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दारु हल्दी / Berberis aristata
दारुहल्दी एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है | इसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हल्दी के समान पिली लकड़ी | इसका वृक्ष अधिकतर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते है | इसके वृक्ष की लम्बाई 6 से 18 फीट तक होती है | पेड़ का तना 8 से 9 इंच के व्यास का होता है | भारत में दारूहल्दी के वृक्ष अधिकतर समुद्रतल से 6 – 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जैसे – हिमाचल प्रदेश, बिहार, निलगिरी की पहाड़ियां आदि जगह पाए जाते है |
दारुहरिद्रा के पत्र दृढ, चर्मवत, आयताकार, कंटकीय दांतों से युक्त अर्थात कांटेदार पत्र होते है, | इनकी लम्बाई 1 से 3 इंच होती है | इसकी पुष्पमंजरी 2 – 3 इंच लम्बी संयुक्त होती है जो सफ़ेद या पीले रंग की होती है | पुष्प हमेशां गुच्छों में लगते है और साल के अप्रेल – जून महीने में खिलते है | इसके फल अंडाकार नील बैंगनी रंग के होते है जिन्हें हकीम आदि “झरिष्क” नाम से पुकारते है | जून महीने के बाद इसके फल लगते है | दारुहरिद्रा में रस क्रिया द्वारा रसांजन “रसौंत” प्राप्त किया जाता है जो एक प्रकार का सत्व होता है |
दारुहल्दी का रासायनिक संगठन और गुण – धर्म
दारुहरिद्रा की जड़ की छाल में एक पिलेरंग का कडवा तत्व पाया जाता है जिसे बेर्बेरिने “Berberine” कहा जाता है | इस औषधीय गुण या तत्व के ही कारण इसका उपयोग एवं अध्यन किया जाता है |
इसका रस तिक्त और कषाय होता है | गुणों में यह लघु और रुक्ष होति है | इसका वीर्य अर्थात प्रकृति उष्ण होती है एवं पचने के बाद इसका विपाक कटु होता है |
प्रयोज्य अंग – सेवन की मात्रा और विशिष्ट योग
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इसकी जड़, काण्ड और फल का उपयोग किया जाता है | दारुहरिद्रा से प्राप्त रसांजन का इस्तेमाल 1 से 3 ग्राम की मात्रा में करना चाहिए और फल का प्रयोग 5 से 10 ग्राम तक किया जा सकता है | आयुर्वेद में इसके संयुक्त योग से कई योग का निर्माण किया जाता है जैसे – दाव्यार्दी क्वाथ, दाव्यार्दी लौह एवं दाव्यार्दी तैल आदि |
दारुहल्दी के स्वास्थ्य लाभ और फायदे
इसका प्रयोग आयुर्वेद में कई रोगों के निदार्नाथ किया जाता है | यह शोथहर (सुजन दूर करना), वेदनास्थापन (दर्द), व्रणरोपण (घाव भरना), दीपन – पाचन, पित्त को हटाने वाला, ज्वर नाशक (बुखार), रक्त को शुद्ध करने एवं कफ दूर करना आदि गुणों से युक्त होता है | इन सभी रोगों में इसके अच्छे परिणाम मिलते है |
- बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
- दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
- अगर शरीर में कहीं सुजन होतो इसकी जड़ को पानी में घिसकर इसका लेप प्रभावित अंग पर करने से सुजन दूर हो जाती है एवं साथ ही दर्द अगर होतो उसमे भी लाभ मिलता है | इस प्रयोग को आप घाव या फोड़े – फुंसियों पर भी कर सकते है , इससे जल्दी ही घाब भर जाता है |
- इसका लेप आँखों पर करने से आँखों की जलन दूर होती है |
- दारुहल्दी के फलों में विभिन्न प्रकार के पूरक तत्व होते है | यह वृक्ष जहाँ पाया जाता है वहां के लोग इनका इस्तेमाल करते है , जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के पौषक तत्वों के सेवन से विभिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते है |
- पीलिया रोग में भी इसका उपयोग लाभ देता है | इसके फांट को शहद के साथ गृहण लाभ देता है |
- मधुमेह रोग में इसका क्वाथ बना कर प्रयोग करने से काफी लाभ मिलता है |
- इससे बनाये जाने वाले रसांजन से विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है |
I want puches
Aapane jitne bhi jankari daru haldi ke bare mein baithe hai Hamen bahut badhiya Lagi..