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विटामिन ई
विटामिन ई के बारे में आप सभी ने सुना होगा | यह स्वास्थ्य और सेहत के लिए बहुत ही आवश्यक विटामिन है | बालों को स्वस्थ रखने , सौन्द्रिय बनाये रखने एवं बच्चों के स्वास्थ्य के लिए विटामिन की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है | इस विटामिन की खोज सन 1922 में एवंस और बिशॉप ( Evans and Bishop) ने की थी | इन्होने अपने प्रयोगों एवं अनुसंधानों से यह सिद्ध किया की चूहों में सामान्य प्रजनन क्रिया संपन्न करने के लिए एक तत्व की आवश्यकता होती है | यह तत्व कच्ची वनस्पतियों में पाया जाता है | इन्होने इस तत्व को विटामिन ई नाम दिया | सन 1924 में वैज्ञानिक Shure ने इसे “Anti Sterlity Factor” (बंध्यता प्रतिरोधक पदार्थ ) नाम दिया | सन 1936 में ईवान्स और साथियों ने इसे गेंहू के भ्रूण के तेल से विटामिन ‘E’ शुद्ध रूप से प्रथक किया , एवं रासायनिक सरंचना के आधार पर इसे – ” a-b टोकोफ़ेरॉल (Tocopherol) नाम दिया | एक महारसायन – मर्दाना कमजोरी के लिए internal linking
इस पोस्ट में आप Vitamin E in Hindi का सम्पूर्ण विवरण जैसे – विटामिन ई क्या है ?, विटामिन इ का अवशोषण, संग्रह एवं विसर्जन | vitamin e के कार्य , विटामिन e की कमी के प्रभाव , इसके प्राप्ति साधन और इसके फायदे आदि के बारे में पढेंगे |
शरीर में विटामिन ई का अवशोषण , संग्रह और विसर्जन
हमारे शरीर में vitamin ‘E’ का अवशोषण छोटी आंत के द्वारा किया जाता है | लेकिन अवशोषण होने के लिए वसा और पितरस ( Bile Juice ) का होना जरुरी है | वसा और पीतरस की अनुपस्थिति में विटामिन ‘E’ का अवशोषण नहीं हो पाता | मुख्यतया यह वसा और वसा घुलनशील अन्य विटामिनों के साथ रक्त में अभिशोषित हो जाता है | रक्त वाहिनियों के द्वारा यह विटामिन शरीर के सभी ऊतको एवं कोषों तक पहुँचाया जाता है | संग्रह – शरीर में विटामिन ई का संग्रह यकृत , मांसपेशियों , एडिपोज , ऊतक और शरीर के अन्य अवयवों में होता है | लेकिन यकृत में इसका संग्रह सबसे अधिक होता है | एक वयस्क व्यक्ति के रक्त प्लाज्मा में इसकी मात्रा 0.9 से 1.2 mg/100 ml होती है | विसर्जन – भोजन द्वारा ग्रहण किया गया विटामिन ‘E’ का आधे से अधिक भाग मल द्वारा विसर्जित हो जाता है |
विटामिन ई के कार्य और फायदे
1 . प्रजनन में सहायक
विटामिन ई सामान्य प्रजनन में महतवपूर्ण भूमिका निभाता है | इसकी कमी से स्त्री और पुरुष दोनों में ही प्रजनन शक्ति क्षीण हो जाती है | यौन हार्मोन का स्रवन अनियमित , अनियंत्रित एवं असंतुलित हो जाता है | इसी कारण से इसे ” बंध्यता प्रतिरोधक पदार्थ ” भी कहते है | सामान्यत: शरीर में विटामिन ई की कोई कमी नहीं होती लेकिन किन्ही कारणों से अगर कमी हो भी गई हो तो यह आपके प्रजनन क्षमता को प्रभावित करेगी |
2 . RBC निर्माण में उपयोगी
विटामिन ‘ई’ RBC के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है | यह लाल रक्त कणिकाओं को ओक्सिकारक पदार्थो से टूटने – फूटने से बचाता है | जैसे Hydrogen Peroxide से आदि से |
3 . न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन के चयापचय में
