी मिलाकर ठंडा किया जाता है | अब इस ठन्डे मिश्रण में शहद मिलाकर छोड़दिया जाता है | यह तैयार गाढ़ा अवलेह – वासावलेह कहलाता है | भले ही इसकी विधि अत्यंत सरल है फिर भी इसका निर्माण आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट या चिकित्सक से ही करवाना चाहिए | यही फलदायी होता है |
वासावलेह के सेवन की विधि एवं मात्रा
इसका सेवन 5 से 10 ग्राम आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशानुसार करना चाहिए | इस औषधि का स्वाद थोड़ा अलग होता है | इसलिए अनुपान के रूप में गरम दूध, जल या शहद का प्रयोग बताया गया है |
मधुमेह के रोगी इसका सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करें | वैसे इस आयुर्वेदिक औषधि के कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है लेकिन फिर भी चिकित्सक द्वारा सुझाई गई मात्रा में ही सेवन करें | अधिक मात्रा में सेवन करना फायदेमंद नहीं है |
Vasavaleha के फायदे या स्वास्थ्य लाभ
- निरंतर या रुक – रुक कर आने वाली खांसी में इसका सेवन फायदेमंद होता है |
- सभी प्रकार के कफज विकारों में लाभदायक है |
- ब्रोंकईटिस, अस्थमा एवं श्वांस फूलने में इसका सेवन बताया गया है |
- हृदय की पीड़ा एवं पार्श्वशूल में भी इसका सेवन फायदेमंद होता है |
- रक्तपित्त एवं ज्वर का नाश करती है |
- राजयक्ष्मा अर्थात टी.बी. के रोग में इसका सेवन शास्त्रोक्त बताया गया है |
- जुकाम के कारण होने वाली एलर्जी आदि में भी फायदेमंद है |
- खांसी एवं जुकाम में यह अत्यंत फायदेमंद औषधि है |
- सुखी एवं गीली दोनों प्रकार की खांसी में लाभदायक होती है |
- क्षय अर्थात यक्ष्मा में फेफड़ों को बल देने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग करवाते है |
- पितकफज विकारों में लाभदायक होता है |
वासावलेह के आमयिक प्रयोग
- राजयक्ष्मा
- श्वास
- अस्थमा
- पार्श्वशूल
- हृद्यशुल
- रक्तपित्त
- ज्वर
- कास
इस लाभकारी औषधि का निर्माण कई प्रशिद्द कंपनिया जैसे पतंजलि , डाबर, बैद्यनाथ आदि करती है | अत: आप बाजार से इस दवा को आसानी से खरीद सकते है |
पढ़ें वासा अर्थात अडूसा का सम्पूर्ण परिचय एवं फायदे
धन्यवाद |
Thanks for providing such detailed information. it’s an extensively used medication in the management of respiratory disease and improving immunity as well.