अष्टांग आयुर्वेद श्लोक से तात्पर्य अष्टांगहृदयम् के मूलमात्रं श्लोकों से हैं जो अति महत्वपूर्ण है । इन श्लोकों के लिए हमारे पास कमेंट्स आते है कि कृपया इन्हें सभी लोगों के साथ शेयर करें । अत: आज के इस लेख में हम अष्टांग आयुर्वेद के 15 श्लोक आप सभी के साथ शेयर करने जा रहें है । जो आयुर्वेद के स्टूडेंट्स, आम नागरिक एवं आयुर्वेद को जानने वालों के लिए लाभदायक साबित होंगे ।
इन श्लोकों को जानने से पहले आपको अष्टांगहृदयम् के बारे में जान लेना चाहिए की यह क्या है और आयुर्वेद में इसका कितना अधिक महत्व है ।
अष्टांगहृदयम् की जानकारी
तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतरोच्चयः ।क्रियतेऽष्टाङ्गहृदयं नातिसङ्क्षेपविस्तरम् ॥
अष्टाङ्गहृदयम – ४
यह आयुर्वेद का एक प्रशिद्ध ग्रन्थ जिसकी रचना 500 ईसापूर्व ऋषि वाग्भट जी ने की थी । इसी ग्रन्थ में आयुर्वेद की औषधियों एवं शल्यचिकित्सा का ज्ञान भी निहित है । अष्टांगहृदयम् एक प्रकार का संग्रह ग्रन्थ है जिसमे चरक, सुश्रुत, अष्टांगसंग्रह इन सभी ग्रंथों का संग्रह है । इसमें उपस्थित अध्याय इन्ही ग्रंथों से उद्धृत किये गए हैं ।
तीनों ग्रंथों से उद्धरण लिए जाने के कारण यह अत्यंत प्रशिद्ध ग्रन्थ माना जाता है । इसमें कुल 6 खण्ड हैं और 120 कुल अध्याय हैं जिनमे कुल 7120 श्लोक हैं ।
अष्टांग आयुर्वेद श्लोक 15 महत्वपूर्ण
यहाँ हम अष्टांग आयुर्वेद श्लोक के रूप में आपको अष्टांगहृदयम् के 6 खण्डों से महत्वपूर्ण श्लोकों के बारे में जानकारी दे रहें हैं । जैसे की सूत्रस्थान, शारीर स्थान, निदान स्थान, चिकित्सा स्थान, कल्पस्थान, उत्तर स्थान । इन सभी खंडो से जो भी महत्वपूर्ण एवं लाभदायक श्लोक हैं उनको आप निचे श्रेणीवाइज पढ़ सकते हैं –
1. सूत्रस्थान के आयुष्कामीय: अध्याय से निम्न महत्पूर्ण श्लोक हैं –
कषाय-तिक्त-मधुराः पित्तम् अन्ये तु कुर्वते । शमनं कोपनं स्वस्थ-हितं द्रव्यम् इति त्रि-धा ॥ १६ ॥
आयुष्कामीय: खण्ड सूत्रस्थान
2. अष्टांग हृदयं सूत्रस्थान
आयुः कामयमानेन धर्म-अर्थ-सुख-साधनम्। आयुर्वेद-उपदेशेषु विधेयः परम-आदरः ॥ २ ॥
आयुष्कामीय: खण्ड सूत्रस्थान श्लोक २
3. अष्टांग हृदयं सूत्रस्थान दिनचर्या अध्याय से श्लोक
ब्राह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थम् आयुषः ।
सूत्रस्थान दिनचर्या
शरीर-चिन्तां निर्वर्त्य कृत-शौच-विधिस् ततः ॥ १ ॥
4. सूत्रस्थान रात्रिचर्या अध्याय से श्लोक
मासैर् द्वि-संख्यैर् माघाद्यैः क्रमात् षड् ऋतवः स्मृताः ।शिशिरोऽथ वसन्तश्च च ग्रीष्मवर्षा-शरद्-हिमाः ॥ १ ॥
सूत्रस्थान रात्रिचर्या श्लोक १
पदच्छेद:- मासै: द्वि-संख्यै: माघाद्यैः क्रमात् षड् ऋतवः स्मृताः ।शिशिर: अथ वसन्त: च ग्रीष्म-वर्षा-शरद्-हिमाः ॥ १ ॥
