पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) क्या है ? – जानें कारण, लक्षण व आयुर्वेदिक उपचार

अल्सर न केवल भारत में बल्कि विश्व के अनेक देशों के लोगों में फैला हुआ एक रोग है । जो मुख्य रूप से पाचन संस्थान की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होता है। आयुर्वेद की भाषा में इस रोग में पेट में ऊपर, बीच में अथवा  बिल्कुल नीचे के भाग में घाव या छाले हो जाते है जोकि पेट में स्थित “अम्ल” एसिड के अत्यधिक बनने के कारण होता है।

हमारे उत्तम स्वास्थ्य के लिए पाचन तंत्र का स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक है। पाचन तंत्र में थोड़ी सी गड़बड़ी उत्पन्न होने या विकार उत्पन्न होने पर अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिसके कारण शरीर के समस्त भौतिक एवं रासायनिक क्रियाएं असंतुलित हो जाती है परिणाम स्वरूप पाचन, अवशोषण आदि भी प्रभावित होता है।

इसका प्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है। व्यक्ति कमजोर, निशक्त, निर्बल, थका सा तथा अनेक संक्रामक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। कई बार स्थिति गंभीर हो जाती है तथा व्यक्ति असमय में ही सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो जाता है।

पेप्टिक अल्सर

आज हम यहां इस लेख में आपको आयुर्वेद के अनुसार अल्सर क्या है, यह किन कारणों से होता है और कौन-कौन से लक्षण उत्पन्न होते हैं तथा इनका आयुर्वेदिक उपचार क्या है आदि के बारे में बताएंगे। इस रोग के बारे में संपूर्ण ज्ञान जानने के लिए इस लेख को अंतिम तक अवश्य पढ़ें तो चलिए जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार अल्सर रोग |

अल्सर क्या है ? | What is Ulcer?

जैसा कि हमने पूर्व में भी बताया है कि अल्सर पाचन संस्थान की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होता है। हमारे द्वारा ग्रहण किया गया भोजन आहार नलिका द्वारा पेट में आमाशय में जाता है वहां आमरस पाया जाता है जो पाचन क्रिया को संपन्न करता है अर्थात जो आहार में मिलकर उसकी पाचन क्रिया करवाता है |

यही आमरस जब आवश्यकता से ज्यादा बनने लग जाए तो शरीर का विघटन शुरू कर देता है अर्थात शरीर में आम रस के आवश्यकता से ज्यादा बनने से आमाशय तथा पक्वाशय के श्लेषिमक झिल्लीयों में घाव हो जाते हैं। अमाशय की दीवारों की श्लेषिमक झिल्लीयां धीरे-धीरे गलकर नष्ट हो जाती है अर्थात अमाशयम एवं पक्वाशय की श्लेषिमक झिल्लियों का  ही पाचन आम रस के कारण होने लगता है जिसे आयुर्वेद में अल्सर और आधुनिक भाषा में पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) कहते हैं।

पेप्टिक अल्सर /अल्सर की स्थिति में आमाशय तथा पक्वाशय में रक्त स्त्राव होने लगता है । अमाशय की दीवारों पर घाव होने के कारण शरीर में कई रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं। कभी-कभी अल्सर के कारण आंतों में कैंसर हो जाता है पेप्टिक अल्सर /अल्सर अधिकांशत : पक्वाशय में होता है, अमाशय में कम होता है।

पेप्टिक अल्सर / अल्सर के प्रकार _ पेप्टिक अल्सर या अल्सर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है

(1) आमाशयिक पेप्टिक अल्सर- आधुनिक भाषा में इसे गैस्ट्रिक अल्सर (Gastric Ulcer) के नाम से जाना जाता है।यह मुख्य रुप से आमाशय के अंदर होता है।

