त्रैलोक्य चिंतामणि रस का उपयोग आयुर्वेद चिकित्सा में गठिया (वात रोग), लकवा, कमरदर्द, स्नायु दुर्बलता एवं कफज विकारों में किया जाता है | इस आयुर्वेदिक दवा को उत्तम बलवर्द्धक एवं ओज वर्द्धक औषधि माना जाता है | यह रसायन शरीर में तीव्रता से बल की वृद्धि करता है जिससे रोगों की चिकित्सा करना आसान होता है |
हृदय, फेफड़ों, रक्तवाहिनी नाड़ी एवं वातवाहिनी नाड़ियों पर त्रैलोक्य चिंतामणि रस का विशेष प्रभाव होता है | ध्यान रखने योग्य है कि इस औषधि की तासीर बहुत ही गरम होती है अत: पित प्रकृति के व्यक्तियों के लिए इसका सेवन वर्जित होता है लेकिन अगर औषधि का सेवन अत्यंत आवश्यक है तो सौम्य प्रकृति की औषधि के साथ योग स्वरुप इसका सेवन करवाया जा सकता है |
आज इस आर्टिकल में हम आपको त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फायदे, चिकित्सकीय उपयोग एवं गुण – अवगुण के बारे में बताएँगे |
दवा का नाम | त्रैलोक्य चिंतामणि रस |
मैन्युफैक्चरर | धूतपापेश्वर / बैद्यनाथ / डाबर / पतंजलि |
घटकों की संख्या | 12 |
उपयोग | श्वसन विकार, कफज विकार, बुखार, सभी वातविकार |
सन्दर्भ ग्रन्थ | भैषज्य रत्नावली |
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त्रैलोक्य चिंतामणि रस का संक्षिप्त परिचय
यह औषधि आयुर्वेद में वर्णित शाश्त्रोक्त औषधि है | इसका वर्गीकरण रस – रसायन औषधियों में किया गया है | आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली, रस तंत्र सार आदि में इसका वर्णन मिलता है | यह मुख्यत: कफज विकार, वात विकार, गठिया, स्नायु दुर्बलता एवं आदि में इसका उपयोग किया जाता है | इसमें स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, अभ्रक भस्म, गंधक, पारद जैसे घटक द्रव्य है |
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त्रैलोक्य चिंतामणि रस के घटक द्रव्य | Ingredients of Trilokya Chintamani Ras in Hindi
- स्वर्ण भस्म – 1 भाग
- रजत भस्म – 1 भाग
- कज्जली – 1 भाग
- अभ्रक भस्म – 1 भाग
- लौह भस्म – 1 भाग
- रोप्य भस्म – 1 भाग
- ताम्र भस्म – 1 भाग
- वैक्रांत भस्म – 1 भाग
- मोती भस्म – 1 भाग
- शुद्ध गंधक – 1 भाग
- शुद्ध पारद भस्म – 1 भाग
- शुद्ध शंख भस्म – 1 भाग
- आकडे का दूध – आवश्यकता अनुसार
- शुद्ध टंकण – आवश्यकतानुसार
भावना देने के लिए
- चित्रक मूल क्वाथ
- अर्क दुग्ध
- निर्गुन्डी स्वरस
- सेहुंड दुग्ध
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के उपयोग या फायदे | Trilokya Chintamani Ras Uses in Hindi
श्वसन विकारों में उपयोग: यह औषधि कफज व्याधियों जैसे श्वांस, अस्थमा या फेफड़ों के संक्रमण में उपयोगी है | फुफ्फुस (फेफड़ा) पर इस दवा का विशेष प्रभाव बताया गया है | अदरक स्वरस के साथ कफज विकारों में इसका सेवन करना चाहिए
ज्वर: बुखार में त्रैलोक्य चिंतामणि रस बहुत फायदेमंद है | इसका उपयोग अन्य आयुर्वेदिक औषधियों के योग के साथ चिकित्सक ज्वर एवं जीर्णज्वर के उपचार में करवाते है | बुखार में यह लाभदायक सिद्ध होती है |
वातरोग: वात रोगों जैसे गठिया, पक्षाघात एवं आम वात में यह लाभदायक है | रस्नादी क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ इन रोगों में इसका सेवन करवाना तुरंत राहत देता है | यह शरीर में बल की व्रद्धी करती है एवं रोगों से रक्षा करती है |
खांसी: खांसी अर्थात कास की समस्या में त्रैलोक्य चिंतामणि रस को अदरक स्वरस या शहद के साथ सेवन करवाने से लाभ मिलते है | यह शरीर में स्थित दूषित कीटाणुओं का नाश करके खांसी से आराम दिलाती है |
पाचक: यह औषधि जठराग्नि को जगाने वाली औषधि है | इस औषधि का असर जठराग्नि पर स्थिर रहता है | अर्थात एक बार औषधि के असर करने के पश्चात मन्दाग्नि की समस्या फिर से नहीं आती |
हृदय: यह औषधि हृदय को भी बल देती है | इसमें उपस्थित रसायन इसे हृदय के लिय लाभदायक एवं बलकरी बनाते है | साथ ही हाथ पैरों की शुन्यता, झनझनाहट एवं जी मचलाना जैसी समस्याओं में फायदेमंद साबित होती है |
त्रैलोक्य चिंतामणि रस की खुराक एवं विधि
इसका सेवन वैद्य दिशानिर्देशों अनुसार करना चाहिए | सामान्यत: इसका सेवन 1 – 1 गोली की मात्रा में सुबह – शाम शहद, अदरक रस या अन्य चिकित्सक द्वारा सुझाये गए अनुपान के साथ करना चाहिए |
सवाल – जवाब | FAQ
त्रैलोक्य चिंतामणि रस की Price क्या है ?
विभिन्न फार्मेसी की दवाओं का मूल्य भी अलग – अलग होता है | Baidyanath त्रैलोक्य चिंतामणि रस का प्राइस 10 teblet – 710 रूपए
त्रैलोक्य चिंतामणि रस किन रोगों में उपयोगी है ?
श्वांस, कास, क्षय, गठिया, हृदय विकार, कमरदर्द आदि में उपयोगी है |
त्रैलोक्य चिंतामणि रस के नुकसान क्या है ?
इसमें गंधक, पारद, स्वर्ण भस्म, लौह भस्म आदि घटक है अत: निश्चित मात्रा में वैद्य सलाह अनुसार ही लेनी चाहिए | अन्यथा शरीर में उष्णता को बढ़ा सकती है |
कितने दिन तक सेवन की जा सकती है ?
वैद्य निर्देशानुसार ही सेवन करें |
क्या गर्भवती महिलाऐं इसका सेवन कर सकती है ?
गर्भवती महिलाओं को बैगर चिकित्सक सलाह इसका सेवन नहीं करना चाहिए |