दूर्वादि घृत क्या है? – इसके फायदे, सामग्री, बनाने की विधि और खुराक

दूर्वादि घृत: यह एक आयुर्वेद चिकित्सा की घृत प्रकरण की औषधि है । जिसका मुख्य घटक दूर्वा घास है । दूर्वादि घृत का इस्तेमाल रक्तप्रदर, नकसीर, एवं रक्तपित्त जैसे रोगों में प्रमुखता से किया जाता है । बाजार में यह आपको पतंजलि, बैद्यनाथ, साधना, डाबर आदि फार्मेसी की आसानी से उपलब्ध हो जाएगी । आज के इस लेख में हम दूर्वादि घृत क्या है?, इसके फायदे, घटक द्रव्य, बनाने की विधि और नुकसान आदि से अवगत करवायेगे ।

अगर आप भी रक्तपित्त, नकसीर यह अन्य रक्तस्राव से सम्बंधित बीमरियों से पीड़ित है तो आपको भी दूर्वादि घृत का सेवन करना चाहिए । इसके सेवन से पहले आपको दूर्वादि घृत क्या होता है जान लेना चाहिए ।

दूर्वादि घृत क्या है ? (What is Durvadi Ghrita)

दूर्वादि घृत

दूर्वादि घृत एक उत्तम रक्तस्तंभक औषधि है जो रक्त विकृतियों जिनमे सीधे ही रक्त का नुकसान होता है उनमे प्रमुख रूप से इस्तेमाल की जाती है । जैसे रक्तपित्त, नाक से आने वाली नकसीर, महिलाओं में रक्तप्रदर और बवासीर आदि में दूर्वादि घृत के सेवन से उत्तम लाभ मिलता है । यह पूर्णत: आयुर्वेदिक घटकों से निर्मित बल्य औषधि है जिसके सेवन से आपके रक्त का स्तम्भन हो जाता है और रक्त नहीं निकलता ।

“दूर्वा सोत्पलकिञ्जल्का मञ्जिष्ठा सैलवालुका । सिता शीतमुशीरञ्च मुस्तं चन्दनपद्मके ।। विपचेत् कार्षिकैरेतैः सर्पिराजं सुखाग्निना ।तण्डुलाम्बु त्वजाक्षीरं दत्त्वा चैव चतुर्गुणम् ।। तत्पानं वमतो रत्तं नावनं नासिकागते। कर्णाभ्यां यस्य गच्छेत्तु तस्य कर्णौ प्रपूरयेत्।।चक्षुःस्राविणि रत्ते च पूरयेत्तेन चक्षुषी। मेढ्रपायुप्रवृत्ते तु बस्तिकर्मसु तद्धितम्।। रोमकूपप्रवृत्ते तु तदभ्यङ्ग प्रशस्यते।। “

भै.र.13/125-129, ग.नि.

दूर्वादि घृत के घटक | Ingredients of Durvadi Ghrita in Hindi

घटक द्रव्य क्रमांकघटक द्रव्यउपयोग
1दूर्वापेट और मधुमेह के उपचार में उपयोग किया जाता है।
2दाड़िमत्वचा समस्याओं के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।
3मंजिष्ठारक्तशोधक और त्वचा समस्याओं के उपचार के लिए प्रयुक्त होता है।
4कमलआयुर्वेदिक और चीनी चिकित्सा में इसके विभिन्न भागों का उपयोग रोगों के इलाज में किया जाता है।
5केशरखाने के रंग और स्वाद में उपयोग किया जाता है, साथ ही कुछ आयुर्वेदिक औषधियों में भी प्रयोग होता है।
6गूलरत्वचा समस्याओं और जोड़ों के दर्द में उपयोग किया जाता है।
7खसबेहतर खासी के लिए उपयोग होता है, और अन्य आयुर्वेदिक औषधियों में भी शामिल किया जाता है।
8नागर्मोथापेट संबंधित समस्याओं के उपचार के लिए प्रयुक्त होता है।
9श्वेतचन्दनपूजा-अर्चना में और त्वचा संबंधित समस्याओं के लिए उपयोग होता है।
10पद्माखआयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी माना जाता है, खासकर पाचन और गैस की समस्याओं के लिए।
11अडूसाआयुर्वेदिक औषधियों में इसका उपयोग ज्वर, त्वचा समस्याओं और पेट की खराबी में किया जाता है।
12गेरूगुणवत्ता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों में इसका उपयोग होता है।
13नागकेशरआयुर्वेदिक चिकित्सा में इसका उपयोग आरोग्य सुरक्षा में और त्वचा समस्याओं के लिए किया जाता है।
14अजादुग्धआहार में इसका उपयोग किया जाता है और कई डेयरी उत्पादों का मुख्य घटक होता है।
15घृतपाचन और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसका उपयोग होता है।
16पाठा स्वरसआयुर्वेदिक चिकित्सा में इसका उपयोग पाचन और रक्तशोधक के रूप में किया जाता है।
17आयापान स्वरसजीर्ण-विकृत अवस्था में पाचन की प्रक्रिया को सुधारने के लिए उपयोग होता है।
18तण्डुलोदकपेट संबंधित समस्याओं के उपचार के लिए प्रयुक्त होता है।