(2) पक्वाशयिक पेप्टिक अल्सर- आधुनिक भाषा में इसे Duodenal Ulcer कहते हैं। यह पक्वाशय के अंदर होता है। यह अल्सर मुख्यतः गर्मी के दिनों में गरीब किसान एवं मजदूर वर्ग के लोगों में ज्यादा होता है। समय पर भोजन न ग्रहण कर पाने की दशा में यह रोग विकसित हो जाता है।

पेप्टिक अल्सर / अल्सर होने के कारण | Causes of Peptic Ulcer

पेप्टिक अल्सर को विकसित करने में अनेक प्रमुख कारक होते हैं जैसे-

  • वंशानुक्रम- Peptic Ulcer /अल्सर वंशानुगत रोग है। अध्ययनों के दौरान, रोगियों के इतिहास जानने के बाद यह पता चलता है कि जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना – नानी या परिवार के किसी भी सदस्य को पेप्टिक अल्सर होता है तो उनके भावी संतानों में भी पेप्टिक अल्सर होने की संभावना प्रबल हो जाती है। यह रोग माता-पिता से बालकों को विरासत के रूप में मिलती है।
  • रक्त समूह- वैज्ञानिक शोधों के अनुसार निष्कर्ष निकला है कि Peptic Ulcer /अल्सर अधिकांशत:” o ” समूह के लोगों को अधिक होता है।
  • उपवास- जब व्यक्ति अधिक व्रत उपवास करने लगता है तथा काफी समय तक भूखे पेट रहता है तो इस स्थिति में भोजन के बीच लंबा अंतराल हो जाता है। इस बीच अमाशय से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता रहता है तथा इसकी मात्रा में वृद्धि होती रहती है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल आमाशय तथा पक्वाशय की झिल्लियों  पर क्रिया करने लगता है जिसके कारण वे नष्ट होने लगती है तथा उसमें घाव हो जाता है। जिससे पेप्टिक अल्सर हो जाता है।
  • मसाले युक्त भोजन- अत्यधिक मिर्च मसालेदार भोजन के सेवन से आमाशयिक रस का स्त्रावण बढ़ जाता है। यदि लंबे समय तक इसी प्रकार के भोजन का ग्रहण किया जाए तो कुछ समय बाद ही पेप्टिक अल्सर(Peptic Ulcer) हो जाता है।
  • पेय पदार्थ – अत्यधिक चाय, कॉफी, शराब आदि का सेवन से पेप्टिक अल्सर हो जाता है क्योंकि यह पदार्थ आमाशयिक स्त्रावण को बढ़ाते हैं।
  • धूम्रपान – बीड़ी, तंबाकू आमाशयिक रस में वृद्धि करते हैं।
  • मानसिक तनाव- अत्यधिक डर, तनाव, चिंता, आतुरता, क्रोध आदि की  स्थिति में आमाशयिक रस का स्त्रावण बढ़ जाता है। जिसके कारण पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) विकसित हो जाता है।
  • मांस, मछली, अंडे का सेवन- भोजन में मांस, मछली, अंडा आदि के अधिक सेवन और नित्य प्रतिदिन सेवन करने से पेप्टिक अल्सर हो जाता है।
  • आमाशय की अम्लीयता में वृद्धि – कई कारणों से आमाशय से जठर रस Gastric Secretion बढ़ जाता है जैसे मसालेदार भोजन तथा मांस, मछली का अधिक सेवन करने तथा खाली पेट रहने से भी आमाशयिक रस का स्त्रावण होता रहता है जो अमाशय की श्लेष्मिक झिल्लियों पर क्रिया करता है। जिसके परिणामस्वरूप पेप्टिक अल्सर हो जाता है।
  • कम प्रोटीन एवं वसा के सेवन से – आहार में जब पर्याप्त मात्रा में वसा होती है तो आमाशयिक रस का स्त्रावण कम होता है क्योंकि वसा आमाशयिक रस के स्त्रावण को घटा देती है। प्रोटीन का पाचन भी आमाशय में होता है अतः इसे पचाने हेतु अत्यधिक मात्रा में आमाशयिक रस चाहिए। इसलिए आहार में प्राप्त मात्रा में प्रोटीन और वसा होनी चाहिए।
  • रक्त परिसंचरण संस्थान में गड़बड़ी- कई बार रक्त परिसंचरण संस्थान में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। जिसके कारण आमाशय एवं आंतों के श्लेष्मिक झिल्लियों तक रक्त नहीं पहुंच पाता है। अतः इन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है जिससे इनमें विकार उत्पन्न हो जाते हैं और वहां की कोशिकाएं मरने लगती है। इस कारण पेप्टिक अल्सर हो जाता है 20 से 40 वर्ष की अवस्था में यह रोग अधिक होता है।
  • म्यूसिन की कमी के कारण – अमाशय की दीवारें म्यूकोप्रोटीन की बनी होती है। ये म्यूसिन स्रावित करती है जो अमाशय की दीवारों पर रक्षात्मक कवच की तरह कार्य करता है तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के प्रभाव को रोकता है। जब म्यूसिन का स्त्रावण कम होने लगता है,तब यह रक्षात्मक कवच हट जाता है तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की क्रिया आमाशय की कोशिकाओं पर होने लगती है तथा उन्हें ही पचाने लगता है जिसके कारण कोशिकाएं नष्ट हो जाती है और पेप्टिक अल्सर हो जाता है।

