रास्नासप्तक क्वाथ परिचय – यह एक आयुर्वेदिक प्रशिद्ध क्वाथ है जिसका उपयोग गंभीर आमवात की समस्या में किया जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में क्वाथ औषधियों का उपयोग प्राचीन समय से ही होता आया है | क्वाथ शरीर पर जल्दी असर दिखाते है एवं रोग का शमन भी जल्दी करने लगते है |
लम्बे समय से चली आ रही आम की दिक्कत , शरीर में वातव्रद्धी होना एवं जोड़ो के दर्द की समस्या में इसका प्रयोग करने से तीव्रतम लाभ मिलता है | यह व्यक्ति के पाचन को सुधार कर कब्ज जैसी समस्या का अंत भी करने में सक्षम औषधि है |
रास्नासप्तक काढ़े में विभिन्न प्रकार की जड़ी – बूटियों का समावेश होता है |
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रास्नासप्तक क्वाथ के घटक द्रव्य
- रास्ना
- गोक्षुर
- एरंड
- देवदारु
- पुनर्नवा
- गुडूची (गिलोय)
- आरग्वध (अमलतास)
- शुंठी चूर्ण
इन सभी औषध द्रव्यों को समान मात्रा में लिया जाता है एवं इनके यवकूट चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाने से रास्नासप्तक क्वाथ का निर्माण होता है |
रास्नासप्तक काढ़े का निर्माण कैसे करें ?
काढ़े का निर्माण करने के लिए 10 या 15 ग्राम रास्नासप्तक क्वाथ को 200 मिली. पानी में डालकर खूब उबाला जाता है , जब पानी एक चौथाई बचे तब इसे आग से निचे उतार कर ठंडा करलें | ठन्डे होने पर छान कर उपयोग में लेना चाहिए | इस काढ़े का उपयोग चिकित्सक की देख रेख में या दिन में दो बार भूखे पेट लिया जाता है |
रास्नासप्तक क्वाथ के फायदे या चिकित्सकीय उपयोग
इस आयुर्वेदिक काढ़े का प्रयोग निम्न रोगों में किया जाता है –
- गंभीर आमवात
- जंघाग्रह (जंघाओं का दर्द)
- कमर दर्द
- पार्श्वपीड़ा – पसली में दर्द होने पर
- उरुशूल
- प्रष्ठशूल (पीठ का दर्द)
- उरुपीड़ा एवं
- दु: साध्य आमवात की समस्या में रास्नासप्तक क्वाथ का प्रयोग करने से लाभ मिलता है |
- वातशुल में भी इसके सेवन से लाभ मिलता है |
- पाचन को सुधार कर कब्ज को ठीक करने में फायदेमंद है |
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