दूर्वादि घृत को बनाने की विधि (Manufacturing Process of Durvadi Ghrita)

दूर्वादि घृत बनाने के लिए इन सभी को पानी में पीसकर लुग्दी बना ली जाती है । इस लुग्दी को गो घृत एवं बकरी के दूध में डालकर धीमी आंच पर पकाया जाता है जब इसमें से सारा पानी निकल जाता है तो जो सिर्फ घृत बचता है वह दूर्वादि घृत कहलाता है । इसे बनाने की साधारण विधि है जिसे आप भैस्ज्य रत्नावली के अनुसार बना सकते हैं ।

दूर्वादि घृत के फायदे | Benefits of Durvadi Ghrita

  1. रक्तस्तम्भक: यह घृत उत्तम रक्तस्तम्भक है, अर्थात् रक्त के बहाव को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  2. मुख से रक्त आने पर उपयोग: यदि मुख से रक्त आता है, तो इसे पीने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  3. नाक से रक्त आने पर नस्य: यदि नाक से रक्त आता है, तो दूर्वादि घृत का नस्य करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  4. कान या आँख से रक्त आने पर उपयोग: कान या आँख से रक्त आने पर यह घृत कान या आँख में डालने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  5. लिङ्ग, योनि या गुदा से रक्त आने पर उपयोग: अगर लिङ्ग, योनि या गुदा से रक्त आता है, तो उत्तर बस्ति या अनुवासन बस्ति में दूर्वादि घृत का प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है ।
  6. रक्तपित्त रोग में उपयोग: यह प्रमुख औषध है जो रक्तपित्त रोग के लिए उपयोगी होती है। इसके प्रयोग से रक्तपित्त से होने वाले लक्षणों में बहुत लाभ मिलता है जैसे प्यास लगना, शरीर में जलन, मुँह सूखना, चक्कर आना आदि।
  7. आयुर्वेदिक योग बनाने पर फायदे: दूर्वादि घृत का संयोजन प्रवालपिष्टी, कहरवा पिष्टी, अशोकारिष्ट आदि के साथ किया जाता है, तो यह और भी अधिक लाभकारी होता है। अगर इस प्रकार योग बना कर सेवन करवाया जाये तो यह और भी अधिक रक्तस्तंभक गुणों से युक्त हो जाता है ।

खुराक (Dosage)

आमतौर पर दूर्वादि घृत का इस्तेमाल 6 से 10 ग्राम की मात्रा में किया जाता है । परन्तु एक चिकित्सक के परामर्श पश्चात इसकी मात्रा को बताये अनुसार कम या ज्यादा भी किया जा सकता है । हालाँकि रोग एवं रोगी की स्थिति के आधार पर दूर्वादि घृत की खुराक का निर्धारण किया जाता है ।

  • बच्चों के लिए खुराक: बच्चों के लिए इसे 2 से 5 ग्राम तक की मात्रा में ही अधिकतम सेवन करवाया जाता है । उपयोग से पहले आयुर्वेदिक वैद्य की सलाह अवश्य लें
  • व्यस्क के लिए खुराक: व्यस्क इसे 6 से 10 ग्राम तक की मात्रा में सुबह – शाम चिकित्सक द्वारा निर्देशित अनुपान के साथ प्रयोग में ले सकते है ।
  • गर्भवती महिलाओं के लिए: गर्भवती महिलाओं को दूर्वादि घृत के उपयोग से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए ।

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