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महामाष तेल (निरामिष) / Mahamash Oil
क्या आप महामाष तेल के बारे में जानना चाहते है ? अगर हाँ तो निश्चित रहें इस आर्टिकल में आपको महामाष तेल का शास्त्रोक्त वर्णन मिलेगा |
आयुर्वेद चिकित्सा की स्नेह कल्पना के तहत तैयार होने वाला एक प्रशिद्ध आयुर्वेदिक तेल है | महामाष तेल दो प्रकार का होता है निरामिष एवं सामिष | इस तेल का विस्तृत वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ चक्रदत: वातव्याधिकार में किया गया है | इन दो प्रकार के तेलों में सिर्फ कुच्छ औषध द्रव्यों अर्थात बनाने में प्रयोग होने वाली जड़ी – बूटियों का अंतर होता है, बाकि इनके गुण एवं उपयोग समान ही होते है |
आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में इस तेल से वातव्याधियों के इलाज के लिए अभ्यंग, कर्णपूर्ण (कानों में तेल भरना), नस्य (नाक में औषध तेल डालना) एवं बस्ती आदि बाह्य प्रयोग ही किया जाता है |
जोड़ों में होने वाले दर्द, वातव्याधि, वातशूल, जोड़ों की सुजन, पक्षाघात (पैरालिसिस) आदि रोगों से अगर आप ग्रषित है तो महामाष तेल का चिकित्सकीय उपयोग आपको इन रोगों से छुटकारा दिला सकता है |
लम्बे समय से चली आ रही वातव्याधि चाहे किसी भी प्रकार की हो इस तेल के उपयोग से खत्म हो जाती है | अगर आप इसका चिकित्सकीय उपयोग देखना चाहते है तो निश्चित ही आयुर्वेदिक डॉ से सम्प्रक करें , यहाँ हम आपको इस तेल के घटक द्रव्य, बनाने की विधि, फायदे एवं इसके उपयोग की विधि के बारे में बताएँगे |
महामाष तेल के घटक द्रव्य
इस आयुर्वेदिक तेल के निर्माण में लगभग 38 प्रकार की जड़ी – बूटियों पड़ती है | महामाष का मुख्य घटक माष होता है अर्थात उड़द की दाल को ही संस्कृत में माष नाम से जानते है एवं इसी के ऊपर इस तेल का नामकरण किया गया है |
- दशमूल
- माष
- मूर्छित तिल तेल
- गाय का दूध
- अश्वगंधा
- शटी
- देवदारु
- बला मूल
- रास्ना
- गंधप्रशारनी
- कुष्ठ
- पलाश
- भारंगी
- विदारीकन्द
- क्षीरविदारी
- पुनर्नवा
- मातुलुंग
- श्वेत जीरा
- हिंग
- शतपुष्प
- शतावरी की जड़
- गोखरू
- पिप्पली मूल
- चित्रकमूल
- जीवक
- ऋषभक
- काकोली
- क्षीरकाकोली
- मेदा
- महामेदा
- वृद्धि
- ऋद्धि
- मधुयष्टि
- जीवन्ति
- मुद्गप्रणी
- माषपर्णी
- सेंध नमक
- दशमूल एवं माष का क्वाथ तैयार करने के लिए अलग – अलग जल की आवश्यकता होती है |
महामाष तेल बनाने की विधि
इस तेल का निर्माण करने के लिए सबसे पहले तिल तेल को मुर्च्छित कर लेना चाहिए | मुर्च्छित का अर्थ होता है तेल में कुच्छ द्रव्यों के क्वाथ या कल्क आदि को मिलाकर अच्छी तरह पका लेना ताकि उसके हानीकारक गुण खत्म हो जाएँ |
- अब सबसे पहले दशमूल के यवकूट चूर्ण को जल में मिलाकर क्वाथ विधि से एक चौथाई शेष रहने तक पकाना चाहिए |
- माष (उड़द की दाल) को भी चार गुना जल मिलाकर क्वाथ का निर्माण करलेना चाहिए |
- अब बाकी कल्क के लिए प्रयुक्त होने वाले द्रव्यों का थोडा सा पानी मिलाकर कल्क बना लेना चाहिए |
- कल्क निर्माण के पश्चात इस कल्क को तिल तेल में डालकर साथ ही दशमूल से तैयार क्वाथ एवं माष से निर्मित क्वाथ डालकर मन्दाग्नि पर पाक करना चाहिए |
- इस तेल में बाकि बचे दूध का मिश्रण मिलाकर तेल पाक विधि से पाक किया जाता है |
- जब र्वल अव सन – सन की आवाज आना बंद हो जाये या तेल पाक हो जाये तो इसे ठंडा करके बोतलों में भर लेना चाहिए |
इस योग को ही महामाष तेल कहते है | बाजार में यह दिव्य, पतंजलि, डाबर एवं बैद्यनाथ जैसी कंपनियों का आसानी से मिल जाता है |
महामाष तेल के फायदे
- इसका बाह्य प्रयोग अधिक किया जाता है |
- पंचकर्म चिकित्सा में अभ्यंग, कर्णपूर्ण एवं नस्य आदि लेने से फायदा मिलता है |
- पक्षाघात एवं हनुस्तम्भ में यह फायदेमंद औषधि है |
- जोड़ो में होने वाले दर्द एवं सुजन से इसका प्रयोग करने पर छुटकारा मिलता है |
- वातव्रद्धी के कारण होने वाले शारीरिक दर्द से भी छुटकारा मिलता है |
- सभी प्रकार की वात विकारों में लाभ दायक है |
- पीठ दर्द , सिर दर्द एवं कमर की जकदन में फायदेमंद है |
- गठिया , अर्थराइटिस, सर्वाइकल स्पोंडीलाइटिस में फायदा मिलता है |
- गर्दन दर्द एवं हाथ – पैरों की जकड़न में इसका चिकित्सकीय उपयोग किया जाता है |
- महामाष तेल के फायदों में सबसे अधिक फायदेमंद इसका वातव्याधियों में प्रयोग है |
- आमयिक प्रयोग की द्रष्टि से पक्षाघात, अर्दितवात, अप्तंत्रक, अपबाहुक, विश्वाची, खंजवात, पंगु, हनुग्रह,मन्यागृह, अधिमंथ, शुक्रक्षय, कर्णनाद (कानों में विभिन्न आवाजें सुनना) एवं कानों का दर्द है |
महामाष तेल के प्रयोग या सेवन की विधि
इस तेल का उपयोग शास्त्रों में 10 से 20 मिली. बताया गया है | बाह्य प्रयोग की द्रष्टि से अधिकतर उपयोग किया जाता है | अभ्यंग, बस्ती, नस्य एवं कर्णपूर्ण करते समय इसकी मात्रा का निर्धारण वैद्य करता है | अत: चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए | वैसे इस बाह्य उपयोगी आयुर्वेदिक तेल के कोई साइड – इफेक्ट्स नहीं है |