आरोग्यवर्धिनी वटी / Arogyvardhini vati
आरोग्यवर्धिनी वटी :- आयुर्वेद में वटी कल्पना का प्रयोग रोगों के शमन के लिए किया जाता है | आरोग्यवर्धिनी वटी का अर्थ होता है आरोग्य का वर्द्धन करने वाली | इसे आरोग्यवर्धिनी रस भी कहते है | यह पाचन, दीपन, पथ्य, हृदय, मेदोहर और मलशोधन औषधीय कर्मों से परिपूर्ण होती है | इसी लिए इसका प्रयोग सभी प्रकार के ज्वर में किया जाता है | चाहे किसी भी प्रकार का ज्वर हो जैसे वातिज ज्वर, पित्तज ज्वर, कफज ज्वर एवं सनिपताज ज्वर में इसका सेवन का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते है |
यकृत से सम्बंधित रोगों जैसे लीवर सिरोसिस, पीलिया आदि में आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन लाभदायक होता है | साथ ही जीर्ण ज्वर, संक्रमण, त्वचा विकार, आंतो के रोग, जलोदर और कुष्ठ आदि में भी आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग करवाते है | इसका निर्माण शुद्ध गंधक और शुद्ध पारद के साथ अन्य सहयोगी द्रव्यों के मिलाने से होता है | रसरत्नसमुच्चय ग्रन्थ में इसका वर्णन मिलता है | बाजार में मिलने वाली आरोग्यवर्धिनी वटी जैसे – दिव्य आरोग्यवर्धिनी, डाबर, बैद्यनाथ आरोग्यवर्धिनी आदि सभी वटियों का निर्माण रसरत्नसमुच्चय के आधार पर ही होता है | लीवर के विकारों जैस – फैटी लीवर, लीवर सिरोसिस, पीलिया, लीवर का ठीक ढंग से काम न करना आदि के साथ साथ आंतो की विकृति में भी फायदेमंद होती है | इसके सेवन से कब्ज, पाचन, कृमि, रक्त की विकृति, ज्वर, हृदय विकार, त्वचा विकार, कुष्ठ एवं मोटापे में लाभ मिलता है |
आरोग्यवर्धिनी वटी का निर्माण कैसे होता है ?
इसके निर्माण की विधि रसरत्नसमुच्चय के कुष्ठ की चिकित्सा में वर्णन मिलता है | रसरत्नसमुच्चय में वर्णित विधि हम यहाँ बता रहे है |
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक द्रव्य / Ingredients of Arogyavardhini vati
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क्रम संख्या / Number | घटक द्रव्य / Ingredients | मात्रा |
1 | शुद्ध पारद | 1 भाग |
2. | शुद्ध गंधक | 1 भाग |
3. | लौह भस्म | 1 भाग |
4. | अभ्रक भस्म | 1 भाग |
5. | ताम्र भस्म | 1 भाग |
6. | त्रिफला चूर्ण | 2 भाग |
7. | शुद्ध शिलाजितु | 3 भाग |
8. | शुद्ध गुग्गुलु | 4 भाग |
9. | चित्रकमूल चूर्ण | 4 भाग |
10. | कुटकी चूर्ण | 18 भाग |
11. | निम्बपत्र स्वरस | आवश्यकतानुसार (भावनार्थ) |
विधि – इसका निर्माण करने के लिए सबसे पहले शुद्ध गंधक एवं शुद्ध पारद से कज्जली बनायीं जाती है | कज्जली काले रंग की कीचड़ के समान बनती है | कज्जली बनाने के लिए सबसे पहले इन दोनों को खरल में घोटा जाता है जिससे कज्जली का निर्माण होता है | इस कज्जली में बाकी बच्चे सभी द्रव्यों के चूर्ण को मिलाकर निम्बपत्र स्वरस की भावना दी जाती है | जब मिश्रण गाढ़ा होने लगता है तब इसकी 250 mg के लगभग गोलियां बना ली जाती है | इस प्रकार से आरोग्यवर्धिनी वटी का निर्माण होता है |
आरोग्यवर्धिनी वटी के फायदे एवं उपयोग
यह रसायन उत्तम पाचन, दीपन एवं शरीर के स्रोतों का शोधन करने वाला होता है | इसके प्रयोग से हृदय को बल मिलता है | मोटापे को कम करता है | यकृत एवं प्लीहा रोगों में लाभकारी आयुर्वेदिक दवा है | इस दवा का प्रयोग छोटी एवं बड़ी आंत्र के विकारों के उपचार के लिए भी किया जाता है | आंतो में विषजन्य रक्त की विकृति भी दूर होती है | हृदय विकार जैसे कमजोरी हृदय एवं रक्त वाहिनियों की रूकावट में आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ पुनर्नवादी क्वाथ लेने से हृदय को बल मिलता है एवं रक्त वाहिनियों की रूकावट दूर होती है | आरोग्यवर्धिनी वटी दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त होती है | शरीर में पाचक पित्त की कमजोरी के कारण खाया हुआ अन्न ठीक ढंग से पच नही पाता | अपच की शिकायत हो जाती है एसे में इस दवा के इस्तेमाल से पाचन सुधरता है एवं रोग की पुनरावर्ती नहीं होती | इसके अलावा शरीर में कफ वृद्धि होने से मन्दाग्नि हो जाती है जिससे भूख कम लगती है, उल्टी की शिकायत होती है, पेट भारी हो जाता है, खांसी एवं कफ की समस्या बनी रहती है इसमें आरोग्यवर्धिनी वटी के इस्तेमाल से आराम मिलता है | कफ शांत होता है | बाजार में बैद्यनाथ आरोग्यवर्धिनी वटी विशेषकर लाभदाई साबित होती है |
- लीवर सिरोसिस, फैटी लीवर, पीलिया, यकृत का बढ़ना आदि में इसके सेवन से लाभ मिलता है |
- आंतो के विकारों में भी इसका सेवन लाभ दायक होता है | इसके सेवन से आंते साफ होती है एवं अगर कोई आंतो का इन्फेक्शन है तो वह भी ठीक होता है |
- सभी प्रकार की ज्वर व्याधियों में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते है | जैसे जीर्ण ज्वर, सामान्य ज्वर, सनिपाताज ज्वर आदि में |
- शरीर में कंही पर भी इन्फेक्शन में इसका प्रयोग किया जा सकता है | इसके प्रयोग से इन्फेक्शन में आराम मिलता है |
- शरीर को सामान्य बिमारियों से रक्षा करती है |
- रोगप्रतिरोधक क्षमता का विस्तार होता है |
- दीपन एवं पाचन में सहायक है |
- मोटापे को घटाने में कारगर है |
- लीवर फंक्शन को ठीक रखती है |
- शरीर की धातुओं को पौष्ण मिलता हा जिससे शरीर में ओज की व्रद्धी होती है |
सेवन मात्रा
इसका सेवन 250 mg से 500 mg तक चिकित्सक के परामर्शनुसार करना चाहिए | ज्वर रोग में इसका प्रयोग ज्वर के 5 वे दिन करना बताया गया है |