विटामिन ‘E’ का न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन के चयापचय में महत्वपूर्ण स्थान है | यह हीम प्रोटीन ( Heme Protein ) के संश्लेषण में सहायक होता है |
4 . मांसपेशियों की क्रिया में सहायक
मांसपेशियों की सामान्य क्रिया में भी विटामिन ई सहायक होता है | मैत्रोकोंद्रिया के भीतरी भाग में भी विटामिन ई काफी मात्रा में होता है | इसके आभाव में ह्रदय के उतकों और पेशियों में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते है | अत: विटामिन ई की कमी मांसपेशियों और हृदय के ऊतकों के लिए हानिकारक सिद्ध होती है |
5 . यकृत में विटामिन ई के फायदे
Vitamin ‘E’ यकृत को विभिन्न विषैले पदार्थों जैसे – कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि से सुरक्षा प्रदान करता है | इसकी सामान्य मात्रा रहने तक यकृत ठीक प्रकार से कार्य करता है और स्वस्थ रहता है |अगर शरीर में इसकी कमी हो जाती है तो यकृत में विकार उत्पन्न होने लगते है एवं यकृत में घाव भी उत्पन्न होने लगते है |
6 . विभिन्न रोगों में उपचारात्मक प्रयोग
इन रोगों में विटामिन ई बतौर उपचार अधिक प्रभावी सिद्ध होता है बार-बार गर्भपात होने से रोकने में , बाँझपन , मधुमेह , हृदय रोग , त्वचा संबधी विकारो में , शिशुओ में होने वाली रक्ताल्पता , मांसपेशियों की दुर्बलता में और बालों आदि के विकारो में 500 से 1000 mg विटामिन ई देने से रोगी में अपेक्षित सुधर होता है | लेकिन ध्यान दे इससे अधिक मात्रा का सेवन दवाईयो के रूप में vitamin e लेना आपके शरीर के लिए नुकसान दायक होता है अगर 3 से 4 ग्राम विटामिन ई प्रतिदिन दवाई के रूप में लिया जाए तो इससे शरीर में विषाक्तता उत्पन्न होने लगती है | यहाँ पढ़े Vitamin A के फायदों के बारे में
विटामिन ई के प्राप्ति साधन
वैसे तो विटामिन ई सभी भोज्य पदार्थो में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है | लेकिन गेंहू और मक्का के भ्रूण के तेल में प्रचुर मात्रा में विटामिन ई पाया जाता है | आप निम्न सारणी से विभिन्न खाद्य पदार्थो में उपलब्ध विटामिन ई की मात्रा को पढ़ सकते है |
सर्वोतम साधन – कुल विटामिन ई (mg/100gm) | उत्तम साधन – कुल विटामिन ई (mg/100gm) | निकृष्ट साधन – कुल विटामिन ई (mg/100gm) |
गेंहू के भ्रूण का तेल – 255mg | जौ – 3.2mg | गाजर – 0.5mg |
चावल के चोकर का तेल – 91mg | जई का आटा – 2.1mg | प्याज – 0.3mg |
अलसी का तेल – 113mg | चावल भूसा सहित – 2.4mg | टमाटर – 0.4mg |
सोयाबीन का तेल – 70mg | गेंहू का आटा – 2.2mg | केला – 0.4mg |
मूंगफली का तेल – 22mg | मैदा – 1.2mg | संतरा – 0.2mg |
सरसों का तेल – 32mg | मखन – 2.4mg |
विटामिन ई की दैनिक आवश्यकता
भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् (ICMR) ने 1989 में विटामिन ‘ई’ की दैनिक आवश्यकता की प्रस्तावना प्रस्तुत की जिसे आप निम्न सारणी से अच्छी तरह समझ सकते है |
अवस्थाएँ | विटामिन ई (mg/प्रतिदिन) |
शैशवास्था 0-1 वर्ष | 3-4 |
बाल्यावस्था 2-10 वर्ष | 5-7 |
किशोरावस्था 18 वर्ष तक | 7-8 |
वयस्क स्त्री और पुरुष | 8 |
गर्भवती स्त्री | 10 |
धात्री स्त्री | 10 |
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