भूमि आंवला (भू धात्री) की पहचान, सेवन विधि एवं फायदे

भूमि आंवला (भुई आमला) की पहचान, सेवन विधि एवं फायदे

परिचय – प्राय: सम्पूर्ण भारत में उगने वाला एक औषधीय पौधा है | यह वर्षा ऋतू अर्थात सावन के महीने में अपने आप ही खाली पड़ी जमीन, जंगल एवं सड़क किनारे उग आता है | वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में इसे एक प्रकार की खरपतवार माना जाता है , लेकिन यह सिर्फ अज्ञानता का परिणाम है | हम सभी भी हमारे आस – पास उगने वाले इन पौधों पर ध्यान देने की कोशिश नहीं करते, जिससे ज्ञान एवं स्वास्थ्य लाभ नहीं उठा पाते |

जो लोग औषधीय पौधों का ज्ञान रखते है उन्हें इसकी पहचान होती है | साथ ही वे इसके स्वास्थ्य उपयोग भी जानते है | अत: इसे खरपतवार या व्यर्थ पौधा समझने की भूल नहीं करते |

लीवर की समस्याओं में यह पौधा एक चमत्कारिक रसायन का कार्य करता है | आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में पुरातन समय से ही भू धात्री के उपयोग का वर्णन मिलता है | बहुत से रोगों में इसका आमयीक प्रयोग करवाया जाता है | आज कल बाजार में भी भुई आमला के इस्तेमाल से तैयार की गई लीवर टॉनिक की भरमार है |

पहचान – इसकी पहचान के लिए निचे हमने इसकी कुछ इमेज उपलब्ध करवाई है, जिन्हें देख कर आसानी से पहचाना जा सकता है | इसका पौधा 1 से 2 फीट तक लम्बा हो सकता है | पतियाँ बिल्कुल आंवले की तरह ही सरल रेखा पर लगती है जो आंवले के पतों के सदर्श होती है | इन्ही पतियों के निचे इस पौधे के फल लगते है जिनको देखने से आंवले के फल की याद आती है | इसके फल आकार में छोटे एवं गोल होते है जो शुरुआत में हरे रंग के एवं बाद में हल्के पितहरे हो जाते है | फलों एवं पतियों को देखने से ही इसे भूमि आंवला या भू धात्री कहा जाता है |

भूमि आंवला

भूमि आंवला के विभिन्न भाषाओँ में पर्याय

संस्कृत – भूम्याअमल्की, तामलकी, भूधात्री |

हिंदी – भूमि आंवला, भुई आंवला, जंगली आंवला, क्षेत्रामलकी आदि |

भूमि आंवला की फ़ोटो 

भूमि आंवला भूमि आंवला के फल

भुई आंवला के गुण धर्म

आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार यह कड़वा, कषैला, मधुर रस का होता है | गुणों में यह गृह्यी, तीक्षण गुण युक्त होता है | इसका वीर्य शीत अर्थात यह शीतल प्रकृति का होता है | वातकारक, तृष्णा, कास (खांसी), रक्तपित, कफ , गर्भप्रदायी एवं पांडूरोग (एनीमिया) नाशक माना जाता है |

सेवन विधि

आयुर्वेद एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धति में इसके पंचांग का प्रयोग किया जाता है | लीवर की समस्या, कफज विकार, एवं पाचन से सम्बंधित रोगों में इसकी जड़ का क्वाथ बना कर सेवन किया जाता है | क्वाथ की मात्रा 10 से 20 मिली. तक एवं पंचांग का काढ़ा भी इसी मात्रा में सेवन किया जाता है | भूम्याअमल्की से निर्मित चूर्ण को 5 ग्राम तक की मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है |

भूमि आंवला के औषधीय योग

इस प्राकृतिक जड़ी बूटी के प्रयोग से आयुर्वेद में भूम्यामलकी चूर्ण, भूम्यामलकी क्वाथ एवं भूम्यामलकि रसायन आदि का निर्माण विभिन्न आयुर्वेदिक फार्मेसी जैसे – डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ एवं धूतपापेश्वर आदि करती है | इन औषधियों का सेवन लीवर की समस्या, पीलिया, एनीमिया आदि में करवाया जाता है |

भूमि आंवला के फायदे एवं कुछ उपयोगी घरेलु नुस्खें

  • इस औषधि को सर्वरोग हर माना जाता है | अत: चूर्ण आदि का सेवन करने से रोग का नाश होता है |
  • जिनका लीवर ख़राब हो या पाचन ठीक न हो उन्हें इसके पंचांग को सुखाकर काढ़ा बना कर प्रयोग में लेना चाहिए |
  • लीवर से जुडी परेशानियों में यह अमृत तुल्य फलदायी मानी जाती है | बाजार में भूमि आंवले से युक्त विभिन्न लीवर टॉनिक बेचे जाते है |
  • कफज विकार जैसे श्वास – कास में भी इसका सेवन लाभदायक होता है | पंचांग का चूर्ण या क्वाथ का प्रयोग करना चाहिए |
  • मुंह आदि में अगर छाले हो और ठीक न होते हो तो इसके पतों को दिन में 4 से 5 बार चबाएं | छाले ठीक हो जायेंगे |
  • त्वचा के बाहरी इन्फेक्शन में गाँवों में आज भी इसका लेप बना कर लगाया जाता है |
  • पेट दर्द या पाचन ठीक न होने पर इसके काढ़ा बना कर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है |
  • किडनी की सुजन में भी भूम्यामलकी का क्वाथ सेवन फायदेमंद साबित होता है | यह सुजन को दूर कर किडनी को सुचारू काम करने में मदद करता है |
  • आयुर्वेद में इसे बेहतरीन लीवर डीटोक्शीफायर, क्लीनर एवं लीवर को स्ट्रेंग्थ देने वाला द्रव्य माना जाता है |

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