पेप्टिक अल्सर के लक्षण | Symptoms of Peptic Ulcer

अल्सर के कारणों को जाने के बाद अब हम अल्सर होने के बाद के लक्षण को जानेंगे तो चलिए जानते हैं_

  • पेट में बहुत तेज दर्द और पीड़ा होती है। यह दर्द भोजन के दो-तीन घंटे बाद शुरू होता है। रोगी की हालत दर्द के कारण बेचैन हो जाती है, शुरुआत में दर्द धीरे-धीरे होता है तथा बाद में यह दर्द काफी बढ़ जाता है। कई बार दर्द की वजह से रोगी को अस्पताल पहुंचने की नौबत आ जाती है।
  • दर्द प्रारंभ होते ही खाने वाले सोडा के सेवन करने से दर्द शांत हो जाता है अतः रोगी राहत महसूस करता है।
  • आंतों में लोह तत्वों का अवशोषण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।अतः एनिमा रोग हो जाता है।
  • वजन घटने लगता है।
  • विटामिन ‘बी’ समूह एवं ‘सी’ का अवशोषण सही प्रकार से नहीं हो पाता है। अतः इसकी कमी के लक्षण भी विकसित हो जाते हैं।
  • रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए शरीर पर अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।
  • पेप्टिक अल्सर की तीव्रता की स्थिति में उल्टी होने लगती है। जी मिचलाना, चक्कर आना, सिर दर्द आदि लक्षण भी पाए जाते हैं।
  • मानसिक चिंता एवं तनाव के कारण रोग बढ़ जाता है।
  • खाना खाने के बाद पेट फूलने जैसा अनुभव होता है।
  • रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर वह निर्बल हो जाता है।

Peptic Ulcer /अल्सर का उपचार

अल्सर का उपचार मुख्य रूप से दवा के साथ- साथ भोजन में आवश्यक परिवर्तन एवं सुधार करके किया जाता है। इस आहार द्वारा उपचार के मुख्य उद्देश्य है-

