समीर पन्नग रस के फायदे, बनाने की विधि एवं सावधानियां

समीर पन्नग रस आयुर्वेद की शास्त्रोक्त दवा है | इसे न्युमोनिया, श्वांस, कास, बुखार एवं संधिवात जैसे रोगों में प्रयोग करवाया जाता है | विशेषरूप से देखा जाए तो इस शास्त्रोक्त दवा को रोग एवं रोगी की अवस्था के अनुरूप दिया जाता है | यह अत्यल्प मात्रा में चिकित्सक के निर्देशित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए |

बाजार में समीर पन्नग और स्वर्ण समीरपन्नग रस आदि विभिन्न फार्मेसी का आसानी से उपलब्ध हो जाता है | पतंजलि समीर पन्नग रस, बैद्यनाथ समीर पन्नग रस आदि आप बाजार से खरीद सकते है |

समीर पन्नग रस के घटक द्रव्य

यहाँ हम शास्त्रोक्त समीर पन्नग के घटक द्रव्य एवं निर्माण में आने वाले अन्य उपकरणों के बारे में बता रहें है | बाजार में मिलने वाली दवा के कुछ घटक द्रव्य अलग हो सकते है |

  1. शुद्ध पारद : 100 ग्राम
  2. शुद्ध गंधक : 100 ग्राम
  3. शुद्ध शंखिया : 100 ग्राम
  4. शुद्ध हरताल : 100 ग्राम

समीर पन्नग रस बनाने की विधि

किसी भी आयुर्वेदिक दवा का निर्माण विशेषज्ञ फार्मासिस्टों एवं वैद्य की देख – रेख में करना उचित रहता है | यहाँ विधि बताने का हमारा उद्देश्य सिर्फ शैक्षणिक है | ताकि आप भी जान सकें की शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक दवा का निर्माण कैसे होता है |

समीर पन्नग रस
समीर पन्नग रस

निर्माण में काम आने वाले उपकरण :

  1. खरल
  2. चाकू
  3. बालुकायंत्र (मिटटी का घड़ा जिसमे बालू मिटटी भरी रहती है)
  4. 20 औंस की हरी बोतल
  5. कपड़ा
  6. मुल्तानी मिटटी
  7. 4 फीट लम्बी लोहे की रॉड
  8. लकड़ी
  9. भट्टी

कैसे बनता है : सबसे पहले शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध संखिया एवं शुद्द हरताल इन चारों को 100 – 100 ग्राम की मात्रा में ले लें | अब शुद्ध गंधक एवं शुद्ध पारद को खरल में लेकर 3 दिन तक लगातार मर्दन किया जाता है | 3 दिन तक खरल में घोटने से कज्जली का निर्माण होता है |

इसके पश्चात शुद्ध शंखिया और शुद्ध हरताल को इनमे मिलाकर फिर 2 दिन तक खरल में मर्दन किया जाता है |

अब तुलसी पत्र स्वरस की भावना 3 भावना देकर सुखा लिया जाता है | भावना देने का मतलब होता है कि किसी चूर्ण आदि में औषधीय वनस्पति का रस मिलाकर फिर से मर्दन करना एवं उसे सुखा लेना |

बोतल को काम में लेने से पहले उस पर सात बार कपडमिटटी (मुलतानी मिटटी का लेप) की जाती है | अब इसमें तैयार 400 ग्राम कज्जली भर कर ऊपर से कोर्क (ढक्कन) लगा दिया जाता है |

बालुकायंत्र में बालू मिटटी भर कर उसमे कंठ तक बोतल को गडा दिया जाता है |

बालुकायंत्र को अग्नि पर चढ़ा दिया जाता है | अब इस प्रकार से लगातार 2 घंटे तक मध्यम अग्नि दी जाती है | इसके पश्चात बोतल का ढक्कन खोल दिया जाता है |

अब फिर से 2 घंटे तक तीव्र अग्नि दी जाती है | इस अग्नि के कारण बोतल के मुंह से काफी धुंवा निकलने लगता है | धुंवे से बोतल का मुंह बंद न हो इसके लिए लोहे की रॉड को बोतल के मुंह में सावधानी से अन्दर बाहर किया जाता है |

सम्यक पाक हो रहा इसके लिए बोतल के मुख पर ध्यान से देखा जाता है तो तली लाल दिखाई देती है |

परिक्षण के लिए ठंडी लोहे की रॉड को बोतल में डालने पर धुंवा नहीं उठता एवं बोतल के मुंह पर ताम्रपत्र को रखकर देखने से उसपर पारद चिपकने लगता है |

सम्यक परिक्षण होने के पश्चात अग्नि शांत होने एवं बोतल ठंडी होने के पश्चात इसमें एकत्र समीर पन्नग को सावधानी पूर्वक इक्कठा कर लिया जाता है |

इस प्रकार से शास्त्रोक्त समीर पन्नग का निर्माण होता है |

समीर पन्नग रस के फायदे

  • न्युमोनिया एवं श्वसन विकारों में उत्तम परिणाम देती है |
  • कफज विकारों में उपयोगी है |
  • सभी प्रकार के जीर्ण ज्वर में फायदेमंद है |
  • जोड़ो के दर्द एवं संधिवात में भी आयुर्वेदिक चिकित्सको द्वारा व्यवहार किया जाता है |
  • स्नायु दुर्बलता में भी अच्छे परिणाम देखने को मिलते है |
  • यह बलवर्द्धक रसायन है अत: ज्वर आदि के पश्चात आई हुई कमजोरी एवं थकान में काफी लाभ देता है |
  • चर्म रोग जैसे खुजली एवं एलर्जी आदि में समीर पन्नग रस का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा करवाया जाता है |
  • पुरानी खांसी की समस्या में भी इसका व्यवहार किया जाता है एवं अच्छे परिणाम भी मिलते है |
  • वात एवं कफज विकारों के कारण होने वाले शूल (दर्द) में राहत देता है |

मात्रा एवं सेवन विधि

इसका सेवन चिकित्सक की देख रेख में आधा से एक रति अर्थात 62.5 मिग्रा से 125 मिग्रा अधिकतम किया जा सकता है |

समीर पन्नग रस की सावधानियां

इसके निर्माण में शंखीय का उपयोग किया जाता है | शंखिया एक प्रकार का विष होता है ; एवं इस दवा का एक घटक द्रव्य है | अत: इसके सेवन में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए | बैगर आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श इसका सेवन नुकसान दाई साबित हो सकता है |

चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा एवं अनुपान के साथ ही इसका सेवन करना चाहिए |

धन्यवाद ||

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