Caparidaceae फॅमिली की यह वनस्पति पौधा झाड़ीनुमा होता है | यह कांटेदार, घना, बारीक़ शाखायुक्त 6 से 7 फीट ऊँची वनस्पति है | इसकी शाखा नाजुक काँटों से युक्त होती है | कांटे सीधे एवं युग्म में लगे रहते है |
करीर के पत्र केवल नयी शाखाओं पर ही आते है | ये आधा इंच लम्बे, रेखाकार एवं आगे से नुकीले होते है | इसके फुल गुलाबी रंग के गुच्छों में लगते है |
इसके फल गोलाकार आधा इंच व्यास के लाल या गुलाबी एवं छोटे वृंत पर आते है | इसका उत्पति स्थान राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश और दक्षिणी भारत के शुष्क इलाकों में होते है |
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करीर के पर्याय
संस्कृत – क्रकरी पत्र, ग्रंथिल, मरूभूरूह |
हिंदी – करीर, करील, करेल |
राजस्थानी – कैर
मराठी – नेपती, किरल |
लैटिन – Capparis Decidua Edgew .
Family – Capparidaceae .
करीर के आयुर्वेदिक गुण धर्म
करीर: कटुकस्तिक्त: स्वेध्युष्ण भेदन: स्मृत: |
दुर्नामकफवातामगरशोथव्रणप्राणुत ||
भाव प्रकाश वटादीवर्ग
रस – कटु, तिक्त
गुण – लघु, रुक्ष
विपाक – कटु
वीर्य – उष्ण
दोषकर्म – कफ एवं वातहर
अन्यकर्म – विषघ्न, आमपाचन, स्वेद्जनन, भेदन,
त्वक के कर्म – स्वेदजनन, अर्शहर, शोथहर (सुजन दूर करने वाली)
कोमलपत्र – स्फोटजनन
फल – संग्राहक |
करीर के रोगोपयोग
- अर्श में फायदेमंद है |
- वातव्याधियों अर्थात अतिरिक्त वायु के कारण होने वाले दर्द एवं अन्य पीडाओं में आराम देती है |
- विष में उपयोगी |
- सुजन को दूर करती है |
- करीर छाल से घाव को धोने से जल्द ही भरने लगता है |
- कृमिरोग अर्थात पेट के कीड़ों में फायदेमंद औषधि है |
- अतिसार (दस्त) में प्रयोग करवाई जाती है |
- दांतों में दर्द हो तो करीर के ताजा पतों को चबाने से एवं शाखाओं को चबाने से आराम मिलता है |
- फलों का आचार अर्श एवं अतिसार में दिया जाता है |
रासायनिक संगठन
Caparine, capparilline, capparidisine (alkaloids) एवं Glucoside आदि मिलते है |
प्रयोज्य अंग – जड़ की छाल , इसके फुल एवं फल |
सेवन की मात्रा – छाल का चूर्ण 1 से 2 ग्राम एवं क्वाथ को 40 मिली तक की मात्रा में सेवन किया जा सकता है |
विशिष्ट आयुर्वेदिक योग – करीर चूर्ण