5. अष्टांग आयुर्वेद शारीरस्थान के प्रथम अध्याय गर्भावक्रान्तिशारीराध्याय से श्लोक
शुद्धे शुक्रार्तवे सत्-त्वः स्व-कर्म-क्लेश-चोदितः ।
१ गर्भावक्रान्तिशारीराध्याय
गर्भः संपद्यते युक्ति-वशाद् अग्निर् इवारणौ ॥ १ ॥
6. शारीरस्थान खण्ड गर्भावक्रान्तिशारीराध्याय से श्लोक
बीजात्मकैर् महा-भूतैः सूक्ष्मैः सत्-त्वानुगैश् च सः ।
२ गर्भावक्रान्तिशारीराध्याय
मातुश् चाहार-रस-जैः क्रमात् कुक्षौ विवर्धते ॥ २ ॥
7. शारीरस्थान खण्ड गर्भव्यापद्विध्यध्याय: से श्लोक
गर्भिण्याः परिहार्याणां सेवया रोगतो ऽथ-वा ।
गर्भव्यापद्विध्यध्याय: १
पुष्पे दृष्टे ऽथ-वा शूले बाह्यान्तः स्निग्ध-शीतलम् ॥ १ ॥
8. अष्टांग आयुर्वेद अर्थात अष्टांग हृदयम के निदानस्थान से श्लोक
रोगः पाप्मा ज्वरो व्याधिर् विकारो दुःखम् आमयः ।
अध्याय 1 निदानस्थान
यक्ष्मातङ्क-गदाबाधाः शब्दाः पर्याय-वाचिनः ॥ १ ॥
9. अष्टांग हृदयम चिकित्सा स्थान से श्लोक
आमाशय-स्थो हत्वाग्निं सामो मार्गान् पिधाय यत् ।
विदधाति ज्वरं दोषस् तस्मात् कुर्वीत लङ्घनम् ॥ १ ॥
प्राग्-रूपेषु ज्वरादौ वा बलं यत्नेन पालयन् ।
बलाधिष्ठानम् आरोग्यम् आरोग्यार्थः क्रिया-क्रमः ॥ २ ॥
तत्रोत्कृष्टे समुत्क्लिष्टे कफ-प्राये चले मले ।
स-हृल्-लास-प्रसेकान्न-द्वेष-कास-विषूचिके ॥ ४ ॥
10. अष्टांगहृदय कल्पस्थान से श्लोक
वमने मदनं श्रेष्ठं त्रिवृन्-मूलं विरेचने ।
नित्यम् अन्यस्य तु व्याधि-विशेषेण विशिष्ट-ता ॥ १ ॥
11. अष्टांगहृदय कल्पस्थान से दूसरा श्लोक
जीमूतकस्य बिम्ब्या वा शणपुष्प्याः सदापुष्प्याः प्रत्यक्पुष्प्य्-उदके ऽथ-वा ।
ततः पिबेत् कषायं तं प्रातर् मृदित-गालितम् ॥ ८ ॥
12. अष्टांगहृदय कल्पस्थान से तीसरा श्लोक
क्षैरेयीं वा कफ-च्छर्दि-प्रसेक-तमकेषु तु ।
दध्य्-उत्तरं वा दधि वा तच्-छृत-क्षीर-संभवम् ॥ १३ ॥
13. अष्टांग आयुर्वेद उत्तरस्थान से श्लोक
जात-मात्रं विशोध्योल्बाद् बालं सैन्धव-सर्पिषा ।
बालोपचरणीयाध्याय:
प्रसूति-क्लेशितं चानु बला-तैलेन सेचयेत् ॥ १ ॥
14. अष्टांग आयुर्वेद अर्थात अष्टांग हृदयम के उत्तरस्थान के दिवितीय अध्याय से श्लोक
त्रि-विधः कथितो बालः क्षीरान्नोभय-वर्तनः ।
बालामयप्रतिषेधाध्याय:
स्वास्थ्यं ताभ्याम् अ-दुष्टाभ्यां दुष्टाभ्यां रोग-संभवः ॥ १ ॥
15. अष्टांग आयुर्वेद श्लोक के भूतविज्ञानीयाध्याय: से श्लोक
लक्षयेज् ज्ञान-विज्ञान-वाक्-चेष्टा-बल-पौरुषम् ।
पुरुषे ऽ-पौरुषं यत्र तत्र भूत-ग्रहं वदेत् ॥ १ ॥
भूतस्य रूप-प्रकृति-भाषा-गत्य्-आदि-चेष्टितैः ।
यस्यानुकारं कुरुते तेनाविष्टं तम् आदिशेत् ॥ २ ॥
सो ऽष्टा-दश-विधो देव-दानवादि-विभेदतः ।
हेतुस् तद्-अनुषक्तौ तु सद्यः पूर्व-कृतो ऽथ-वा ॥ ३ ॥
आवेदयन्तम् दुःखादि संबद्धा-बद्ध-भाषिणम् ।
भूतविज्ञानीयाध्याय:
नष्ट-स्मृतिं शून्य-रतिं लोलं नग्नं मलीमसम् ॥ ३२ ॥