वायरल फीवर में आयुर्वेद चिकित्सा से पायें राहत

बरसाती मानसून में वायरल फीवर होना आम बात है | वायरल बुखार को सामान्य होने वाला रोग माना जाता है, जो मौसम परिवर्तन के कारण होता है | इस समय वायरल एवं बैक्टीरियल इन्फेक्शन सबसे अधिक होता है क्योंकि वायु में नमी होती है | नमी में सबसे अधिक वायरल इन्फेक्शन का खतरा रहता है |

साथ ही इस मौसम से पहले तेज गर्मी एवं हवा में रूखापन रहता है फिर अचानक से बरसात आते ही तापमान भी कम होने लगता है एवं हवा में नमी रहने लगती है | यह परिवर्तन शरीर सह नहीं पाता एवं हमारी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है | कमजोर इम्युनिटी के कारण वायरल इन्फेक्शन होकर वायरल फीवर का रूप ले लेता है |

वायरल फीवर क्या है ?

वायरल फीवर का आयुर्वेद से इलाज

यह 3 से 5 दिन तक रहने वाली सामान्य बुखार है | जो वायरल इन्फेक्शन के कारण होती है | वायरल फीवर होने पर हाथ – पैरों में दर्द, जुकाम, खांसी, गले में दर्द, बदन दर्द, ठण्ड लगना एवं अधिक तापमान जैसे लक्षण दिखाई देने लगते है | इस समय रोगी के सम्पर्क में आने पर स्वस्थ व्यक्ति में भी इन्फेक्शन हो जाता है | क्योंकि वायरल बुखार संक्रामक है यह एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में फैलती है |

इस रोग में तत्काल बुखार खत्म करने वाली दवा खाने से बचना चाहिए क्योंकि इस समय हमारा शरीर वायरस से लड़ रहा होता है जो शरीर का तापमान बढाकर वायरल इन्फेक्शन को खत्म करने का कार्य करता है | अगर बुखार 100 डिग्री से कम है तो इसे आयुर्वेदिक नुस्खों एवं दवाओं से आसानी से ठीक किया जा सकता है |

वायरल फीवर के लक्षण

  • सिरदर्द
  • जोड़ों में दर्द
  • बदन दर्द
  • जुकाम
  • गले में खरास
  • खांसी
  • मस्तक का बहुत अधिक गर्म होना
  • सर्दी-जुकाम के सभी लक्षण प्रकट होना
  • शरीर का तापमान बढ़ना
  • ठण्ड लगकर बुखार चढ़ना
  • उल्टी एवं दस्त जैसे लक्षण भी होते है |

वायरल फीवर का आयुर्वेद चिकित्सा एवं घरेलु नुस्खों से इलाज

इस रोग को आयुर्वेद चिकित्सा एवं घरेलु नुस्खों से आसानी से मात दी जा सकती है | हमारे किचन में रखे मसालों एवं कुछ आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन से वायरल फीवर आसानी से ठीक हो जाता है |

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन दोषों का संतुलन होता है – वात, पित्त एवं कफ | जब कफ एवं वात असंतुलित होते है तो ज्वर का कारण बनते है | एसे में आयुर्वेद की कुछ जड़ी-बूटियों एवं दवाओं के सेवन से इन्हें संतुलित करके प्राकृतिक तरीके से वायरल फीवर को ठीक किया जा सकता है |

तो चलिए जानते है वायरल फीवर को ठीक करने वाले घरेलु नुस्खों के बारे में –

गिलोय आदि का चूर्ण:- अगर वायरल फीवर में बुखार आई हुई है तो गिलोय, पीपरामूल, पीपल, हरड, लौंग, नीम की छाल, सफ़ेद चन्दन, सौंठ एवं कुटकी इन सभी को मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गरम जल के साथ सेवन करने से वायरल इन्फेक्शन में आराम मिलता है एवं वायरल बुखार उतर जाती है |

तुलसी का काढ़ा: तुलसी के पते, लौंग, कालीमिर्च, दालचीनी एवं ताजा गिलोय | इन सभी को लेकर दरदरा कूट लें | अब इस लुग्दी में जल मिलाकर आग पर औतायें | जब जल एक चौथाई रह जाये तब इसे आंच से उतार कर ठंडा करके छान कर प्रयोग में लें | जल्द ही बुखार उतर जाती है |

पिप्पली का चूर्ण: अगर वायरल फीवर में खांसी एवं कफ की समस्या है तो थोड़ी पिप्पली लेकर उसका चूर्ण बना लें | पिप्पली पंसारी के पास आसानी से मिल जाती है | इस चूर्ण को 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खांसी एवं जुकाम की शिकायत दूर हो जाती है |

बत्तीसा काढ़ा: भारंगी, रास्ना, पटोलपत्र, देवदारू, हल्दी, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, अडूसा, इंद्र वारुणी, ब्राह्मी, चिरायता, नीम, नेत्र बाला, कुटकी, बच, पाठा, सोनापाठा, दारू हल्दी, कटेरी, गिलोय, निशोथ, हपुषा, पोकरमूल, त्रायमाण, नागरमोथा, जवासा, इंद्र जौ, त्रिफला और कचूर इन सभी औषधियों को लेकर यथावत काढ़ा बनाकर सेवन करने से बुखार के साथ – साथ खांसी, जुकाम, बदन दर्द में भी आराम मिलता है |

वायरल फीवर में उपयोगी आयुर्वेदिक दवाएं | Viral Fever Ayurvedic Medicine

निम्न आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग वायरल फीवर में वैद्य सलाह से किया जा सकता है |

  • सुदर्शन चूर्ण
  • महासुदर्शन चूर्ण
  • गिलोय घन वटी
  • संजीवनी वटी
  • अग्निकुमार रस
  • कालमेघ चूर्ण
  • संशमनी वटी
  • ज्वरांकुश वटी

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