ये तो हम सभी जानते है की हमारे देश में घी और अन्य वसा युक्त खाद्य पदार्थो का कितना बड़ा बोलबाला है | हमारे सभी घरों में घी आदि का इस्तेमाल करना ही अधिक कष्टदायी है | वसा का सेवन हमारे घरों में लाभदायक बताया जाता है , एक सीमा तक यह सही भी है क्योकि मनुष्य को अपनी दैनिक उर्जा का 10 से 20 प्रतिसत वसा के द्वारा ही प्राप्त होता है | लेकिन जब कभी हम आवश्यकता से अधिक वसा का सेवन करते है तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक भी सिद्ध होता है |
पुराने समय में लोग अधिक वसीय पदार्थो का सेवन इसलिए करते थे क्योकि उनकी श्रम शक्ति क्षीण न हो जाए | वे जितना अधिक वसा का सेवन करते थे उससे कंही अधिक श्रम भी करते थे | इसलिए वे सदैव हष्ट-पुष्ट रहते थे | लेकिन वर्तमान समय में शारीरिक श्रम की महता गूम होती जा रही है और यही कारण है की अब के युवाओं या बच्चों के लिए वसा का सेवन नुकसानदाई साबित हो रहा है | शरीरिक श्रम की कमी , तली – भुनी चीजें , फ़ास्ट फ़ूड आदि का सेवन अब मोटापे और अन्य बीमारियों का कारण बनता जा रहा है |
यहाँ पढ़े वसा के अधिक सेवन से होने वाले शारीरिक नुकसान
1 . मोटापा बढ़ना ( Increase Obesity )
आवश्यकता से अधिक वसायुक्त खाद्य पदार्थो का सेवन करने से शरीर में अधिक मात्रा में adipose tissue बनने लगते है | जिससे त्वचा के निचे फेफड़े , हृदय, गुर्दे , यकृत, आदि अन्य कोमल अंगो तथा शरीर के अन्य स्थानों पर वसा की परत जमने लगती है | वसा की परत जमने से मोटापा बढ़ जाता है | मोटापे से होने वाले नुकसानों के बारे में आप सभी अच्छी तरह वाकिफ होंगे ही |
2 . मधुमेह हो जाना ( Diabtes)
मधुमेह हालाँकि वन्सानुगत रोग भी है लेकिन फिर भी यह अधिक मोटे लोगो को जल्दी होता है | वसा और कार्बोज के अधिक सेवन से शरीर में अधिक मात्रा में ग्लूकोज का निर्माण होता है | हमारे शरीर के रक्त में सिमित मात्रा तक ही ग्लूकोज संगृहीत रहती है | अतिरिक्त ग्लूकोज ग्लैकोजन में बदलने लगती है | दर:शल ग्लूकोज से ग्लैकोजन का निर्माण अग्नाशय के langerhans ( लंगेर्हंस) के द्वारा किया जाता है | लेकिन ये लंगेर्हंस इन्सुलिन हार्मोन के स्रवन का कार्य भी करती है परन्तु जब अधिक ग्लूकोज को ग्लैकोजन में बदलने का कार्य करती है तब इन्सुलिन हर्मोंन का स्राव नहीं कर पाती और फल स्वरुप मधुमेह हमें घेर लेता है |
3 हृदय सम्बन्धी रोग ( Heart Related Diseases )
वसा की अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाती है | सामान्यत: रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा 120 से 160mg/100 ml होती है | इससे अधिक कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने पर कोलेस्ट्रोल रक्त धमनियों के आंतरिक दीवारों पर जमने लगते है | फलस्वरूप रक्त धमनियों की दिवाले संकड़ी होने लगती है , जिसे एथ्रोस्क्लेरोसिस कहते है | धीरे – धीरे इन धमनियों की दीवारें पर इतना अधिक कोलेस्ट्रोल का जमाव हो जाता है की इनका लचीलापन भी समाप्त हो जाता है | इन धमनियों का व्यास भी छोटा हो जाता जिससे रक्त के बहाव की गति कम हो जाती है | और यही कारण है की हृदयघात की संभावनाए बढ़ जाती है |
4 . गुर्दे प्रभावित होना ( Effects Kidney )
मोटापे के कारण गुर्दे के चरों और वसीय तंतुओ की मोती परत जम जाती है जिससे गुर्दे द्वारा होने वाले कार्यो में रूकावट आती है | गुर्दा हमारे शरीर से निरुपयोगी पदार्थो का निष्काशन का कार्य करता है जैसे – यूरिया, यूरिक अम्ल, अमोनिया, टोक्सिन आदि वर्ज्य पदार्थो का पूर्णत: निष्काशन नहीं होपाता और वे रक्त में ही रह जाते है | रक्त की छनन क्रिया भी ठीक से नहीं हो पाती जिससे अशुद्ध चीजे रक्त में ही रह जाती है | अशुद्ध रक्त शरीर के लिए जहरीला होता है | गुर्दे काम करना छोड़ते ही मनुष्य की मर्त्यु जल्दी ही हो जाती है |
वसा का सेवन एक निश्चित मात्रा में ही करे , अधिक वसा सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकती है |
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