अशोकारिष्ट / Ashokarishta in Hindi – यह एक आयुर्वेदिक फीमेल टॉनिक है | इसका प्रयोग महिलाओं की मासिकधर्म की समस्याओं में प्रमुखता से किया जाता है | मासिकधर्म के समय दर्द की समस्या, गैस होना, कृष्टार्तव, अधिक रक्त स्राव, असमय मासिकधर्म एवं मासिकधर्म की रूकावट आदि रोगों में यह आयुर्वेदिक टॉनिक चमत्कारिक औषधि साबित होती है | इस आयुर्वेदिक सिरप में अशोक छाल की प्रधानता होती है | इसीलिए यह महिलाओं के लिए इतनी महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक सिरप साबित होती है | अशोक छाल के अलावा इसमें 14 अन्य आयुर्वेदिक जड़ी – बूटीयों का समावेश होता है जो इसे और अधिक कारगर बनाती है | आयुर्वेद चिकत्सा पद्धति में सिरप को अरिष्ट के नाम से जानते है एवं इनमे से अधिकतर का निर्माण संधान प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है |
हमने अशोकारिष्ट की प्रशिद्धि को देखते हुए इसके घटक द्रव्य, निर्माण विधि एवं इसके सेवन से होने वाले फायदों को विस्तार से बताया है
अशोकारिष्ट के घटक द्रव्य
आयुर्वेदिक अशोकारिष्ट के निर्माण में निम्न आयुर्वेदिक द्रव्यों का इस्तेमाल किया जाता है |
क्रमांक | घटक द्रव नाम | मात्रा |
---|---|---|
1. | अशोकत्वक (अशोक छाल ) | 4.800 ग्राम |
2. | गुड | 9.600 ग्राम |
3. | धातकी पुष्प | 768 ग्राम |
4. | कृष्ण जीरक | 48 ग्राम |
5. | नागरमोथा | 48 ग्राम |
6. | शुंठी | 48 ग्राम |
7. | दारुहरिद्रा | 48 ग्राम |
8. | हरीतकी | 48 ग्राम |
9. | विभितकी | 48 ग्राम |
10. | आमलकी | 48 ग्राम |
11. | नील कमल पुष्प | 48 ग्राम |
12. | वासा | 48 ग्राम |
13. | श्वेतजीरा | 48 ग्राम |
14. | लालचन्दन | 48 ग्राम |
जल – 49.152 लीटर (क्वाथ के लिए) अवशिष्ट क्वाथ – 12.288 लीटर (क्वाथ निर्माण के पश्चात् बचा जल)
अशोकारिष्ट बनाने की विधि (कैसे होता है निर्माण ?)
सबसे पहले अशोक की छाल को यवकूट करके जल में मिलाकर मन्दाग्नि पर क्वाथ का निर्माण किया जाता है | जब पानी एक चोथाई अर्थात 12.288 लीटर बचता है तो इसे निचे उतार लेते है | अब संधान पात्र में क्वाथ डालकर उसमे गुड को घोला जाता है | गुड के अच्छी तरह घुल जाने के पश्चात इसमें सभी अन्य औषध द्रवों का यवकूट चूर्ण डालकर इस पात्र को ढक्कन से अच्छी तरह ढक दिया जाता है | अब इस पात्र को निर्वात स्थान पर एक महीने एक महीने के लिए सुरक्षित रख देते है | महीने पश्चात इसका परिक्षण करते है | परिक्षण में संधान पात्र में कान लगाकर सुनना एवं माचिस की जलती तीली को पात्र के मध्य में ले जाया जाता है | अगर सन-सन की आवाज आना बंद हो जाए एवं पात्र के बिच में जलती तीली ले जाने पर भी न भुझे तो इसे तैयार माना जाता है | अच्छी तरह परिक्षण के पश्चात इस तैयार औषधि को छानकर कांच की शीशी में भर लिया जाता है | यह तैयार सिरप ही अशोकारिष्ट होती है |
सेवन की मात्रा
इसका सेवन भोजन के पश्चात 20 से 30 ml की मात्रा में सुबह – शाम या चिकित्सक के परामर्शनुसार करना चाहिए | अनुपान में समान मात्रा में जल का प्रयोग किया जाना चाहिए | उचित मात्रा में सेवन से इस आयुर्वेदिक टॉनिक के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है लेकिन फिर भी औषध का सेवन करने से पहले चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए |
अशोकारिष्ट के फायदे या स्वास्थ्य लाभ / Health Benefits of Ashokarishta in Hindi
- मासिकधर्म की समस्याएँ जैसे अनियमित माहवारी (पढ़ें आयुर्वेदिक उपचार) , माहवारी के समय दर्द होना, कमजोरी आदि रोगों में यह लाभदायक टॉनिक है |
- मासिक धर्म में रक्त का अधिक आना, रुक – रुक कर आना एवं जननांगों में दर्द आदि में लाभदयक औषधि है |
- महिलाओं के लिए यह एक सुप्रशिद्ध एवं चमत्कारिक औषधि है | महिला के सम्पूर्ण कायाकल्प के लिए इसका सेवन किया जा सकता है |
- इसके सेवन से महिला के हार्मोन्स की समस्या ठीक होती है जिससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिलता है |
- अशोकारिष्ट रक्तप्रदर की समस्या को भी खत्म करती है |
- महिलाओं में होने वाली सफ़ेद पानी (श्वेत प्रदर) की समस्या में यह चमत्कारिक परिणाम देती है |
- गर्भास्य के लिए भी उत्तम टॉनिक है |
- सभी प्रकार के योनिरोगों में यह लाभ देती है |
- रक्त पित एवं पाचन की समस्या से भी महिला को उभारने का काम करती है |
- यह उत्तम पाचक गुणों से युक्त होती है अत: कब्ज की समस्या भी महिलाओं को नहीं होती |
- प्रमेह, अरोचक एवं शोथ में भी अशोकारिष्ट के सेवन से लाभ मिलता है |
- मन्दाग्नि को ठीक करके भूख बढ़ाती है |
- अर्श (पाइल्स) में भी उपयोगी |
- उचित सेवन से महिला प्रजनन अंगो को शक्ति मिलती है एवं उनके सभी दोष दूर होते है |
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Kisi ne is daea Ko use Kiya h to btaiye ye ksi h