  • तेज दर्द और पीड़ा से राहत।
  • घाव भरने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करना।
  • अल्सर दोबारा ना हो इसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहना।
  • आहार में सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो ताकि रोगी पोषण न्यूनता जनित रोगों के शिकार नहीं हो पाए।
  • रोगी को इस तरह का भोजन दिया जाना चाहिए जिससे आमाशयिक रस का स्त्रावण कम से कम हो साथ ही पितरस को भी उत्तेजित करें जिससे कि पक्वाशय में अम्ल की तीव्रता में कमी आए।
  • रोगी की दशा में सुधार होने हेतु द2- 2 घंटे के अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भोजन दिया जाना चाहिए ताकि आमाशयिक रस भोजन पर क्रिया करता रहे तथा घाव भरने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
  • रोगी को निश्चित अंतराल पर सदा सादा भोजन दिया जाना चाहिए जिसमें प्रोटीन की प्रचुरता हो।
  • चटपटे, मसालेदार तथा गर्म भोज्य पदार्थों का सेवन बिल्कुल भी ना करे।क्योंकि ये भोज्य पदार्थ एसिडिटी को बढ़ाते हैं।
  • सब्जियों को उबालकर उसका पानी देना हितकर होता है।
  • अल्सर में पके केले के फल का सेवन हितकर होता है एक पका केला खाकर एक-दो घंटे के बाद मीठा दूध सेवन करना चाहिए। हरे केले की सब्जी खाना भी हितकर होती है।

आहार के साथ-साथ अल्सर के रोगी को औषध भी दी जाती है जिससे उसे जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ मिल सके तो चलिए जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार  अल्सर /Peptic Ulcer रोगी को कौन – कौन सी औषधि जाती है।

अल्सर/Peptic Ulcer के लिए कुछ सरल घरेलू आयुर्वेदिक प्रयोग या दवा _

  • अविपत्तिकर चूर्ण 3 ग्राम, स्वर्ण माक्षिक भस्म 2 रती, शौकितक भस्म 4 रती इन सब को मिलाकर एक मात्रा की अर्थात समान मात्रा की पुड़िया बना ले और उस पुड़िया को दिन में 2 बार गुलकंद या शहद के साथ या ताजा जल के साथ सेवन करें।
  • सफेद जीरा और धनिया समान मात्रा में लेकर पीसकर, कूटकर, चूर्ण बना कर शक्कर के साथ सेवन करना चाहिए।
  • करेले के फूल या पत्तों को गाय के घी में भूनकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
  • मुनक्का 50 ग्राम और सौंफ 25 ग्राम लेकर मोटा- मोटा दरदरा कुटकर 200 मिलीलीटर जल में रात्रि के समय भिगो दें और प्रातः सुबह उठकर मसलकर, छानकर उसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करें। यह अल्सर/Peptic Ulcer के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रयोग है।
  • सर्वांग सुंदर रस ,मंडूर भस्म, शंख भस्म और मुक्ताशुक्ति भस्म प्रत्येक- प्रत्येक भस्म को 125-125 mg जा या एक ऐसे समान मात्रा में लेकर दिन में तीन बार मधु के साथ सेवन करें।
  • कुमारी आसव 20 मिलीलीटर समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दिन में दो बार लेना चाहिए।
  • सूतशेखर रस 250 mg, कामदुधा रस व जहर मोहरा पिष्टी 125 – 125 ग्राम _ ऐसी एक मात्रा बनाकर सुबह के समय दूध के साथ सेवन करनी चाहिए।
  • चन्दनादि वटी 500mg दिन में दो बार सुबह-शाम जल के साथ रोगी को दें।
  • चंदनासव 20 मिलीलीटर समभाग जल में मिलाकर भोजन के बाद देना चाहिए।
  • त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम रात्रि को सोते समय रोगी को सेवन कराएं।
  • शंख भस्म, सूतशेखर रस, जहरमोहरा पिष्टी – प्रत्येक 250-250 ग्राम, कामदुधा रस व आमलकी रसायन 500- 500 mg, प्रवाल पंचामृत और मुक्ताशुक्ति भस्म 125- 125mg _ऐसी एक मात्रा रोगी को सुबह के समय शहद में मिलाकर सेवन कराएं। इससे अवश्य ही लाभ मिलेगा।
  • प्रवाल पिष्टी 250mg, अमृतासत्व व शूलवर्जिणी वटी 125 – 125 mg_ ऐसी एक मात्रा गाय के घी के साथ दिन में तीन बार रोगी को सेवन कराएं।

धन्यवाद |

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